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संक्रांति के स्वादः चंबल की शाही गजक देश-दुनिया में प्रसिद्ध, मकर संक्रांति के लिए है खास

मुरैना की गजक देश ही नहीं दुनिया में मशहूर है. मकर संक्रांति पर इसकी डिमांड और बढ़ जाती है. मुरैना की गजक के फेमस होने के दो कारण है. पहला तो ये कि यहां खास तरीके से गजक बनाई जाती है, जिस वजह से लोग इसे पंसद करते हैं. दूसरा यहां की भौगोलिक स्थिति की वजह से भी यहां की गजक में अलग स्वाद आता है. गजक कारीगरों की मानें तो चंबल का मीठा पानी इसे और स्वादिष्ट बनाता है.

famous gajak of morena
चंबल की शाही गजक देश-दुनिया में प्रसिद्ध
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Published : Jan 12, 2022, 8:42 PM IST

ग्वालियर। ठंड के मौसम में तिल से बने व्यंजनों की बात ही कुछ और है. मकर संक्रांति के मौके पर इनकी पूछ-परख और भी बढ़ (mp gajak importance on makar sankranti) जाती है, और अगर बात चंबल के गजक की हो तो फिर कहना ही क्या. अगर आप भी सर्दी में गजक खान के शौकीन हैं और आप भी ग्वालियर चंबल की गजक के बारे में जानना चाहते हैं तो हम आपको बताते हैं कि यहां की गजक आखिर क्यों इतनी खास होती है और इसे कैसे बनाते हैं. आइए जानते हैं ग्वालियर की शाही गजक से जुड़ी हर एक बात.

80-90 साल पुराना इतिहास
चंबल में मुरैना जिले में बनाई जाने वाली मशहूर शाही गजक (famous gajak of morena) का इतिहास लगभग 80 से 90 साल पुराना है. चंबल के मुरैना जिले में यह शाही गजक बनाई जाती है. यहां की गजक देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है. मुरैना जिले से देश के अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ सात समंदर पार यानी विदेश तक शाही गजक पार्सल द्वारा पहुंचाई जाती है. सर्दियां शुरू होते ही यानी नवंबर के अंत से ही यहां गजक बनना शुरू होती है और जब तक सर्दियां रहती हैं तब तक यहां पर गजक बनाने का कारोबार चलता रहता है.

चंबल की शाही गजक देश-दुनिया में प्रसिद्ध

चंबल के पानी का है जादू!
मुरैना जिले में लगभग 200 से अधिक कारीगर हैं जो गजक बनाने का काम करते हैं. यूं तो अब गजक मुरैना जिले के अलावा ग्वालियर चंबल संभाग के सभी जिलों में बनाई जाने लगी है. इसके साथ ही यहां से कारीगर अलग-अलग राज्यों में पहुंचकर गजक बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन गजक का असली स्वाद तो चंबल यानी मुरैना की गजक में ही आता है. कारीगरों का मानना है कि चंबल नदी के पानी की तासीर के कारण गजक बेहद टेस्टी लगती है. साथ ही ये सेहत के लिए भी यह फायदेमंद रहती है.

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इम्युनिटी बढ़ाने में भी सहायक
स्वाद के साथ-साथ इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए भी यह गजक खास है. गजक बनाने में इस्तेमाल होने वाली तिल और गुड़ सर्दियों में शरीर के लिए औषधि का काम करती है. कोरोना जैसी महामारी के समय में जहां लोग अपने शरीर की इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए कई तरह की दवाइयां और महंगी खाद्य पदार्थ खा रहे हैं, वही गजक उनके स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ही लाभदायक है. गजक गर्म तासीर की होती है, इस वजह से यह सर्दियों के लिए एक टॉनिक का काम करती है और सबसे खास बात यह है क्या मिठाई सबसे शुद्ध और सुरक्षित आती है क्योंकि इसे बनाने में शुद्ध गुड़, चीनी और तिल का उपयोग किया जाता है.

