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असिस्टेंट प्रोफेसर की याचिका पर कोर्ट ने अवैध घोषित डायरेक्टर की नियुक्ति, लगाया जुर्माना

आईआईटीटीएम के डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया है. असिस्टेंट प्रोफेसर रहे मनोज प्रताप सिंह यादव की याचिका पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया.

ग्वालियर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवैध घोषित की डायरेक्टर की नियुक्ति
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Published : Aug 28, 2019, 5:08 PM IST

गवालियर। हाईकोर्ट ने भारतीय यात्रा एवं प्रबंधन संस्थान यानी आईआईटीटीएम के डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को अवैध घोषित किया है. हाईकोर्ट ने उन्हें 2003 में संस्थान के प्रोफ़ेसर के रूप में की गई नियुक्ति को भी शून्य घोषित किया कर दिया है. मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के साथ ही डायरेक्टर द्वारा 2003 से अब तक लिया गया वेतन भी सरकार को वापस करना होगा.

ग्वालियर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवैध घोषित की डायरेक्टर की नियुक्ति

दरअसल, आईआईटीटीएम के असिस्टेंट प्रोफेसर रहे मनोज प्रताप सिंह यादव ने 2016 में हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी. जिसमें बताया गया था कि संदीप कुलश्रेष्ठ की 2003 में की गई नियुक्ति अवैध थी, क्योंकि उनके पास पढ़ाने का निर्धारित समय की अवधि का अनुभव नहीं था. इसके अलावा जब 2014 में उन्हें डायरेक्टर बनाया गया, तब भी उनके खिलाफ चल रही जांचों नजरअंदाज किया गया था. इसमें पर्यटन मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत के आरोप लगाए गए थे. याचिका में यह भी कहा गया था कि कुलश्रेष्ठ प्रोफ़ेसर से लेकर डायरेक्टर बनने तक लगातार नियमों और शर्तों की अवहेलना करते जा रहे हैं. हाईकोर्ट ने पाया कि 2003 में प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के समय नियमों का पालन नहीं किया गया था और ना ही 2014 में निदेशक बनते समय नियमों का ध्यान नहीं रखा गया.

हाईकोर्ट ने डायरेक्टर के रूप में संदीप कुलश्रेष्ठ की सेवाओं को तत्काल रद्द करने के निर्देश दिए हैं उनके खिलाफ नियुक्ति संबंधी मामले में जांच के आदेश सीबीआई को दिए हैं, इसके अलावा होने करीब 16 साल का प्रोफेसर और डायरेक्टर के रूप में लिया गया वेतन भी सरकार को लौटाना होगा पूर्व डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ को हर्जाने के रूप में याचिकाकर्ता मनोज प्रताप को ₹20 हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान भी करना होगा. इस बीच कोर्ट के आदेश पर डायरेक्टर के कार्यालय को सील कर दिया गया है.

गवालियर। हाईकोर्ट ने भारतीय यात्रा एवं प्रबंधन संस्थान यानी आईआईटीटीएम के डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को अवैध घोषित किया है. हाईकोर्ट ने उन्हें 2003 में संस्थान के प्रोफ़ेसर के रूप में की गई नियुक्ति को भी शून्य घोषित किया कर दिया है. मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के साथ ही डायरेक्टर द्वारा 2003 से अब तक लिया गया वेतन भी सरकार को वापस करना होगा.

ग्वालियर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवैध घोषित की डायरेक्टर की नियुक्ति

दरअसल, आईआईटीटीएम के असिस्टेंट प्रोफेसर रहे मनोज प्रताप सिंह यादव ने 2016 में हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी. जिसमें बताया गया था कि संदीप कुलश्रेष्ठ की 2003 में की गई नियुक्ति अवैध थी, क्योंकि उनके पास पढ़ाने का निर्धारित समय की अवधि का अनुभव नहीं था. इसके अलावा जब 2014 में उन्हें डायरेक्टर बनाया गया, तब भी उनके खिलाफ चल रही जांचों नजरअंदाज किया गया था. इसमें पर्यटन मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत के आरोप लगाए गए थे. याचिका में यह भी कहा गया था कि कुलश्रेष्ठ प्रोफ़ेसर से लेकर डायरेक्टर बनने तक लगातार नियमों और शर्तों की अवहेलना करते जा रहे हैं. हाईकोर्ट ने पाया कि 2003 में प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के समय नियमों का पालन नहीं किया गया था और ना ही 2014 में निदेशक बनते समय नियमों का ध्यान नहीं रखा गया.

हाईकोर्ट ने डायरेक्टर के रूप में संदीप कुलश्रेष्ठ की सेवाओं को तत्काल रद्द करने के निर्देश दिए हैं उनके खिलाफ नियुक्ति संबंधी मामले में जांच के आदेश सीबीआई को दिए हैं, इसके अलावा होने करीब 16 साल का प्रोफेसर और डायरेक्टर के रूप में लिया गया वेतन भी सरकार को लौटाना होगा पूर्व डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ को हर्जाने के रूप में याचिकाकर्ता मनोज प्रताप को ₹20 हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान भी करना होगा. इस बीच कोर्ट के आदेश पर डायरेक्टर के कार्यालय को सील कर दिया गया है.

Intro:ग्वालियर
हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने भारतीय यात्रा एवं प्रबंधन संस्थान यानी आईआईटीटीएम के डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ की नियुक्ति को अवैध घोषित किया है हाईकोर्ट ने उन्हें 2003 में संस्थान के प्रोफ़ेसर के रूप में की गई नियुक्ति को भी शून्य घोषित किया है इतना ही नहीं इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के साथ ही डायरेक्टर को 2003 से अब तक लिया गया वेतन भी सरकार को वापस करना होगा।


Body:दरअसल आईआईटीटीएम के असिस्टेंट प्रोफेसर रहे मनोज प्रताप सिंह यादव ने 2016 में हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी जिसमें बताया गया था कि संदीप कुलश्रेष्ठ की 2003 में की गई नियुक्ति अवैध थी उनके पास पढ़ाने का निर्धारित समय अवधि का अनुभव नहीं था इसके अलावा जब 2014 में उन्हें डायरेक्टर बनाया गया तब भी उनके खिलाफ चल रही जांचों नजरअंदाज किया गया । इसमें पर्यटन मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत के आरोप लगाए गए थे। याचिका में यह भी कहा गया था कि कुलश्रेष्ठ प्रोफ़ेसर से लेकर डायरेक्टर बनने तक लगातार नियमों और शर्तों की अवहेलना करते जा रहे हैं ।हाईकोर्ट ने पाया कि 2003 में प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के समय नियमों का पालन नहीं किया गया और ना ही 2014 में निदेशक बनते समय नियमों का ध्यान नहीं रखा गया।


Conclusion:हाईकोर्ट ने डायरेक्टर के रूप में संदीप कुलश्रेष्ठ की सेवाओं को तत्काल रद्द करने के निर्देश दिए हैं उनके खिलाफ नियुक्ति संबंधी मामले में जांच के आदेश सीबीआई को दिए हैं इसके अलावा होने करीब 16 साल का प्रोफेसर और डायरेक्टर के रूप में लिया गया वेतन भी सरकार को लौटाना होगा पूर्व डायरेक्टर डॉ संदीप कुलश्रेष्ठ को हर्जाने के रूप में याचिकाकर्ता मनोज प्रताप को ₹20000 का अतिरिक्त भुगतान भी करना होगा। इस बीच कोर्ट के आदेश पर डायरेक्टर के कार्यालय को सील कर दिया गया है ।
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