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Gwalior Tansen Samaroh आवाज को सुरीली बनाती हैं इमली के इस पेड़ की पत्तियां, जानें क्या है सुरसम्राट का इमली कनेक्शन - तानसेन के इमली के पेड़ की कहानी

ग्वालियर में स्वर सम्राट तानसेन समाधि के ठीक बगल में एक इमली का पेड़ है जिसकी संगीतकार और स्वर साधकों के बीच खासी मान्यता है. संगीत सम्राट तानसेन और इमली के पत्तों के बीच का कनेक्शन एक बार फिर सुर्खियों में है. कलाकारों और स्थानीय लोगों के बीच मान्यता है कि जो भी इस इमली के पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है माना जाता है कि तानसेन में इमली के पेड़ की पत्तियां खाते थे. इसी मान्यता के चलते समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड़ की पत्तियां खाते हैं. हर बार की तरह इस बार भी तानसेन समारोह में शामिल होने समाधि स्थल पर कई लोग तानसेन को नमन करने के लिए पहुंच रहे हैं और उसके बाद इस इमली के पेड़ पर जाकर पत्तियां जरूर खाते हैं.

story of tamarind tree besides tansen samadhi
ग्वालियर में तानसेन के इमली के पेड़ की रोचक कहानी तानसेन को बनाया स्वर सम्राट
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Published : Dec 19, 2022, 7:09 PM IST

ग्वालियर में तानसेन के इमली के पेड़ की रोचक कहानी तानसेन को बनाया स्वर सम्राट

ग्वालियर। सोमवार से ग्वालियर में तानसेन संगीत समारोह का आगाज हो गया है. इस साल 98वें आयोजन में देश भर के कई विश्व प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों की अनूठी महफिल जमेगी. इस दौरान एक बार फिर से तानसेन की समाधि के ठीक बगल से लगा एक इमली का पेड़ भी सुर्खियों में है. ऐसी माना जाता है कि सुरों के सम्राट तानसेन की आवाज को इमली के पेड़ की पत्तियों ने सुरीला बनाया था. ऐसी कथा भी प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि तानसेन लगभग 5 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं सकते थे, जिसके बाद उन्हें उस्ताद मोहम्मद गौस ने गोद ले लिया और संगीत की शिक्षा दी. इस दौरान तानसेन बोलने तो लगे लेकिन उनकी आवाज सुरीली नहीं हुई. माना जाता है कि उन्हें स्वर सम्राट बनाने में इमली के पत्तों की खास भूमिका थी. यही वजह है कि आज भी तानसेन की समाधि स्थल पर जो भी कलाकार पहुंचतें वे इस इमली के पेड़ की पत्तियां जरूर खा रहा है. आइए बताते हैं इस इमली के पेड़ और संगीत सम्राट के कनेक्शन से जुड़ी रोचक कहानी.

इमली की पत्ती का चमत्कार: मुगल शासक अकबर के नवरत्न में शामिल सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर के ही गांव बेहट में हुआ था. ग्वालियर में तानसेन की समाधि है और इस समाधि के बगल से ही एक इमली का पेड़ लगा हुआ है. इतिहासकार बताते हैं कि हालांकि पुराना इमली का पेड़ कई साल पहले ही टूट चुका है, लेकिन उनकी जड़ों से ही यह नया इमली का पेड़ निकला है. इस इमली के पेड़ की कहानी और मान्यता यह है कि तानसेन अपनी आवाज बहुत सुरीली और रसीली बनाने के लिए इस इमली के पेड़ के पत्ते खाते थे. इसी मान्यता के चलते आज भी समारोह में शामिल होने वाले संगीतकार और कलाकार संगीत सम्राट तानसेन को नमन करने के बाद इस इमली के पेड़ की पत्तियों को खाते हैं. यही कारण है कि जब हर साल विश्व संगीत तानसेन समारोह की शुरुआत होती है तो यहां मौजूद यह इमली का पेड़ भी चर्चाओं में आ जाता है. सैकड़ों की संख्या में यहां पहुंचने वाले संगीत प्रेमी इमली के पत्ते जरूर खाते हैं. मान्यता है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली और मधुर हो जाती है.