गजक की 25 वैरायटी
चंबल में 20 से 25 वैरायटी की गजक बनाई जाती है. वैसे तो मुरैना में बनने वाली गुड़ और शक्कर की गजक काफी प्रसिद्ध (gajak demand on makar sankranti in mp) है, लेकिन अब अंचल में कई वैरायटी की गजक बनाई जा रही है. जिसमें गजक के लड्डू,पटरी रोल, समोसा गजक जैसी कई वैरायटी प्रमुख है. यहां से गजक पूरे देश भर के अलग-अलग राज्यों में जाती है और मुरैना के लगभग सौ से अधिक कारीगर अलग-अलग राज्यों में गजक बनाने का काम करते हैं.
मकर संक्रांति पर खास है गजक
मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) के मौके पर तिल का महत्व बढ़ जाता है. यही वजह है कि इस मौके पर मुरैना की गजक की भारी डिमांड रहती है. हर कोई मिठाई के बदले यह शुद्ध और सेहत से भरी मिठाई यानी गजक लेना पसंद करता है. इतना ही नहीं मकर संक्रांति के मौके पर चंबल में गजक मेला भी लगाया जाता है, जिसमें अलग-अलग वैरायटी की दर्जनों भर गजक यहां पर मिलती है. मकर संक्रांति के मौके पर चंबल के मुरैना जिले में लगभग 50 क्विंटल की बिक्री होती है.

कैसे बनती है गुड़ की स्वादिष्ट गजक
इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री है देसी शुद्ध गुड़, साफ और स्वच्छ तिल. सबसे पहले हम एक कढ़ाई में साफ और स्वच्छ तिल को धीमी आंच पर सेंकते हैं. तिल को सेंकने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि तिल जलनी नहीं चाहिए. तिल को सेंकने के बाद उसे अलग रख दें. उसके बाद हम पानी को गर्म करते हैं और उसमें साफ गुड़ मिलाया जाता है. इससे गुड़ की चाशनी तैयार की जाती है. 20 मिनट के बाद इस गुड़ की चाशनी को बड़ी प्लेट ठंडा किया जाता है. चाशनी को ठंडा होने के बाद इसके लेयर बना लें और उसके बाद इस लेयर को लकड़ी की सहारे खींचा जाता है. इसे तब तक खींचते हैं जब तक इस चाशनी की लेयर का रंग सफेद न हो जाए. यह विधि लगभग 20 से 25 मिनट तक की जाती है. उसके बाद इस चाशनी की लेयर को भुनी हुई तिल में मिलाते हैं. और उसके बाद इसकी कुटाई करते हैं, अच्छे से लगभग 10 से 15 मिनट कुटाई की जाती है ताकि चाशनी और तिल पूरी तरह से मिल सके. अच्छी तरह से मिलने के बाद उसको किसी बड़ी पत्थर की पाट पर रखा जाता है और उसके बाद फिर साइज के हिसाब से काटते हैं. और उसके बाद गजक बनकर तैयार हो जाती है. शक्कर की गजक बनाने के लिए यही विधि अपनाई जाती है, बस गुड़ की जगह में शक्कर की चाशनी तैयार करते हैं और उसके बाद यही विधि अपनाते हैं.

ग्वालियर। ठंड के मौसम में तिल से बने व्यंजनों की बात ही कुछ और है. मकर संक्रांति के मौके पर इनकी पूछ-परख और भी बढ़ (mp gajak importance on makar sankranti) जाती है, और अगर बात चंबल के गजक की हो तो फिर कहना ही क्या. अगर आप भी सर्दी में गजक खान के शौकीन हैं और आप भी ग्वालियर चंबल की गजक के बारे में जानना चाहते हैं तो हम आपको बताते हैं कि यहां की गजक आखिर क्यों इतनी खास होती है और इसे कैसे बनाते हैं. आइए जानते हैं ग्वालियर की शाही गजक से जुड़ी हर एक बात.

80-90 साल पुराना इतिहास
चंबल में मुरैना जिले में बनाई जाने वाली मशहूर शाही गजक (famous gajak of morena) का इतिहास लगभग 80 से 90 साल पुराना है. चंबल के मुरैना जिले में यह शाही गजक बनाई जाती है. यहां की गजक देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है. मुरैना जिले से देश के अलग-अलग राज्यों के साथ-साथ सात समंदर पार यानी विदेश तक शाही गजक पार्सल द्वारा पहुंचाई जाती है. सर्दियां शुरू होते ही यानी नवंबर के अंत से ही यहां गजक बनना शुरू होती है और जब तक सर्दियां रहती हैं तब तक यहां पर गजक बनाने का कारोबार चलता रहता है.

चंबल की शाही गजक देश-दुनिया में प्रसिद्ध

चंबल के पानी का है जादू!
मुरैना जिले में लगभग 200 से अधिक कारीगर हैं जो गजक बनाने का काम करते हैं. यूं तो अब गजक मुरैना जिले के अलावा ग्वालियर चंबल संभाग के सभी जिलों में बनाई जाने लगी है. इसके साथ ही यहां से कारीगर अलग-अलग राज्यों में पहुंचकर गजक बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन गजक का असली स्वाद तो चंबल यानी मुरैना की गजक में ही आता है. कारीगरों का मानना है कि चंबल नदी के पानी की तासीर के कारण गजक बेहद टेस्टी लगती है. साथ ही ये सेहत के लिए भी यह फायदेमंद रहती है.

