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दल बदल कानून को कठोर करने की रामनिवास रावत ने की मांग, अभी ये कहता है कानून

मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के दल-बदल कानून में बदलाव करने की मांग की है. उनका कहना है कि जो जन प्रतिनिधि अपनी सदस्यता त्यागकर और इस्तीफा देता है और दूसरे दल में शामिल हो जाता है उसे आजीवन चुनाव लड़ने का अधिकार न हो.

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Published : Jun 11, 2020, 5:40 PM IST

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कांग्रेस नेता रामनिवास रावत

ग्वालियर। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के दल-बदल कानून में बदलाव करने की मांग की है. रामनिवास रावत ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को दल बदल कानून को और कठोर करना चाहिए. जो जनप्रतिनिधि चुनने के बाद अगर बीच में इस्तीफा देकर दूसरे दल में जाता है, तो उसे आजीवन समय तक के लिए चुनाव लड़ने के लिए बैन कर देना चाहिए. इससे लोकतंत्र मजबूत होगा.

कांग्रेस नेता रामनिवास रावत का बयान

उन्होंने कहा कि वर्तमान में जनप्रतिनिधि जनसेवा का बहाना बनाकर निजी स्वार्थों के चलते दल-बदल कर लेते हैं. ऐसे में जनता अपने आप को ठगा महसूस करती है. इसके साथ ही इस तरह की घटना क्रम होने से लोकतंत्र भी कमजोर होता है. रामनिवास रावत का कहना है कि सीएम शिवराज सिंह के ऑडियो और मंत्री तुलसी सिलावट की पुष्टि के बाद ये साफ हो चुका है कि इन लोगों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को गिराया है. बता दें संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल कानून संबंधी प्रावधान किए गए हैं.

क्या है संविधान की दसवीं अनुसूची?

  • भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे सामान्य तौर से 'दल बदल विरोधी कानून' कहा जाता है. इसे 1985 में 52वें संविधान संशोधन के जरिए लाया गया है.
  • ये ‘दल-बदल क्या है’ और दल-बदल करने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी प्रावधानों को परिभाषित करता है.
  • इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल-बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि सदनों की स्थिरता बनी रहे.

अयोग्य घोषित किये जाने के आधार

  • अगर एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है.
  • अगर कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
  • अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के पक्ष के खिलाफ वोट करता है.
  • अगर कोई सदस्य खुद को वोटिंग से अलग रखता है.
  • छह महीने के खत्म होने के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.

दल-बदल अधिनियम के अपवाद

  • अगर कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है. इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा.
  • अगर किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है.

संविधान का 91वां संशोधन 2003

  • इस संशोधन के जरिए मंत्रिमंडल का आकार भी 15 फीसदी सीमित कर दिया गया. हालांकि किसी भी कैबिनेट सदस्यों की संख्या 12 से कम नहीं होगी.
  • इस संशोधन के जरिए 10वीं अनुसूची की धारा 3 को खत्म कर दिया गया, जिसमें प्रावधान था कि एक-तिहाई सदस्य एक साथ दल बदल कर सकते थे.

ग्वालियर। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत ने सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के दल-बदल कानून में बदलाव करने की मांग की है. रामनिवास रावत ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को दल बदल कानून को और कठोर करना चाहिए. जो जनप्रतिनिधि चुनने के बाद अगर बीच में इस्तीफा देकर दूसरे दल में जाता है, तो उसे आजीवन समय तक के लिए चुनाव लड़ने के लिए बैन कर देना चाहिए. इससे लोकतंत्र मजबूत होगा.

कांग्रेस नेता रामनिवास रावत का बयान

उन्होंने कहा कि वर्तमान में जनप्रतिनिधि जनसेवा का बहाना बनाकर निजी स्वार्थों के चलते दल-बदल कर लेते हैं. ऐसे में जनता अपने आप को ठगा महसूस करती है. इसके साथ ही इस तरह की घटना क्रम होने से लोकतंत्र भी कमजोर होता है. रामनिवास रावत का कहना है कि सीएम शिवराज सिंह के ऑडियो और मंत्री तुलसी सिलावट की पुष्टि के बाद ये साफ हो चुका है कि इन लोगों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को गिराया है. बता दें संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल कानून संबंधी प्रावधान किए गए हैं.

क्या है संविधान की दसवीं अनुसूची?

  • भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे सामान्य तौर से 'दल बदल विरोधी कानून' कहा जाता है. इसे 1985 में 52वें संविधान संशोधन के जरिए लाया गया है.
  • ये ‘दल-बदल क्या है’ और दल-बदल करने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी प्रावधानों को परिभाषित करता है.
  • इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल-बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि सदनों की स्थिरता बनी रहे.

अयोग्य घोषित किये जाने के आधार

  • अगर एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है.
  • अगर कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
  • अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के पक्ष के खिलाफ वोट करता है.
  • अगर कोई सदस्य खुद को वोटिंग से अलग रखता है.
  • छह महीने के खत्म होने के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.

दल-बदल अधिनियम के अपवाद

  • अगर कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है. इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा.
  • अगर किसी पार्टी के एक-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है.

संविधान का 91वां संशोधन 2003

  • इस संशोधन के जरिए मंत्रिमंडल का आकार भी 15 फीसदी सीमित कर दिया गया. हालांकि किसी भी कैबिनेट सदस्यों की संख्या 12 से कम नहीं होगी.
  • इस संशोधन के जरिए 10वीं अनुसूची की धारा 3 को खत्म कर दिया गया, जिसमें प्रावधान था कि एक-तिहाई सदस्य एक साथ दल बदल कर सकते थे.
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