ग्वालियर। कोरोना महामारी का जख्म अभी तक कोई नहीं भूल पाया है. उसके बाद एक बार फिर संक्रमण ने दस्तक दे दी है. इस महामारी में अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी ने झेला है, तो वो मजबूर मजदूर है.
2020 में लगे लॉकडाउन के कारण मजदूर हजारों किलोमीटर तक अपने मासूम बच्चों को कंधों पर रखकर पैदल घर पहुंचे. हालात यह हो चुके थे कि यह दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर भटकने लगे, लेकिन साल के अंत तक स्थिति में सुधार होने लगा. मजदूर पहले जहां काम करते थे, उन फैक्ट्रियों में काम करने लगे, पर साल 2021 की शुरुआत में कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी है. अब इस महामारी की वजह से मजदूर दहशत में आ गए हैं. इन्हें फिर से पलायन करने का डर सताने लगा है.
साल 2020 में जब कोरोना महामारी ने दस्तक दी, तो पूरे देश की आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी. इस महामारी के चलते सभी वर्ग को नुकसान झेलना पड़ा है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी मजदूरों को हुई. फैक्ट्रियां बंद होने के बाद उनकी रोजी-रोटी पूरी तरह से छीन गई. उन्हें हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर जाना पड़ा. साल के अंत में जब कोरोना का असर कम हुआ, तो फैक्ट्रियां दोबारा शुरू हुई. मजदूर भी धीरे-धीरे काम पर लौटने लगे, लेकिन एक बार फिर कोरोना का खतरा बढ़ता जा रहा है.
मजदूरों का यह भी कहना है कि पिछले साल उन्हें कफी परेशानी हुई थी. कई तो घर पहुंचने से पहले ही अपनी जान गवा चुके थे. इसलिए उन्हें अबकी बार यह डर लग रहा है कि सरकार अगर लॉकडाउन लगाने का निर्णय लेती है, तो उससे पहले ही वह अपने घर की ओर रवाना हो जाए.
बामोर और मालनपुर में 5 हजार से अधिक मजदूर करते हैं मजदूरी
बामोर और मालनपुर ग्वालियर चंबल अंचल के सबसे बड़े उद्योग क्षेत्र है. यहां पर लगभग 500 से अधिक छोटी और बड़ी फैक्टरियां संचालित होती है. इन दोनों औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 5000 से अधिक बाहर के मजदूर काम करते हैं. यही वजह है कि साल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान सभी मजदूर अपने घर की ओर चले गए थे. उसके बाद सिर्फ 60 से 70 फीसदी मजदूर ही वापस आ पाए है, लेकिन फिर से वहीं स्थिति बनने लगी है.