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अपने ही गढ़ में 'महाराज' हुए 'कमजोर', कांग्रेस ने दिखाया जोर

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Published : Nov 23, 2020, 11:03 PM IST

ग्वालियर चंबल की 16 सीटों में से बीजेपी आधी सीटें हार गई. जिससे माना जा रहा है कि चंबल क्षेत्र में कांग्रेस का वर्चस्व बढ़ा है और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगैर कांग्रेस की स्थिति चंबल में मजबूत हो सकती है. इस उपचुनाव के परिणाम ने कहीं ना कहीं चंबल में सिंधिया के वर्चस्व पर भी सवाल खड़े किए हैं.

Jyotiraditya Scindia
ज्योतिरादित्य सिंधिया

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. यही वजह रही कि कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 28 सीटों पर उपचुनाव में अपना गढ़ बचाने के लिए खुद को पूरी तरह से झोंक दिया. परिणामों के बाद भले ही मध्य प्रदेश में बीजेपी की ज्यादा सीटें आई और मध्यप्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली, लेकिन सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबलअं चल में कमलनाथ ने उनके धुर विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमजोर और उनकी ताकत कम कर दी है.

ग्वालियर चंबल पॉलिटिक्स

नहीं चला ज्योतिरादित्य सिंधिया का जादू

मुरैना और ग्वालियर जिले में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे ज्यादा सभाएं और रैलियां की थी. उसके बाद खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लगातार यहां पर डेरा डाले रहे. इसके बावजूद यहां की जनता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कम पसंद किया. इसका कारण यह है कि मुरैना जिले की 5 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 3 विधानसभा सीटों पर बाजी मार ली. वहीं ग्वालियर जिले की तीन सीटों में से 2 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. भिंड जिले से एक और शिवपुरी जिले से 1 सीट कांग्रेस के खाते में गई.इससे साबित होता है ज्योतिरादित्य सिंधिया को खुद के ही घर में लोगों ने कम पसंद किया.

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली

इन सीटों पर हारे सिंधिया समर्थक

ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबल अंचल में 16 सीटें थी और इन सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरी ताकत झोंक दी थी. इसके बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने घर से 50 फीसदी सीटें हार गए.

मुरैना विधानसभा

मुरैना सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी थी, क्योंकि यहां पर उनके समर्थक रघुराज सिंह कंसाना चुनाव मैदान में थे. कभी सिंधिया के ही समर्थक रहे कांग्रेस नेता राकेश मावई ने रघुराज सिंह कंसाना को 5751 वोटों से हरा दिया.

दिमनी विधानसभा

इस विधानसभा से राज्यमंत्री और बीजेपी प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया को कांग्रेस की प्रत्याशी रविंद्र सिंह तोमर ने हरा दिया. राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया सिंधिया के बेहद करीबी माने जाते हैं. वह भी सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे.

सुमावली विधानसभा

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए कैबिनेट मंत्री एंदल सिंह कंषाना को अबकी बार करारी हार का सामना करना पड़ा है. यहां भी कांग्रेस के प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाहा ने बाजी मार ली. हालांकि एंदल सिंह कंषाना सिंधिया समर्थकों की लिस्ट में नहीं आते हैं.

ग्वालियर पूर्व विधानसभा

ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट, सिंधिया का गढ़ मानी जाती है. साथ ही इसी क्षेत्र के अंतर्गत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मंत्री माया सिंह का गृह निवास भी आता है. यही वजह है कि सिंधिया के अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, माया सिंह ने जनता के बीच जाकर खूब पसीना बहाया. लेकिन अबकी बार उनकी मेहनत काम नहीं आई. यही वजह रही कि बीजेपी उम्मीदवार मुन्नालाल गोयल को हराकर कांग्रेस के उम्मीदवार सतीश सिंह सिकरवार ने 8555 वोटों से जीत हासिल की.

डबरा विधानसभा

उपचुनाव की सबसे हाई प्रोफाइल सीट वही डबरा विधानसभा में कांग्रेस ने अबकी बार सिंधिया के बेहद करीबी मंत्री इमरती देवी को करारी शिकस्त दी है. तीन बार विधायक विधायक रहीं मंत्री इमरती देवी को उनके ही समधी सुरेश राजे ने 7633 मतों से हरा दिया. डबरा विधानसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ताबड़-तोड़ सभाएं और रैलियों की, लेकिन उनका जादू फीका रहा.

