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किसी भी कीमत पर नहीं वापस होगा कृषि कानून: कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर - किसान यूनियन ग्वालियर

ग्वालियर(gwalior) पर आए नरेंद्र सिंह तोमर(Narendra Singh Tomar) कृषि कानून को लेकर कहा कानून अब वापस नहीं होगा.हम किसानों से बातचीत के लिए तैयार है. तोमर का कहना कि कृषि कानून को किसान और किसान यूनियन मानने के लिए तैयार है.लेकिन कानून वापस नहीं लिया जाएगा.

Narendra Singh Tomar
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर
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Published : Jul 1, 2021, 2:15 PM IST

ग्वालियर(gwalior)। जिसकी कृषि मंत्री(agriculture minister) नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून (farmer law) वापस नहीं होगा.इसके अतिरिक्त अगर किसान कोई बातचीत करना चाहते हैं तो सरकार किसी भी वक्त बात करने के लिए तैयार है. यह बात कृषि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर दौरे पर कही है.बता दें कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दो दिवसीय दौरे पर ग्वालियर चंबल अंचल में है.


कृषि कानून वापस करने का कोई सवाल नहीं


पिछले कई महीनों से केंद्रीय कृषि कानून को लेकर आंदोलन हो रहा है. इस आंदोलन को लेकर सरकार और किसान यूनियन के साथ कई बार बातचीत का दौर हो चुका है. लेकिन अभी तक बात नहीं बन पाई है. इसी को लेकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ कर दिया है कि 30 साल की कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत का फल कृषि कानून है .देश के अधिकतर किसान यूनियन कृषि कानून के समर्थन में है .विरोध कर रहे किसान यूनियन के लोगों से बातचीत करने के लिए सरकार ने भरपूर कोशिश की है. लेकिन अभी तक बात नहीं बनी है. साथ ही उन्होंने कहा सरकार किसी भी वक्त फिर से बात करने के लिए तैयार है. लेकिन कानून वापस करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.


बातचीत करने के लिए तैयार है सरकार

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह भी साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून वापस नहीं होगा.इसके अतिरिक्त अगर किसान कोई बातचीत करना चाहते हैं तो सरकार किसी भी वक्त बात करने के लिए तैयार है. 11 दौर की बातचीत हो गई है लेकिन उनके समझ में यह कानून नहीं आ रहा है सरकार की इसमें कोई गलती नहीं है.

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क्या है कृषि कानून

नए कानून के तहत किसानों को अपनी उपज मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है. इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है. इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं लेना है.

क्यों हो रहा विरोध

किसान अपनी उपज को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा. क्योंकि राज्यों को 'मंडी शुल्क' नहीं मिल पाएगा. किसानों को यह डर है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का कही खत्म न हो जाए और निजी कंपनियां उनका षण न करने लगे.

ग्वालियर(gwalior)। जिसकी कृषि मंत्री(agriculture minister) नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून (farmer law) वापस नहीं होगा.इसके अतिरिक्त अगर किसान कोई बातचीत करना चाहते हैं तो सरकार किसी भी वक्त बात करने के लिए तैयार है. यह बात कृषि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर दौरे पर कही है.बता दें कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दो दिवसीय दौरे पर ग्वालियर चंबल अंचल में है.


कृषि कानून वापस करने का कोई सवाल नहीं


पिछले कई महीनों से केंद्रीय कृषि कानून को लेकर आंदोलन हो रहा है. इस आंदोलन को लेकर सरकार और किसान यूनियन के साथ कई बार बातचीत का दौर हो चुका है. लेकिन अभी तक बात नहीं बन पाई है. इसी को लेकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ कर दिया है कि 30 साल की कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत का फल कृषि कानून है .देश के अधिकतर किसान यूनियन कृषि कानून के समर्थन में है .विरोध कर रहे किसान यूनियन के लोगों से बातचीत करने के लिए सरकार ने भरपूर कोशिश की है. लेकिन अभी तक बात नहीं बनी है. साथ ही उन्होंने कहा सरकार किसी भी वक्त फिर से बात करने के लिए तैयार है. लेकिन कानून वापस करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है.


बातचीत करने के लिए तैयार है सरकार

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह भी साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून वापस नहीं होगा.इसके अतिरिक्त अगर किसान कोई बातचीत करना चाहते हैं तो सरकार किसी भी वक्त बात करने के लिए तैयार है. 11 दौर की बातचीत हो गई है लेकिन उनके समझ में यह कानून नहीं आ रहा है सरकार की इसमें कोई गलती नहीं है.

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क्या है कृषि कानून

नए कानून के तहत किसानों को अपनी उपज मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है. इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है. इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं लेना है.

क्यों हो रहा विरोध

किसान अपनी उपज को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा. क्योंकि राज्यों को 'मंडी शुल्क' नहीं मिल पाएगा. किसानों को यह डर है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का कही खत्म न हो जाए और निजी कंपनियां उनका षण न करने लगे.

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