ग्वालियर। जिले में कोरोना काल के समय मेडिकल माफिया अवसर तलाशने में जुटे थे. यही वजह है कि उस दौरान शहर भर में दर्जनभर ऐसे अस्पताल खोले गए, जिनमें सुविधाओं के नाम पर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया गया. ऐसे अस्पतालों में ना तो डॉक्टर तैनात थे. ना ही मरीजों के लिए कोई सुविधाएं थी. मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करने वाले गिरोह की जब शिकायत स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंची और उसके बाद ऐसे अस्पतालों का निरीक्षण किया तो वह चौंक गए. अब तक ऐसे 8 अस्पताल मिल चुके हैं जो मौके से गायब हैं. अब स्वास्थ्य विभाग टीमें गठित कर ऐसे अस्पतालों की तलाश शुरू कर दी है.
मरीजों से पैसे की लूट: ऐसे अस्पताल बेखौफ होकर मरीजों से पैसे लूटने में लगे हुए हैं, लेकिन जब ऐसे अस्पतालों की धीरे-धीरे शिकायतें स्वास्थ विभाग के पास पहुंचने लगी. उसके बाद जब स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जब मौके पर जाकर निरीक्षण किया तो यह अस्पताल गायब मिले. कहीं दूसरी जगह अस्पतालों को संचालित कर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. स्वास्थ विभाग ऐसे 8 अस्पतालों के लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं. साथ ही स्वास्थ्य विभाग के पास और ऐसे अस्पतालों की भी शिकायत पहुंची है उनकी भी जानकारी ली जा रही है.
स्वास्थ्य विभाग की सांठगांठ: जिले में पिछले एक साल में दर्जनभर ऐसे नए अस्पताल खोले गए हैं जिनमें ना तो डॉक्टर तैनात हैं और ना ही कोई सुविधा है. इन अस्पतालों की माफिया स्वास्थ्य विभाग की सांठगांठ से अस्पताल का रजिस्ट्रेशन लेकर मरीजों से पैसे लूटने का काम करते हैं. ऐसी अस्पतालों को खोलने बाले माफिया इतनी चालाक होते हैं कि, डॉक्टर और स्टाफ का नाम बड़े बड़े अक्षरों में बोर्ड पर लिख जाते हैं, लेकिन असल में मरीजों को देखने के लिए झोलाछाप डॉक्टर पहुंचते हैं. कोरोना काल ऐसे कई हॉस्पिटल ऐसे कई अस्पतालों पर स्वास्थ्य ने कार्रवाई की थी जिनमें आठवीं और दसवीं पास व्यक्ति मरीजों का इलाज कर रहे थे. आप अंदाजा लगा सकते हैं ऐसे अस्पताल मरीजों के साथ किस तरह उनकी जान से खिलवाड़ करते हैं.
मेडिकल माफिया: जिले के अंदर ऐसी कई अस्पताल है जो आज भी माफियाओं के द्वारा बिना डॉक्टर और बिना सुविधा थी चलाई जा रही हैं. ऐसे मेडिकल माफिया एग्रो होता है जो उत्तर प्रदेश और राजस्थान से मरीजों को गुमराह कर अपने अस्पतालों में भर्ती कर आते हैं. लाखों रुपए का बिल बनाकर उन्हें लूटते हैं और उसके बाद मरने के लिए उन्हें दूसरे अस्पताल में रेफर कर देते हैं. यह मेडिकल माफिया शहर की एंबुलेंस संचालकों से भी जुड़े होते हैं. एंबुलेंस संचालक उत्तर प्रदेश और राजस्थान के साथ-साथ आसपास के इलाकों से मरीजों को लेकर आते हैं. उन्हें गुमराह कर ऐसे अस्पतालों में भर्ती करवाते हैं. उनके बदले इन एंबुलेंस संचालकों को मोटी रकम दी जाती है.
स्वास्थ विभाग सक्रिय: ऐसे फर्जी अस्पतालों को लेकर अब स्वास्थ विभाग की टीम पूरी तरह सक्रिय है और जिले की मुख्य एवं जिला चिकित्सक अधिकारी डॉ मनीष शर्मा का कहना है कि जिले में अभी तक ऐसे 8 फर्जी अस्पतालों पर कार्रवाई की है जो अपनी जगह नहीं पाई रहे हैं कहीं दूसरी जगह अस्पताल को संचालित कर रहे हैं। इसके साथ ही जिले में ऐसी अस्पतालों की और सूचना मिली है उनकी तलाश की जा रही है. वहीं एक सप्ताह पहले ही स्वास्थ्य विभाग ने 8 अस्पतालों के पंजीयन रद्द कर दिए. जिसमें स्वास्तिक अस्पताल, यशस्वी अस्प्ताल, दि स्टार अस्पताल, मां शीतला अस्पताल, फेमिली केयर अस्पताल, डी एस मेमोरियल अस्पताल,नेचर अस्पताल और दंदरौआ धाम अस्पताल को बंद किया गया. स्वास्तिक, यशस्वी, दि स्टार, दंदरौआ धाम अस्पताल यह सब कोविड की दूसरी लहर के बाद खुले थे, लेकिन एक साल के बाद ही इनका संचालन बंद करना पड़ा।जो मानकों को भी पूरा नही कर रहे थे.
अस्पताल बंद होने का कारण:
1. अस्पताल में मरीजों को ठीक से उपचार न मिलना.
2.जांच आदि की सुविधाएं ना होना.
3. किराए के भवन में संचालन होना.
4. अस्पताल में अनट्रेंड स्टाफ व डाक्टरों की उपलब्धता न होना.
5. मरीजों से अधिक राशि वसूलने का प्रयास.
6. साधन व संसाधनों की कमी होना.
माफिया की गिरफ्त में प्रदेश: जिले में मेडिकल माफिया सक्रिय होने को लेकर अब कांग्रेस की सरकार और स्वास्थ्य पर आरोप लगा रही है. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि कोरोना के समय इन मेडिकल माफियाओं ने बड़े बड़े अस्पताल खोले और मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया और मरीजों को लूटने का काम किया. उनका कहना है कि, इस समय मध्य प्रदेश माफियाओं की गिरफ्त में है. हर प्रकार का माफिया इस समय मध्यप्रदेश में लूटने का काम कर रहा है.