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तीन को सरकार और चार नवंबर को 22 दलबदलुओं के सियासी भाग्य का होगा फैसला - सुप्रीम कोर्ट में 22 विधायकों का मामला

कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 4 नवंबर 2020 को सुनवाई होने वाली है, उन्होंने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे लोगों के लिए नजीर बनेगा, जो जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं. साथ ही अपने स्वार्थ के चलते दल-बदल के लिए तैयार रहते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 22, 2020, 9:21 PM IST

Updated : Oct 23, 2020, 12:36 AM IST

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर चुनावी घमासान जारी है. उपचुनाव में चुनावी किस्मत आजमाने चुनाव मैदान में उतरे बीजेपी के 28 में से 22 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी अयोग्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में फैसला होगा.

22 विधायकों पर 4 नवंबर को होगा फैसला

ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था. इनकी सदस्यता को अयोग्य घोषित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन विचाराधीन है, जिसको लेकर विधानसभा प्रोटेम स्पीकर की तरफ से जवाब पिछले दिनों पेश किया जा चुका है.

कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 4 नवंबर को फैसला होगा. विधायक विनय सक्सेना ने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे लोगों के लिए नजीर बनेगा, जो जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं और अपने स्वार्थ के चलते दल-बदल के लिए तैयार रहते हैं.

पढ़े: 22 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर 21 सितंबर तक मांगा जवाब

दरअसल, कमलनाथ सरकार से बगावत करके 22 पूर्व विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार के व्हिप का उल्लंघन किया था. इस पर जबलपुर उत्तर के कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना का कहना है कि, 'उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को इन पूर्व विधायकों को आयोग्य घोषित करने के लिए याचिका पेश की थी, जिस पर कोई फैसला नहीं लिया गया.' हालांकि अब कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 4 नवंबर 2020 को फैसला होगा. उन्होंने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे लोगों के लिए नजीर बनेगा, जो जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं और अपने स्वार्थ के चलते दल-बदल के लिए तैयार रहते हैं.

3 को मतदान 4 को होगा फैसला
खास बात यह है कि विधानसभा उपचुनाव 3 नवंबर को है, जबकि उच्च न्यायालय में सुनवाई 4 नवंबर को है. ग्वालियर पहुंचे कांग्रेस विधायक सक्सेना का कहना है कि, सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इन दलबदल करने वाले पूर्व विधायकों को व्हिप का उल्लंघन करने पर आयोग्य घोषित कर सकता है. उनका चुनाव शुन्य कर सकता है और चुनाव परिणाम पर भी रोक लगा सकता है.


पूरा राजनीतिक घटनाक्रम कुछ इस तरह रहा

  • मध्य प्रदेश में राजनीतिक ड्रामे की शुरुआत 3 मार्च को दिग्विजय सिंह के ट्वीट से हुई, जिसमें उन्होंने शिवराज सिंह से पूछा कि, 'आपके नेता बसपा विधायक राम भाई को चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली ले गए या नहीं.'
  • हरियाणा के आईटीसी ग्रैंड मानेसर होटल में कांग्रेस, बसपा और एक अन्य तत्कालीनी विधायक के होने की खबर आई. सिंधिया समर्थक 19 विधायक भी बेंगलुरू पहुंचे. सिंधिया ने अमित शाह से मुलाकात की. वहीं सिंधिया ने 10 मार्च को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.
  • सिंधिया के समर्थन में छह मंत्रियों और 13 विधायकों ने भी इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेजा. भोपाल में मौजूद बिसाहूलाल सिंह और एंदल सिंह कंसाना ने भी बीजेपी छोड़ी.
  • 11 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री निवास पर हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में 93 विधायक शामिल हुए. इसके बाद कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को जयपुर भेज दिया. वहीं बीजेपी ने अपने विधायकों को दिल्ली शिफ्ट किया.
  • राज्यपाल लालजी टंडन ने 14 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को बहुमत साबित करने के लिए कहा.
  • 16 मार्च को विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोरोना का खतरा बताते हुए फ्लोर टेस्ट से इंकार कर दिया. सदन की कार्रवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दी गई.
  • स्पीकर के फैसले के खिलाफ बीजेपी सुप्रीम कोर्ट पहुंची. कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट के लिए 20 मार्च की शाम तक समय तय किया.
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पीकर ने बेंगलुरू में बैठे 16 बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए.
  • 20 मार्च को कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस्तीफे की घोषणा की.

    सुप्रीम कोर्ट में क्यों की गई पेटीशन दाखिल?

    मार्च 2020 में कांग्रेस से बगावत करने वाले 22 पूर्व विधायकों ने 10 मार्च को अपने त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश किए थे. 13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के सामने कांग्रेस की ओर से इन पूर्व विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका दायर की गई थी. बाद में पूर्व विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए, लेकिन इन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया, जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 माह का समय तय किया था. इसी मामले को लेकर कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना ने याचिका दायर की थी. कांग्रेस विधायक की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा इस मामले की पैरवी कर रहे हैं.

    मार्च से कौन-कौन रहा विधानसभा अध्यक्ष और प्रोटेम स्पीकर

    2018 की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 8 जनवरी 2019 को नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि प्रदेश में हुए सियासी घमासान के बाद 20 मार्च को प्रदेश में बीजेपी की शिवराज सरकार बन गई थी. 24 मार्च को बीजेपी के सीनियर लीडर जगदीश देवड़ा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था. शिवराज सरकार में मंत्री बनाए जाने के चलते 2 जुलाई 2020 को उन्होंने प्रोटेम स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद रामेश्वर शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया जो अब तक हैं.

