ग्वालियर। कोरोना वायरस ने लोगों को सिर्फ संक्रमित ही नहीं किया है, बल्कि इसने लोगों को लाचार भी बना दिया है. 2 वक्त की रोटी कमाने के लिए सड़कों पर दिन रात मेहनत करने वाले लोग अब काम तक के लिए तरस रहे हैं. हांलाकि ऐसा देश में पहली बार नहीं हो रहा है, जिस तरीके से हाल में तेजी से फैले कोरोना संक्रमण को महामारी का दूसरा फेज माना जा रहा है, वैसे ही मजदूर, गरीबों के लिए यह भुखमरी का दूसरा अकाल है. देश में मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण फैलने के कारण देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया था, देश में आवाजाही, कामकाज, सब बंद कर दिया था, लेकिन इस स्थिति ने किसके पेट पर सबसे ज्यादा असर किया उसकी तस्वीर पूरी दुनिया ने देखी है.
- 2 वक्त की रोटी के लिए जंग
मध्य प्रदेश में पूरे देश की तरह लॉकडाउन लगा, यह लॉकडाउन कोरोना के दूसरे फेज में भी लागू किया है, हालांकि इसका स्वरूप थोड़ा छोटा है, लेकिन इस बार प्रदेश की सड़कों पर रहने वाले गरीब मजदूरों पर इसका क्या असर पड़ रहा है, इसकी तस्वीरें अब सामने आने लगी है. वर्तमान में एमपी के 52 जिलों में से 28 जिलों में कर्फ्यू लगा हुआ है. आवश्यक सेवाओं के अलावा किसी भी व्यक्ति को बाहर निकलने की छूट नहीं है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों के सामने आ रही है जो सड़कों पर रहते है. दिनभर काम कर केवल शाम की 2 वक्त की रोटी जुटा पाते हैं.
दिल्ली से पलायन कर रहे मजदूरों से भरी बस पलटी, तीन की मौत, 24 घायल
- इस बार कोई मदद के लिए नहीं आ रहा आगे
2020 में कोरोना महामारी के भारत में दस्तक देने के बाद सड़कों पर रहने वाले लोगों की कई हाथों ने मदद की थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं देखने को मिल रहा है. प्रदेश के ग्वालियर में भी सड़कों पर भूख से तड़प रहे ऐसे ही बेसहारा लोगों की मदद के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है. इन लोगों की मदद न ही प्रशासन कर रही है, न कोई समाजसेवी संस्था.
- सरकार के दावे फेल
भारत में हर साल भुखमरी के दूर होने के दावे किए जाते हैं, लेकिन इस महामारी के दौर में यह समस्या फिर से पैदा हो गई है. ग्वालियर में प्रवासी मजदूरों के पास काम बंद होने के कारण रोजी रोटी कमाने का कोई जरिया नहीं हैं. लॉकडाउन लगने से यह लोग इसके लिए कोई आंदोलन भी नहीं कर सकते हैं, ऐसे में इनकी कौन जिम्मेदारी लें यह एक प्रश्नवाचक चिन्ह सबके सामने खड़ा है.
- कोरोना से नहींं भूख से मौत की स्थिति
ग्वालियर में अबकी बार सड़कों पर काम करने वाले, फुटपात को अपना घर समझने वाले लोगों के लिए कोई भी समाजसेवी संस्था मदद के लिए आगे नहीं आ रही है. वहीं, जब इन बेसहारा लोगों से ई टीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने कहा कि रोजाना एक ही आस में दिन गुजर रहे हैं कि कोई मदद के लिए आएंगा, 2 वक्त की रोटी दिलाएगा. इन लोगों की उम्मीद रोजाना सुबह सूरज की तरह उगती है और उसी प्रकार शाम को टूट जाती है. अब कैसे इस महामारी के दौर में अपने आप को अपने परिवार को जिंदा रखा जाए इसकी लिए यह लोग सड़कों पर जंग लड रहे हैं. सड़क किनारे रिक्शा चलाने वाले मजदूरों का कहना है कि संक्रमण उनकी जान ले या न ले, भूख जरुर उन्हें मार डालेगी.