ग्वालियर। करीब 116 साल पुराना मध्य प्रदेश के सबसे पुराने डेम में सुमार ग्वालियर के तिघरा डेम के लीकेज परेशानी का सबब बने हुए हैं. दो दर्जन से ज्यादा बड़े लीकेज हो गए हैं. जिनसे रोजाना कई गैलन पानी बर्बाद हो रहा है. इन लीकेज को भरने के लिए दो साल पहले टेंडर साइड पर भी अपलोड कर दिए गए, लेकिन कोई नहीं आया. अब एक नई एजेंसी आयी है तो वह मगरमच्छों के डर के कारण काम शुरू नहीं कर पा रही है. लेकिन अब इन जीव-जंतुओं से बचकर लीकेज सुधारने की तैयारी की जा रही है.
116 साल पुराना डैम तिघरा : दरअसल, ग्वालियर के तिघरा डेम को 116 साल पहले बनवाया गया था. इस डैम को बनाने के लिए देश के महान इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया की मदद ली गई थी. तब से आज तक यह डैम ग्वालियर की प्यास बुझा रहा है, लेकिन अब इस डैम में बड़े-बड़े लीकेज हो गए हैं. जो डैम पर खतरा हैं. अब सौ साल से ज्यादा पुराने तिघरा डेम में पानी का रिसाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. चाहे डेम की बीच की दीवार हो या फिर निचले हिस्से में पड़ी दरारें. लगातार पानी अपनी जगह बनाता जा रहा है.
रोजना कई गैलन पानी बर्बाद : लीकेड से रोजाना कई गैलन पानी रिसाव के जरिए बह रहा है. अब उसके अस्तित्व पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. डैम के पुराने 64 गेटों की दीवार के सुराख उसे कमजोर कर रहे हैं. यह खुलासा कुछ साल पहले डैम की जियो फिजिकल इंवेस्टीगेशन रिपोर्ट में हुआ था. साथ ही ये भी कहा था कि इन सुराखों का जल्द ही ट्रीटमेंट नहीं किया गया तो यह डैम के लिए खतरनाक हो सकता है. अब तिघरा बांध में पानी के अंदर लीकेज ढूंढ़कर मरम्मत का काम भोपाल की गाला प्रोटेक एलएलपी कंपनी को मिला है.
पेयजल को तरस रहा ग्वालियर, तिघरा डैम से लीकेज हो रहा लाखों लीटर पानी
नया टेंडर मंजूर : जल संसाधन विभाग ने कंपनी के टेंडर को मंजूरी दे दी है. बांध में पानी के भीतर के लीकेज ढूंढकर भरने के लिए गोताखोर उन लीकेज की मरम्मत करेंगे. लेकिन कंपनी ने अभी तक काम शुरू नहीं किया है. जिसके पीछे कारण मगरमच्छ हैं. ऐसे में सवाल यही है, क्या तिघरा के लीकेज भर पाएंगे, या नहीं. वैसे कंपनी को इन शर्तों पर टेंडर दिया गया है. तिघरा डेम में पानी के अंदर पोइंटिंग, ग्राउटिंग, बटरेस आदि कार्य में पहले रिमोट ऑपरेटेड व्हीकल की मदद से पानी के नीचे क्षतिग्रस्त भागों की वीडियोग्राफी की जाएगी. फिर क्षतिग्रस्त हिस्सों का मूल्यांकन किया जाएगा. यह व्हीकल हाई रेजोल्यूशन कैमरा, गहराई मापने वाले यंत्र, अल्टीमीटर एवं लेजर से लैस होगा, जिससे क्षतिग्रस्त हिस्से को चिह्नित किया जाएगा और उनका माप किया जाएगा. साथ ही सुरक्षा कवच होगा, जिससे मगरमच्छों के हमले से बचा जा सके.