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर चुनावी घमासान जारी है. उपचुनाव में चुनावी किस्मत आजमाने चुनाव मैदान में उतरे बीजेपी के 28 में से 22 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी अयोग्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में फैसला होगा.

22 विधायकों पर 4 नवंबर को होगा फैसला

ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था. इनकी सदस्यता को अयोग्य घोषित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन विचाराधीन है, जिसको लेकर विधानसभा प्रोटेम स्पीकर की तरफ से जवाब पिछले दिनों पेश किया जा चुका है.

कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 4 नवंबर को फैसला होगा. विधायक विनय सक्सेना ने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे लोगों के लिए नजीर बनेगा, जो जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं और अपने स्वार्थ के चलते दल-बदल के लिए तैयार रहते हैं.

पढ़े: 22 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर 21 सितंबर तक मांगा जवाब

दरअसल, कमलनाथ सरकार से बगावत करके 22 पूर्व विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार के व्हिप का उल्लंघन किया था. इस पर जबलपुर उत्तर के कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना का कहना है कि, 'उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को इन पूर्व विधायकों को आयोग्य घोषित करने के लिए याचिका पेश की थी, जिस पर कोई फैसला नहीं लिया गया.' हालांकि अब कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर 4 नवंबर 2020 को फैसला होगा. उन्होंने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे लोगों के लिए नजीर बनेगा, जो जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं और अपने स्वार्थ के चलते दल-बदल के लिए तैयार रहते हैं.

3 को मतदान 4 को होगा फैसला
खास बात यह है कि विधानसभा उपचुनाव 3 नवंबर को है, जबकि उच्च न्यायालय में सुनवाई 4 नवंबर को है. ग्वालियर पहुंचे कांग्रेस विधायक सक्सेना का कहना है कि, सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इन दलबदल करने वाले पूर्व विधायकों को व्हिप का उल्लंघन करने पर आयोग्य घोषित कर सकता है. उनका चुनाव शुन्य कर सकता है और चुनाव परिणाम पर भी रोक लगा सकता है.


पूरा राजनीतिक घटनाक्रम कुछ इस तरह रहा

  • मध्य प्रदेश में राजनीतिक ड्रामे की शुरुआत 3 मार्च को दिग्विजय सिंह के ट्वीट से हुई, जिसमें उन्होंने शिवराज सिंह से पूछा कि, 'आपके नेता बसपा विधायक राम भाई को चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली ले गए या नहीं.'
  • हरियाणा के आईटीसी ग्रैंड मानेसर होटल में कांग्रेस, बसपा और एक अन्य तत्कालीनी विधायक के होने की खबर आई. सिंधिया समर्थक 19 विधायक भी बेंगलुरू पहुंचे. सिंधिया ने अमित शाह से मुलाकात की. वहीं सिंधिया ने 10 मार्च को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.
  • सिंधिया के समर्थन में छह मंत्रियों और 13 विधायकों ने भी इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेजा. भोपाल में मौजूद बिसाहूलाल सिंह और एंदल सिंह कंसाना ने भी बीजेपी छोड़ी.
  • 11 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री निवास पर हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में 93 विधायक शामिल हुए. इसके बाद कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को जयपुर भेज दिया. वहीं बीजेपी ने अपने विधायकों को दिल्ली शिफ्ट किया.
  • राज्यपाल लालजी टंडन ने 14 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को बहुमत साबित करने के लिए कहा.
  • 16 मार्च को विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कोरोना का खतरा बताते हुए फ्लोर टेस्ट से इंकार कर दिया. सदन की कार्रवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दी गई.
  • स्पीकर के फैसले के खिलाफ बीजेपी सुप्रीम कोर्ट पहुंची. कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट के लिए 20 मार्च की शाम तक समय तय किया.
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पीकर ने बेंगलुरू में बैठे 16 बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए.
  • 20 मार्च को कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस्तीफे की घोषणा की.

    सुप्रीम कोर्ट में क्यों की गई पेटीशन दाखिल?

    मार्च 2020 में कांग्रेस से बगावत करने वाले 22 पूर्व विधायकों ने 10 मार्च को अपने त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश किए थे. 13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के सामने कांग्रेस की ओर से इन पूर्व विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका दायर की गई थी. बाद में पूर्व विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए, लेकिन इन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया, जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 माह का समय तय किया था. इसी मामले को लेकर कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना ने याचिका दायर की थी. कांग्रेस विधायक की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा इस मामले की पैरवी कर रहे हैं.

    मार्च से कौन-कौन रहा विधानसभा अध्यक्ष और प्रोटेम स्पीकर

    2018 की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद 8 जनवरी 2019 को नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि प्रदेश में हुए सियासी घमासान के बाद 20 मार्च को प्रदेश में बीजेपी की शिवराज सरकार बन गई थी. 24 मार्च को बीजेपी के सीनियर लीडर जगदीश देवड़ा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था. शिवराज सरकार में मंत्री बनाए जाने के चलते 2 जुलाई 2020 को उन्होंने प्रोटेम स्पीकर पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद रामेश्वर शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया जो अब तक हैं.
Last Updated : Oct 23, 2020, 12:36 AM IST
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