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MP विधानसभा चुनाव में जिन दिग्गजों ने दिखाया दम, उनको ही पार्टी ने किया दरकिनार

Senior leaders sideline in MP politics: कहते हैं कि युद्ध के मैदान में सब जायज है ऐसा ही अक्सर राजनीति में देखने को मिलता है.हाल में एमपी विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही कुछ हुआ.बीजेपी ने जिन दिग्गजों के दम पर वापस सत्ता पाई.उन्हीं को पार्टी ने दरकिनार कर दिया. ये सभी बड़े नेता भले ही कुछ ना कहें लेकिन उनके मायूस चेहरों से साफ झलक रहा है कि जो हुआ वह ठीक नहीं है. कहा जाए इन सभी नेताओं को हाशिये पर ढकेल दिया है तो गलत नहीं होगा.

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एमपी की राजनीति में दिग्गज दरकिनार
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 14, 2023, 3:43 PM IST

एमपी की राजनीति में दिग्गज दरकिनार

ग्वालियर। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर उज्जैन से विधायक मोहन यादव को अबकी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया है. उनके साथ दो डिप्टी सीएम ने भी शपथ ली है. इसके बावजूद भी मध्य प्रदेश में किसी प्रकार का कुछ जश्न देखने को नहीं मिला. सीनियर नेताओं के चेहरे का नूर उड़ा हुआ है. इसका कारण यह है कि जिन दिग्गजों के चेहरे पर अबकी बार चुनाव लड़ा गया पार्टी ने उनको ही दरकिनार कर दिया है. इन सभी दिग्गजों ने प्रदेश में पार्टी को बंपर सीटें दी, लेकिन इसके बावजूद इसके बदले में उन्हें निराशा और हताशा ही हाथ लगी है.

हाशिये पर कद्दावर नेता: मध्य प्रदेश में मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में बीजेपी का कमल खिलाने का दारोमदार पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेता कैलाश विजयवर्गीय, नरेन्द्र सिंह तोमर, सिंधिया और प्रहलाद पटेल को सौंपा गया. यह सभी चारों नेता प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के दिग्गज नेता माने जाते हैं और इन सभी नेताओं का अपने इलाकों में वर्चस्व होने के कारण पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति से उतार कर विधानसभा का चुनाव लड़ाया. इसके बाद इन सभी दिग्गज और उनके समर्थकों को यह उम्मीद थी कि यह सभी प्रदेश में मुख्यमंत्री के नए दावेदार हैं. इसके साथ ही इन सभी दिग्गजों को उम्मीद थी कि उन्हें प्रदेश स्तर की राजनीति में एक बड़ा कद मिलेगा. लेकिन इन सभी दिग्गजों को पार्टी ने हाशिए पर रखकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

सीएम की रेस से बाहर: ग्वालियर चंबल अंचल की बात करें तो अबकी बार पार्टी ने केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को उनके ही क्षेत्र दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ाया और वह बंपर वोटों से जीते. विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने उनका सांसद और मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया. इसके बाद उनके समर्थक और अंचल की जनता यह मान रही थी कि पार्टी मध्य प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर को एक बड़ा पद देने जा रही है जिसमें मुख्यमंत्री का चेहरा सबसे पहले था, लेकिन जब पार्टी ने मुख्यमंत्री की घोषणा की तो तोमर को मुख्यमंत्री की रेस बाहर कर दिया. हालांकि संतोष इस बात पर कर सकते हैं कि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया.

सिंधिया को नहीं मिली तवज्जो: याद कीजिए 2020 में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर बीजेपी की सरकार बनवाई थी. उस समय भी यही चर्चा थी कि कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने के कारण सिंधिया ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया. इस बार उनकी भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर संभावनाएं जताई जाने लगीं थी. इसका कारण यह था कि इस विधानसभा चुनाव में सिंधिया को स्टार प्रचारक के रूप में पूरे मध्य प्रदेश में प्रचार प्रसार कराया गया. साथ ही प्रचार प्रसार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह लगातार सिंधिया की तारीफ करते हुए नजर आए. इसलिए ऐसा लग रहा था कि अबकी बार प्रदेश की कमान सिंधिया को मिल सकती है, लेकिन इस बार सिंधिया को मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई तवज्जो नहीं मिल पाई.

