ग्वालियर। विलुप्त होती प्रजाति कड़कनाथ यानी काले मुर्गे की डिमांड ऐसे समय बढ़ी है जब अधिकांश लोगों ने कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मांसाहार खाना छोड़ दिया है. इसके विपरीत रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने सहित विभिन्न औषधीय गुणों के कारण ग्वालियर के कृषि विज्ञान केंद्र सहित निजी इकाइयों में कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड 5 गुना तक बढ़ गई है.
हालत ये है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इसके चूजों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, वहीं कभी 600 में मिलने वाला कड़कनाथ मुर्गा अब 1000 हजार रुपए तक बिक रहा है.
कड़कनाथ की खासियत
कड़कनाथ की खासियत ये है कि ये बेहद कम कोलेस्ट्रोल वाला रहता है, वहीं इसका खून मांस और हड्डी तक काली रहती है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इस प्रजाति को करीब 7 साल पहले ग्वालियर के कृषि विज्ञान केंद्र में 100 चूजों के साथ शुरू किया गया था. आज यहां 1200 कड़कनाथ की हैचरी है. डिमांड इतनी है कि देश के अलग-अलग हिस्सों मे चूजों की डिमांड आती है, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र इसे पूरी नहीं कर पा रहा है.
मुर्गा बनने में 40 दिन का वक्त लगता है
कड़कनाथ की ब्रांडिंग संवर्धन में केवीके जुटा हुआ है. हैचरी प्रभारी आरएस कुशवाहा ने बताया कि 18 दिनों के इनक्यूबेशन में हमारा केंद्र करीब एक हजार चूजे पैदा कर रहा है. इन चूजों को मुर्गा बनने में करीब 40 दिन का वक्त लगता है. मुर्गे की खास बात यह है कि उसके नाखून कलंगी तक काली होती है.
कड़कनाथ पालन में लाखों का फायदा
ग्वालियर के आसपास करीब 5 दर्जन से ज्यादा कड़कनाथ की छोटी बड़ी इकाइयां हैं. जहां 50 चूजों से लेकर 500 चूजों की हैचरी है. कड़कनाथ के पालन से छोटे किसान करीब डेढ़ लाख रुपए सालाना कमा लेते हैं. कोरोना काल में साल भर की कमाई यहां किसान जुलाई में ही हासिल कर चुके हैं.
पोषक तत्वों से भरपूर है कड़कनाथ
कड़कनाथ में इम्यूनो बूस्टिंग के अलावा विटामिन b1, B2, B6, B12 सहित करीब 27 फीसदी प्रोटीन शामिल है. इसके अलावा विटामिन सी और के भी इसमें शामिल है. कैल्शियम फास्फोरस और हीमोग्लोबिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, इसीलिए शारीरिक क्षमता बढ़ाने में इसका कोई मुकाबला नहीं है.