ग्वालियर। झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मी बाई की वीर गाथा तारीख पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई अपने स्वाभिमान, राज्य और देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गयी थीं. ग्वालियर में गंगादास की कुटिया वह स्थान है, जहां लक्ष्मीबाई के आखिरी वक्त को संजोकर रखा गया है. यहीं पर उन्होंने आखिरी सांस ली थी.
रानी लक्ष्मीबाई जहां अपने प्राण त्यागी थीं, वहीं पर रानी लक्ष्मीबाई का स्मारक बना हुआ है, लेकिन समाधि स्थल के ठीक पास बनी गंगादास की बड़ी कुटिया भी 1857 के क्रांति की गवाही दे रही है क्योंकि ये कोई आम कुटिया नहीं है. इस कुटिया से लक्ष्मीबाई का क्या नाता रहा है और इस विद्रोह में कुटिया का कितना महत्व है, इस पर नजर डालते हैं.
यहां लड़ी थी अंग्रेजों से आखिरी लड़ाई
रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में जब अपनी तलवार से गोरों का गर्दन काट रही थीं, उसी दौरान वह घोड़े पर सवार होकर किले से नीचे कूद पड़ी थी, जिससे उनका घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया था. उसी समय अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई पर हमला कर दिया, इस हमले में वह बुरी तरह घायल हो गई थीं. जहां रानी घायल हुई थीं, वही गंगादास की कुटिया थी. कुटिया में रहने वाले साधुओं को जब पता लगा कि रानी बुरी तरह घायल हो गई हैं तो उनको उठाकर वह कुटिया में ले गये, लेकिन रानी की हालत इतनी गंभीर थी कि वह बच नहीं सकीं.