कैलाश विजयवर्गीय भी हताश: ग्वालियर चंबल-अंचल के बाद मालवा-निमाड़ के सबसे कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को राष्ट्रीय राजनीति से उतारकर अबकी बार विधानसभा चुनाव में उतारा गया. कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे की सीट पर चुनाव लड़े और वह खुद जीत कर आए. इसके साथ ही इंदौर की सभी 9 सीटों को भी जिताकर लाए. मालवा निमाड़ में अबकी बार बीजेपी ने अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की. मालवा में प्रचंड जीत के बाद यह माना जा रहा था कि प्रदेश की कमान बीजेपी अबकी बार कैलाश विजयवर्गीय को सौंप सकती है और वह सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहे थे. लेकिन जब सीएम के चेहरे की बात आई तो उन्हें पीछे धकेल दिया और सबसे हताशा और निराशा की बात यह है कि उन्हें ना तो सीएम का पद दिया और ना ही डिप्टी सीएम. वह सिर्फ विधायक बनकर रह गए.

प्रहलाद पटेल भी साइडलाइन: महाकौशल में पार्टी ने चार दिग्गजों को जीतने की जिम्मेदारी दी थी. इन सभी को राष्ट्रीय राजनीति से प्रदेश में लाया गया. जिसमें सबसे पहला नाम केंद्रीय मंत्री रहे प्रहलाद पटेल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, केंद्रीय मंत्री रहे फग्गन सिंह कुलस्ते दी थी. पार्टी ने इन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाया और उसके बाद इन सभी दिग्गजों ने महाकौशल की 38 सीटों में से बीजेपी को 22 सीटों पर जीत दर्ज कराकर दी. प्रचंड बहुमत से बीजेपी के जीतने के बाद यह कयास लगाये जा रहे थे कि मध्य प्रदेश में सीएम के चेहरे को लेकर पार्टी प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह को ला सकती है. जब विधायक दल की बैठक की तैयारी हुई तो उससे एक दिन पहले जोर-शोर से सीएम की रेस में प्रहलाद पटेल का नाम शुरू हो गया और यह माना जाने लगा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रहलाद पटेल को पार्टी सामने ला सकती है. लेकिन जब पार्टी ने सीएम की घोषणा की तो इन सभी दिग्गजों को भी साइड लाइन पर रख दिया.

सपने हो गए चकनाचूर: जिन दिग्गजों की दम पर भाजपा ने फिर से मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल की उन्हें पार्टी ने बेरंग कर दिया है. इन सभी दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य अब क्या होगा यह तो पार्टी के आलाकमान को पता है लेकिन फिलहाल इन सभी दिग्गजों ने जिस तरीके से बड़े सपने संजोय रखे थे वह चकनाचूर हो गए हैं.

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एमपी की राजनीति में दिग्गज दरकिनार

ग्वालियर। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर उज्जैन से विधायक मोहन यादव को अबकी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया है. उनके साथ दो डिप्टी सीएम ने भी शपथ ली है. इसके बावजूद भी मध्य प्रदेश में किसी प्रकार का कुछ जश्न देखने को नहीं मिला. सीनियर नेताओं के चेहरे का नूर उड़ा हुआ है. इसका कारण यह है कि जिन दिग्गजों के चेहरे पर अबकी बार चुनाव लड़ा गया पार्टी ने उनको ही दरकिनार कर दिया है. इन सभी दिग्गजों ने प्रदेश में पार्टी को बंपर सीटें दी, लेकिन इसके बावजूद इसके बदले में उन्हें निराशा और हताशा ही हाथ लगी है.

हाशिये पर कद्दावर नेता: मध्य प्रदेश में मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में बीजेपी का कमल खिलाने का दारोमदार पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेता कैलाश विजयवर्गीय, नरेन्द्र सिंह तोमर, सिंधिया और प्रहलाद पटेल को सौंपा गया. यह सभी चारों नेता प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के दिग्गज नेता माने जाते हैं और इन सभी नेताओं का अपने इलाकों में वर्चस्व होने के कारण पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति से उतार कर विधानसभा का चुनाव लड़ाया. इसके बाद इन सभी दिग्गज और उनके समर्थकों को यह उम्मीद थी कि यह सभी प्रदेश में मुख्यमंत्री के नए दावेदार हैं. इसके साथ ही इन सभी दिग्गजों को उम्मीद थी कि उन्हें प्रदेश स्तर की राजनीति में एक बड़ा कद मिलेगा. लेकिन इन सभी दिग्गजों को पार्टी ने हाशिए पर रखकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