करैरा विधानसभा

इस सीट पर बीजेपी के जसवंत जाटव कांग्रेस के प्रगीलाल जाटव से 30641 वोटों से चुनाव हार गए. जबकि सिंधिया ने यहां 3 सभाएं ली थी. फिर भी सिंधिया का जादू नहीं चला.

गोहद विधानसभा

गोहद सीट ज्योतिराज सिंधिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी थी, सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा मेहनत की थी. इसके बाद भी कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव ने रणवीर जाटव को 11899 वोट के अंतर से चुनाव हरा दिया. जो सिंधिया के लिए चंबल में सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है.

कांग्रेस को बिकाऊ-टिकाऊ का मिला फायदा

इस उपचुनाव में पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी सिंधिया के घर में ही सबसे ज्यादा मेहनत की और यही वजह है कि उन्होंने हर विधानसभा में जाकर सिंधिया को गद्दार साबित किया. उन्होंने जनता के बीच बिकाऊ शब्द सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया और जनता के बीच मैसेज पहुंचाया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने अपने फायदे के लिए सरकार गिराई है.

सिंधिया की साख पर 'बट्टा'

राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के हारने से उनकी ताकत पर भी काफी असर हुआ है, क्योंकि उनके 50 फीसदी समर्थक चुनाव हार चुके हैं. वो भी उन क्षेत्रों में जहां सिंधिया की पकड़ मजबूत मानी जाती है.

पहली बार सिंधिया के बिना कांग्रेस चंबल में कांग्रेस मजबूत

भले ही इस उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीट है बीजेपी के खाते में गई हैं, लेकिन ग्वालियर,मुरैना, भिंड और शिवपुरी जिले में कांग्रेस ने बाजी मार ली. यही वजह है कि अबकी बार बिना सिंधिया के कांग्रेस सबसे ज्यादा ताकतवर दिखी. बीजेपी की सीटें भले ही ज्यादा आ गई हों, लेकिन कांग्रेस इस बात पर खुश नजर आ रही है कि उन्होंने सिंधिया के घर में ही और उनके बिना सबसे अधिक सीटें हासिल की हैं.

ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. यही वजह रही कि कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 28 सीटों पर उपचुनाव में अपना गढ़ बचाने के लिए खुद को पूरी तरह से झोंक दिया. परिणामों के बाद भले ही मध्य प्रदेश में बीजेपी की ज्यादा सीटें आई और मध्यप्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली, लेकिन सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबलअं चल में कमलनाथ ने उनके धुर विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमजोर और उनकी ताकत कम कर दी है.

ग्वालियर चंबल पॉलिटिक्स

नहीं चला ज्योतिरादित्य सिंधिया का जादू

मुरैना और ग्वालियर जिले में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे ज्यादा सभाएं और रैलियां की थी. उसके बाद खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लगातार यहां पर डेरा डाले रहे. इसके बावजूद यहां की जनता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कम पसंद किया. इसका कारण यह है कि मुरैना जिले की 5 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 3 विधानसभा सीटों पर बाजी मार ली. वहीं ग्वालियर जिले की तीन सीटों में से 2 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. भिंड जिले से एक और शिवपुरी जिले से 1 सीट कांग्रेस के खाते में गई.इससे साबित होता है ज्योतिरादित्य सिंधिया को खुद के ही घर में लोगों ने कम पसंद किया.

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली

इन सीटों पर हारे सिंधिया समर्थक

ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ ग्वालियर चंबल अंचल में 16 सीटें थी और इन सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरी ताकत झोंक दी थी. इसके बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने घर से 50 फीसदी सीटें हार गए.

मुरैना विधानसभा

मुरैना सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी थी, क्योंकि यहां पर उनके समर्थक रघुराज सिंह कंसाना चुनाव मैदान में थे. कभी सिंधिया के ही समर्थक रहे कांग्रेस नेता राकेश मावई ने रघुराज सिंह कंसाना को 5751 वोटों से हरा दिया.