Tansen Samaroh 2022 हंसराज हंस ने अपने गायन से बांधा समा, 19 से 23 दिसंबर तक ग्वालियर में गूंजेंगी स्वरलहरियां

इमली के पेड़ ने बनाया सुरसम्राट: बताते हैं कि ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राह्मण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ था लेकिन 5 वर्ष की उम्र में ही तानसेन के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. तानसेन बकरी चराते और गांव वालों से मिलने वाला खाना खाकर अपनी गुजर-बसर करते थे. तभी मोहम्मद गौस ने उनको सहारा दिया और उनको संगीत की शिक्षा दी. शुरुआत में तानसेन कुछ बोलते नहीं थे हरदम गुमसुम रहते थे, लेकिन मोहम्मद गौस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उन्हें स्वरों का सम्राट बना दिया. गौरतलब है कि ग्वालियर में सोमवार से 98 वें विश्व संगीत समागम की शुरुआत हो चुकी है यह संगीत समारोह 5 दिन तक चलेगा. कार्यक्रम में देश-विदेश के कई कलाकार अपनी संगीत प्रस्तुतियां देंगे.

ग्वालियर में तानसेन के इमली के पेड़ की रोचक कहानी तानसेन को बनाया स्वर सम्राट

ग्वालियर। सोमवार से ग्वालियर में तानसेन संगीत समारोह का आगाज हो गया है. इस साल 98वें आयोजन में देश भर के कई विश्व प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों की अनूठी महफिल जमेगी. इस दौरान एक बार फिर से तानसेन की समाधि के ठीक बगल से लगा एक इमली का पेड़ भी सुर्खियों में है. ऐसी माना जाता है कि सुरों के सम्राट तानसेन की आवाज को इमली के पेड़ की पत्तियों ने सुरीला बनाया था. ऐसी कथा भी प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि तानसेन लगभग 5 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं सकते थे, जिसके बाद उन्हें उस्ताद मोहम्मद गौस ने गोद ले लिया और संगीत की शिक्षा दी. इस दौरान तानसेन बोलने तो लगे लेकिन उनकी आवाज सुरीली नहीं हुई. माना जाता है कि उन्हें स्वर सम्राट बनाने में इमली के पत्तों की खास भूमिका थी. यही वजह है कि आज भी तानसेन की समाधि स्थल पर जो भी कलाकार पहुंचतें वे इस इमली के पेड़ की पत्तियां जरूर खा रहा है. आइए बताते हैं इस इमली के पेड़ और संगीत सम्राट के कनेक्शन से जुड़ी रोचक कहानी.

इमली की पत्ती का चमत्कार: मुगल शासक अकबर के नवरत्न में शामिल सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर के ही गांव बेहट में हुआ था. ग्वालियर में तानसेन की समाधि है और इस समाधि के बगल से ही एक इमली का पेड़ लगा हुआ है. इतिहासकार बताते हैं कि हालांकि पुराना इमली का पेड़ कई साल पहले ही टूट चुका है, लेकिन उनकी जड़ों से ही यह नया इमली का पेड़ निकला है. इस इमली के पेड़ की कहानी और मान्यता यह है कि तानसेन अपनी आवाज बहुत सुरीली और रसीली बनाने के लिए इस इमली के पेड़ के पत्ते खाते थे. इसी मान्यता के चलते आज भी समारोह में शामिल होने वाले संगीतकार और कलाकार संगीत सम्राट तानसेन को नमन करने के बाद इस इमली के पेड़ की पत्तियों को खाते हैं. यही कारण है कि जब हर साल विश्व संगीत तानसेन समारोह की शुरुआत होती है तो यहां मौजूद यह इमली का पेड़ भी चर्चाओं में आ जाता है. सैकड़ों की संख्या में यहां पहुंचने वाले संगीत प्रेमी इमली के पत्ते जरूर खाते हैं. मान्यता है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली और मधुर हो जाती है.

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इमली के पेड़ ने बनाया सुरसम्राट: बताते हैं कि ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राह्मण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ था लेकिन 5 वर्ष की उम्र में ही तानसेन के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. तानसेन बकरी चराते और गांव वालों से मिलने वाला खाना खाकर अपनी गुजर-बसर करते थे. तभी मोहम्मद गौस ने उनको सहारा दिया और उनको संगीत की शिक्षा दी. शुरुआत में तानसेन कुछ बोलते नहीं थे हरदम गुमसुम रहते थे, लेकिन मोहम्मद गौस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उन्हें स्वरों का सम्राट बना दिया. गौरतलब है कि ग्वालियर में सोमवार से 98 वें विश्व संगीत समागम की शुरुआत हो चुकी है यह संगीत समारोह 5 दिन तक चलेगा. कार्यक्रम में देश-विदेश के कई कलाकार अपनी संगीत प्रस्तुतियां देंगे.

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