सीएम की रेस से बाहर: ग्वालियर चंबल अंचल की बात करें तो अबकी बार पार्टी ने केंद्रीय मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को उनके ही क्षेत्र दिमनी विधानसभा से चुनाव लड़ाया और वह बंपर वोटों से जीते. विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने उनका सांसद और मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया. इसके बाद उनके समर्थक और अंचल की जनता यह मान रही थी कि पार्टी मध्य प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर को एक बड़ा पद देने जा रही है जिसमें मुख्यमंत्री का चेहरा सबसे पहले था, लेकिन जब पार्टी ने मुख्यमंत्री की घोषणा की तो तोमर को मुख्यमंत्री की रेस बाहर कर दिया. हालांकि संतोष इस बात पर कर सकते हैं कि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया.

सिंधिया को नहीं मिली तवज्जो: याद कीजिए 2020 में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का दामन थामकर बीजेपी की सरकार बनवाई थी. उस समय भी यही चर्चा थी कि कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने के कारण सिंधिया ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया. इस बार उनकी भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर संभावनाएं जताई जाने लगीं थी. इसका कारण यह था कि इस विधानसभा चुनाव में सिंधिया को स्टार प्रचारक के रूप में पूरे मध्य प्रदेश में प्रचार प्रसार कराया गया. साथ ही प्रचार प्रसार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह लगातार सिंधिया की तारीफ करते हुए नजर आए. इसलिए ऐसा लग रहा था कि अबकी बार प्रदेश की कमान सिंधिया को मिल सकती है, लेकिन इस बार सिंधिया को मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई तवज्जो नहीं मिल पाई.

कैलाश विजयवर्गीय भी हताश: ग्वालियर चंबल-अंचल के बाद मालवा-निमाड़ के सबसे कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय को राष्ट्रीय राजनीति से उतारकर अबकी बार विधानसभा चुनाव में उतारा गया. कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे की सीट पर चुनाव लड़े और वह खुद जीत कर आए. इसके साथ ही इंदौर की सभी 9 सीटों को भी जिताकर लाए. मालवा निमाड़ में अबकी बार बीजेपी ने अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की. मालवा में प्रचंड जीत के बाद यह माना जा रहा था कि प्रदेश की कमान बीजेपी अबकी बार कैलाश विजयवर्गीय को सौंप सकती है और वह सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहे थे. लेकिन जब सीएम के चेहरे की बात आई तो उन्हें पीछे धकेल दिया और सबसे हताशा और निराशा की बात यह है कि उन्हें ना तो सीएम का पद दिया और ना ही डिप्टी सीएम. वह सिर्फ विधायक बनकर रह गए.

प्रहलाद पटेल भी साइडलाइन: महाकौशल में पार्टी ने चार दिग्गजों को जीतने की जिम्मेदारी दी थी. इन सभी को राष्ट्रीय राजनीति से प्रदेश में लाया गया. जिसमें सबसे पहला नाम केंद्रीय मंत्री रहे प्रहलाद पटेल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, केंद्रीय मंत्री रहे फग्गन सिंह कुलस्ते दी थी. पार्टी ने इन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाया और उसके बाद इन सभी दिग्गजों ने महाकौशल की 38 सीटों में से बीजेपी को 22 सीटों पर जीत दर्ज कराकर दी. प्रचंड बहुमत से बीजेपी के जीतने के बाद यह कयास लगाये जा रहे थे कि मध्य प्रदेश में सीएम के चेहरे को लेकर पार्टी प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह को ला सकती है. जब विधायक दल की बैठक की तैयारी हुई तो उससे एक दिन पहले जोर-शोर से सीएम की रेस में प्रहलाद पटेल का नाम शुरू हो गया और यह माना जाने लगा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रहलाद पटेल को पार्टी सामने ला सकती है. लेकिन जब पार्टी ने सीएम की घोषणा की तो इन सभी दिग्गजों को भी साइड लाइन पर रख दिया.

सपने हो गए चकनाचूर: जिन दिग्गजों की दम पर भाजपा ने फिर से मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल की उन्हें पार्टी ने बेरंग कर दिया है. इन सभी दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य अब क्या होगा यह तो पार्टी के आलाकमान को पता है लेकिन फिलहाल इन सभी दिग्गजों ने जिस तरीके से बड़े सपने संजोय रखे थे वह चकनाचूर हो गए हैं.

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