दिमनी विधानसभा

इस विधानसभा से राज्यमंत्री और बीजेपी प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया को कांग्रेस की प्रत्याशी रविंद्र सिंह तोमर ने हरा दिया. राज्यमंत्री गिर्राज दंडोतिया सिंधिया के बेहद करीबी माने जाते हैं. वह भी सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे.

सुमावली विधानसभा

कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए कैबिनेट मंत्री एंदल सिंह कंषाना को अबकी बार करारी हार का सामना करना पड़ा है. यहां भी कांग्रेस के प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाहा ने बाजी मार ली. हालांकि एंदल सिंह कंषाना सिंधिया समर्थकों की लिस्ट में नहीं आते हैं.

ग्वालियर पूर्व विधानसभा

ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट, सिंधिया का गढ़ मानी जाती है. साथ ही इसी क्षेत्र के अंतर्गत केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मंत्री माया सिंह का गृह निवास भी आता है. यही वजह है कि सिंधिया के अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, माया सिंह ने जनता के बीच जाकर खूब पसीना बहाया. लेकिन अबकी बार उनकी मेहनत काम नहीं आई. यही वजह रही कि बीजेपी उम्मीदवार मुन्नालाल गोयल को हराकर कांग्रेस के उम्मीदवार सतीश सिंह सिकरवार ने 8555 वोटों से जीत हासिल की.

डबरा विधानसभा

उपचुनाव की सबसे हाई प्रोफाइल सीट वही डबरा विधानसभा में कांग्रेस ने अबकी बार सिंधिया के बेहद करीबी मंत्री इमरती देवी को करारी शिकस्त दी है. तीन बार विधायक विधायक रहीं मंत्री इमरती देवी को उनके ही समधी सुरेश राजे ने 7633 मतों से हरा दिया. डबरा विधानसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान ताबड़-तोड़ सभाएं और रैलियों की, लेकिन उनका जादू फीका रहा.

करैरा विधानसभा

इस सीट पर बीजेपी के जसवंत जाटव कांग्रेस के प्रगीलाल जाटव से 30641 वोटों से चुनाव हार गए. जबकि सिंधिया ने यहां 3 सभाएं ली थी. फिर भी सिंधिया का जादू नहीं चला.

गोहद विधानसभा

गोहद सीट ज्योतिराज सिंधिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी थी, सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा मेहनत की थी. इसके बाद भी कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव ने रणवीर जाटव को 11899 वोट के अंतर से चुनाव हरा दिया. जो सिंधिया के लिए चंबल में सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है.

कांग्रेस को बिकाऊ-टिकाऊ का मिला फायदा

इस उपचुनाव में पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी सिंधिया के घर में ही सबसे ज्यादा मेहनत की और यही वजह है कि उन्होंने हर विधानसभा में जाकर सिंधिया को गद्दार साबित किया. उन्होंने जनता के बीच बिकाऊ शब्द सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया और जनता के बीच मैसेज पहुंचाया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने अपने फायदे के लिए सरकार गिराई है.

सिंधिया की साख पर 'बट्टा'

राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के हारने से उनकी ताकत पर भी काफी असर हुआ है, क्योंकि उनके 50 फीसदी समर्थक चुनाव हार चुके हैं. वो भी उन क्षेत्रों में जहां सिंधिया की पकड़ मजबूत मानी जाती है.

पहली बार सिंधिया के बिना कांग्रेस चंबल में कांग्रेस मजबूत

भले ही इस उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीट है बीजेपी के खाते में गई हैं, लेकिन ग्वालियर,मुरैना, भिंड और शिवपुरी जिले में कांग्रेस ने बाजी मार ली. यही वजह है कि अबकी बार बिना सिंधिया के कांग्रेस सबसे ज्यादा ताकतवर दिखी. बीजेपी की सीटें भले ही ज्यादा आ गई हों, लेकिन कांग्रेस इस बात पर खुश नजर आ रही है कि उन्होंने सिंधिया के घर में ही और उनके बिना सबसे अधिक सीटें हासिल की हैं.

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