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रानी से किया वादा निभाते हुए 745 नागा साधु हो गये थे शहीद, लक्ष्मीबाई को छू भी नहीं पाये थे अंग्रेज - ग्वालियर

ग्वालियर में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने जहां अपने प्राण त्यागे थे, वहीं पर लक्ष्मीबाई का स्मारक बना है, लेकिन समाधि स्थल के करीब बनी गंगादास की बड़ी कुटिया भी 1857 की क्रांति की गवाही देता है.

समाधि स्थल
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Published : Jun 18, 2019, 8:26 PM IST

Updated : Jun 18, 2019, 8:40 PM IST

ग्वालियर। झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मी बाई की वीर गाथा तारीख पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई अपने स्वाभिमान, राज्य और देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गयी थीं. ग्वालियर में गंगादास की कुटिया वह स्थान है, जहां लक्ष्मीबाई के आखिरी वक्त को संजोकर रखा गया है. यहीं पर उन्होंने आखिरी सांस ली थी.
रानी लक्ष्मीबाई जहां अपने प्राण त्यागी थीं, वहीं पर रानी लक्ष्मीबाई का स्मारक बना हुआ है, लेकिन समाधि स्थल के ठीक पास बनी गंगादास की बड़ी कुटिया भी 1857 के क्रांति की गवाही दे रही है क्योंकि ये कोई आम कुटिया नहीं है. इस कुटिया से लक्ष्मीबाई का क्या नाता रहा है और इस विद्रोह में कुटिया का कितना महत्व है, इस पर नजर डालते हैं.

यहां लड़ी थी अंग्रेजों से आखिरी लड़ाई
रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में जब अपनी तलवार से गोरों का गर्दन काट रही थीं, उसी दौरान वह घोड़े पर सवार होकर किले से नीचे कूद पड़ी थी, जिससे उनका घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया था. उसी समय अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई पर हमला कर दिया, इस हमले में वह बुरी तरह घायल हो गई थीं. जहां रानी घायल हुई थीं, वही गंगादास की कुटिया थी. कुटिया में रहने वाले साधुओं को जब पता लगा कि रानी बुरी तरह घायल हो गई हैं तो उनको उठाकर वह कुटिया में ले गये, लेकिन रानी की हालत इतनी गंभीर थी कि वह बच नहीं सकीं.

रानी लक्ष्मीबाई का पार्थिव शरीर बचाने के लिये यहां हुये थे 745 नागा साधु शहीद.
फिरंगियों से भिडे़ थे नागा साधुरानी लक्ष्मीबाई ने बाबा गंगादास से कहा कि बाबा मेरे शरीर को गोरे अंग्रेजों को छूने भी न देना, बस इतना कहकर लक्ष्मीबाई दुनिया से रुखसत हो गयीं. उसी समय अंग्रेजों ने इस कुटिया को चारों तरफ से घेर लिया, उसके बाद कुटिया में रहने वाले नागा साधुओं ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया, इस लड़ाई में कुटिया में रहने वाले 745 नागा साधु शहीद हो गए, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई का पार्थिव शरीर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया.साधुओं ने जब अंग्रेजों की सेना को अपनी ओर आते देखा तो रानी लक्ष्मीबाई के पार्थिव शरीर को एक घास-फूस की बनी कुटिया में रखकर दाह संस्कार कर दिया. आज वो स्थान रानी लक्ष्मी बाई की समाधि स्थल के रूप जाना जाता है.

ग्वालियर। झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मी बाई की वीर गाथा तारीख पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई अपने स्वाभिमान, राज्य और देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गयी थीं. ग्वालियर में गंगादास की कुटिया वह स्थान है, जहां लक्ष्मीबाई के आखिरी वक्त को संजोकर रखा गया है. यहीं पर उन्होंने आखिरी सांस ली थी.
रानी लक्ष्मीबाई जहां अपने प्राण त्यागी थीं, वहीं पर रानी लक्ष्मीबाई का स्मारक बना हुआ है, लेकिन समाधि स्थल के ठीक पास बनी गंगादास की बड़ी कुटिया भी 1857 के क्रांति की गवाही दे रही है क्योंकि ये कोई आम कुटिया नहीं है. इस कुटिया से लक्ष्मीबाई का क्या नाता रहा है और इस विद्रोह में कुटिया का कितना महत्व है, इस पर नजर डालते हैं.

