ग्वालियर। हिंदी में मेडिकल (MBBS) की पढ़ाई शुरू होने को लेकर बहस भी छिड़ गई है और मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां MBBS की पढ़ाई हिन्दी में कराई जा रही है. साल 2022 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने MBBS फर्स्ट ईयर की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायो केमिस्ट्री की हिंदी किताबों का विमोचन किया था, लेकिन प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों को लगभग 10 माह बाद हिंदी की किताबें मिलना शुरू हुई हैं.
ग्वालियर अंचल के GRMC (गजराराजा मेडिकल कॉलेज) के 200 छात्रों में से 78 छात्र यह किताबें पाकर काफी खुश हैं, लेकिन हिंदी में MBBS की पढाई को लेकर घोषणा के बाद से ही विरोध और बहस भी छिड़ गई है, जिसके तहत हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के मेडिकल स्टूडेंट के बीच की खाई कैसे पटेगी..?
मेडिकल के शब्दों को हिंदी में समझना मुश्किल: मेडिकल यानी चिकित्सा के क्षेत्र में तकनीकी शब्दों को हिंदी में समझना बेहद मुश्किल काम होता है, प्रदेश में MBBS की हिंदी में पढ़ाई को चैलेंज बहुत हैं क्योंकि सरकार ने अपनी इच्छा के अनुसार सिर्फ मेडिकल फील्ड में ही यह निर्णय लिया है.
इस मुद्दे पर MTA (मेडिकल टीचर एसोसिएशन) के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल का कहना है कि "हिंदी प्रथम वर्ष की पढ़ाई का ऑडिट होना जरूरी है, जिससे पता चल सके कि कितने बच्चों ने इसका लाभ लिया, हिंदी किताबें छात्रों के लिए कितनी लाभान्वित हुई हैं अन्यथा बिना ऑडिट के सारी की सारी मेहनत बेकार जाएगी."
हिंदी प्रदेश के डॉक्टरों का भविष्य: कहा तो यह भी जा रहा है कि तकनीकी शब्दों का अनुवाद करने की जगह पर उनकी लिपि बदल देने से क्या भाषा समझ में आने लगेगी? क्या हिंदी माध्यम के छात्र ग्रेजुएशन के बाद चेन्नई, पुणे या बेंगलुरु जाकर आगे की पढ़ाई कर पाएंगे? क्या अब हिंदी प्रदेश के डॉक्टरों का प्रदेश में ही रहना अनिवार्य होगा?
हिंदी में MBBS करने वाला छात्र इंटरनेशनल कांफ्रेंस में कौन सी भाषा लेकर शामिल होगा? पेपर कैसे प्रस्तुत करेगा? थीसिस किस भाषा में लिखेगा? वहीं IMA (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के ग्वालियर अध्यक्ष डॉक्टर बृजेश ने बताया कि "हिंदी पाठ्यक्रम वाले छात्रों को शुरुआत में कुछ दिक्कतें तो जरूर आएंगी, लेकिन उन छात्रों को सबसे ज्यादा फायदा होगा जिन्हें अंग्रेजी में दिक्कतें आती हैं."
क्या सच में मेडिकल की हिंदी से पढ़ाई हुई आसान?: मेडिकल की पढ़ाई हिंदी माध्यम से कराए जाने को लेकर सवाल यह उठ रहा है कि सरकार को समय-समय पर हिंदी पाठ्यक्रम में बदलाव लाने की आवश्यकता है. दूसरी ओर हाल ही में जिन छात्रों ने प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया है, उन छात्रों की भी मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आईं हैं. छात्रों का कहना है कि "अंग्रेजी की किताबों में कुछ चीजें समझ में देर से आती थी, लेकिन हिंदी की किताबों ने काफी आसान कर दिया है."
सिर्फ लिपि बदली, भाषा नहीं: हिंदी माध्यम से मेडिकल की पढ़ाई को लेकर गजरा राजा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ अक्षय निगम का कहना है कि "हिंदी पाठ्यक्रम में MBBS करने में किसी भी प्रकार का कोई चैलेंज नहीं है, सिर्फ लिपि बदली गई है, भाषा नहीं बदली गई है. छात्र देश में या विदेश में आगे की पढ़ाई करें, कोई अंतर पढ़ने वाला नहीं है."
डॉ अक्षय निगम आगे कहते हैं कि "हमारे कॉलेज में 200 सीटें हैं, 2023 की काउंसलिंग जल्द शुरू होने वाली है, प्रथम वर्ष के छात्रों में से 78 छात्रों को हिंदी पाठ्यक्रम की किताबें दी जा चुकी हैं." डीन का दावा है कि "छात्र काफी उत्साहित हैं, आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों को इसका बहुत लाभ मिलेगा."
क्या एमपी तक सीमित रह जाएगा एमबीबीएस का छात्र: बहरहाल हिंदी में मेडिकल डॉक्टरों की पढ़ाई को लेकर संशय अभी भी बरकरार है. सवाल यह भी सामने है कि भारत से मेडिकल के कई छात्र रुस, यूक्रेन, चीन जाते हैं, वहां की भाषा सीखते हैं क्योंकि पढ़ाई का माध्यम उनकी अपनी भाषा ही है, अंग्रेजी नहीं. क्या हिंदी में MBBS करने वाला मेडिकल छात्र MS या MD करने दक्षिण भारत या विदेश जाकर पढ़ सकता है? क्या हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई करने वाला छात्र दक्षिणी राज्यों में प्रैक्टिस कर सकता है?
इसके अलावा अगर हिंदी माध्यम से एमबीबीएस की डिग्री हासिल भी कर ली जाती है, तो क्या दूसरे राज्यों और विदेश में उसे मान्यता मिलेगी? या फिर अपने ही घर यानी मध्यप्रदेश में सीमित होकर तो नहीं रह जाएगा मेडिकल का छात्र?