ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने नाबालिग लड़की के गायब होने के मामले में दोषपूर्ण विवेचना पर नाराजगी जताई है. खंडपीठ ने आदेश दिया है कि इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर को 6 महीने और एक साल की ट्रेनिंग लेने के बाद ही फील्ड पोस्टिंग दी जानी चाहिए.
नाबालिग की मां ने लगाई थी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका : दरअसल, 25 मई को उपनगर ग्वालियर के हजीरा इलाके में रहने वाली एक नाबालिग लड़की गायब हो गई थी. उसे सोनू ओझा नामक युवक बहला-फुसलाकर भगा ले गया था. इस मामले में लड़की की मां ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई थी, जिसमें कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए थे कि वह लड़की को ढूंढ कर न्यायालय में पेश करे. इस लड़की को 9 जून को भिंड से पुलिस ने बरामद किया गया था, लेकिन पुलिस ने ना तो लड़की का मेडिकल कराया और ना ही उसे भगाने वाले सोनू ओझा को आरोपी बनाया.
विवेचना में गंभीर त्रुटि पाई कोर्ट ने : इस मामले में भिंड में इस प्रेमी युगल को किराए से कमरा देने वाले मकान मालिक के खिलाड़ी खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की. कोर्ट ने इसे विवेचना की गंभीर त्रुटि माना और हजीरा थाना प्रभारी मनीष धाकड़ को छह महीने तथा विवेचना अधिकारी रागिनी परमार को एक साल के प्रशिक्षण पर भेजने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने दोनों को फील्ड पोस्टिंग से पहले पुलिस ट्रेनिंग सेंटर भेजने के निर्देश एसएसपी अमित सांघी को दिए हैं.
नाबालिग को मां के साथ भेजा : इस बीच नाबालिग ने अपनी मां के साथ जाने की इच्छा जताई. इसलिए उसे वन स्टॉप सेंटर से निकालकर मां के साथ जाने की अनुमति प्रदान की गई है. लड़की की मां ने इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी और अपनी लड़की को बहलाने फुसलाने के लिए सिटी सेंटर में रहने वाले सोनू ओझा को संदेही बताया था. महिला ने अपनी लड़की को सोनू पर बंधक बनाकर रखने का भी आरोप लगाया था. (High Court Strict on faulty investigation) (Send inspector and sub inspector on training) (After Training then posting of new field)