मकर संक्रांति पर कोरोना का साया, जबलपुर में नर्मदा घाटों पर नहीं लगेंगे मेले

इम्युनिटी बढ़ाने में भी सहायक
स्वाद के साथ-साथ इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए भी यह गजक खास है. गजक बनाने में इस्तेमाल होने वाली तिल और गुड़ सर्दियों में शरीर के लिए औषधि का काम करती है. कोरोना जैसी महामारी के समय में जहां लोग अपने शरीर की इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए कई तरह की दवाइयां और महंगी खाद्य पदार्थ खा रहे हैं, वही गजक उनके स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ही लाभदायक है. गजक गर्म तासीर की होती है, इस वजह से यह सर्दियों के लिए एक टॉनिक का काम करती है और सबसे खास बात यह है क्या मिठाई सबसे शुद्ध और सुरक्षित आती है क्योंकि इसे बनाने में शुद्ध गुड़, चीनी और तिल का उपयोग किया जाता है.

गजक की 25 वैरायटी
चंबल में 20 से 25 वैरायटी की गजक बनाई जाती है. वैसे तो मुरैना में बनने वाली गुड़ और शक्कर की गजक काफी प्रसिद्ध (gajak demand on makar sankranti in mp) है, लेकिन अब अंचल में कई वैरायटी की गजक बनाई जा रही है. जिसमें गजक के लड्डू,पटरी रोल, समोसा गजक जैसी कई वैरायटी प्रमुख है. यहां से गजक पूरे देश भर के अलग-अलग राज्यों में जाती है और मुरैना के लगभग सौ से अधिक कारीगर अलग-अलग राज्यों में गजक बनाने का काम करते हैं.
मकर संक्रांति पर खास है गजक
मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) के मौके पर तिल का महत्व बढ़ जाता है. यही वजह है कि इस मौके पर मुरैना की गजक की भारी डिमांड रहती है. हर कोई मिठाई के बदले यह शुद्ध और सेहत से भरी मिठाई यानी गजक लेना पसंद करता है. इतना ही नहीं मकर संक्रांति के मौके पर चंबल में गजक मेला भी लगाया जाता है, जिसमें अलग-अलग वैरायटी की दर्जनों भर गजक यहां पर मिलती है. मकर संक्रांति के मौके पर चंबल के मुरैना जिले में लगभग 50 क्विंटल की बिक्री होती है.

कैसे बनती है गुड़ की स्वादिष्ट गजक
इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री है देसी शुद्ध गुड़, साफ और स्वच्छ तिल. सबसे पहले हम एक कढ़ाई में साफ और स्वच्छ तिल को धीमी आंच पर सेंकते हैं. तिल को सेंकने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि तिल जलनी नहीं चाहिए. तिल को सेंकने के बाद उसे अलग रख दें. उसके बाद हम पानी को गर्म करते हैं और उसमें साफ गुड़ मिलाया जाता है. इससे गुड़ की चाशनी तैयार की जाती है. 20 मिनट के बाद इस गुड़ की चाशनी को बड़ी प्लेट ठंडा किया जाता है. चाशनी को ठंडा होने के बाद इसके लेयर बना लें और उसके बाद इस लेयर को लकड़ी की सहारे खींचा जाता है. इसे तब तक खींचते हैं जब तक इस चाशनी की लेयर का रंग सफेद न हो जाए. यह विधि लगभग 20 से 25 मिनट तक की जाती है. उसके बाद इस चाशनी की लेयर को भुनी हुई तिल में मिलाते हैं. और उसके बाद इसकी कुटाई करते हैं, अच्छे से लगभग 10 से 15 मिनट कुटाई की जाती है ताकि चाशनी और तिल पूरी तरह से मिल सके. अच्छी तरह से मिलने के बाद उसको किसी बड़ी पत्थर की पाट पर रखा जाता है और उसके बाद फिर साइज के हिसाब से काटते हैं. और उसके बाद गजक बनकर तैयार हो जाती है. शक्कर की गजक बनाने के लिए यही विधि अपनाई जाती है, बस गुड़ की जगह में शक्कर की चाशनी तैयार करते हैं और उसके बाद यही विधि अपनाते हैं.

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