यहां लड़ी थी अंग्रेजों से आखिरी लड़ाई
रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में जब अपनी तलवार से गोरों का गर्दन काट रही थीं, उसी दौरान वह घोड़े पर सवार होकर किले से नीचे कूद पड़ी थी, जिससे उनका घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया था. उसी समय अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई पर हमला कर दिया, इस हमले में वह बुरी तरह घायल हो गई थीं. जहां रानी घायल हुई थीं, वही गंगादास की कुटिया थी. कुटिया में रहने वाले साधुओं को जब पता लगा कि रानी बुरी तरह घायल हो गई हैं तो उनको उठाकर वह कुटिया में ले गये, लेकिन रानी की हालत इतनी गंभीर थी कि वह बच नहीं सकीं.

रानी लक्ष्मीबाई का पार्थिव शरीर बचाने के लिये यहां हुये थे 745 नागा साधु शहीद.
फिरंगियों से भिडे़ थे नागा साधुरानी लक्ष्मीबाई ने बाबा गंगादास से कहा कि बाबा मेरे शरीर को गोरे अंग्रेजों को छूने भी न देना, बस इतना कहकर लक्ष्मीबाई दुनिया से रुखसत हो गयीं. उसी समय अंग्रेजों ने इस कुटिया को चारों तरफ से घेर लिया, उसके बाद कुटिया में रहने वाले नागा साधुओं ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया, इस लड़ाई में कुटिया में रहने वाले 745 नागा साधु शहीद हो गए, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई का पार्थिव शरीर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया.साधुओं ने जब अंग्रेजों की सेना को अपनी ओर आते देखा तो रानी लक्ष्मीबाई के पार्थिव शरीर को एक घास-फूस की बनी कुटिया में रखकर दाह संस्कार कर दिया. आज वो स्थान रानी लक्ष्मी बाई की समाधि स्थल के रूप जाना जाता है.
Intro:ग्वालियर- आज का वह दिन जो18 जून 1858 में बिरंगना रानी लक्ष्मीबाई की बीरगाथा इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गई। आज के ही दिन वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अपने स्वाभिमान , झांसी किला और देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हो गई थी। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जहाँ अपने प्राण त्यागे थे वहां पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का स्मारक बना हुआ है ।लेकिन समाधि स्थल की ठीक पास में बनी गंगादास की बड़ी
कुटिया भी 1858 की क्रांति में अहम रोल निभाया था। कोई आम कुटिया नहीं है इस कुटिया से वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का क्या नाता रहा है और इस लड़ाई में इस कुटिया का कितना महत्व है आइए हम बताते हैं......


Body:वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर किले पर जब युद्ध कर रही थी और उसके बाद वह किले से अपने घोड़े को लेकर नीचे कूदी ही थी तो उनका घोड़ा बुरी तरह घायल हो गया था। उसी समय अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को घेर लिया और उसी समय उनके ऊपर अंग्रेज ने प्रहार किया तो रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह से घायल हो गई थी। जहां रानी घायल हुई थी वह गंगादास की कुटिया थी । कुटिया में रहने वाले साधुओं को पता लगा कि रानी बुरी तरह से घायल हो गई है तो उनको उठाकर वह कुटिया में ले आए लेकिन रानी की हालत इतनी गंभीर थी तो उनका बच पाना मुश्किल था। रानी लक्ष्मीबाई ने बाबा गंगादास से कहा कि बाबा मेरे शरीर का एक अंग भी अंग्रेजों के हाथ ना चला जाए, उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने प्राण त्याग दिए। उसी समय अंग्रेजों ने इस कुटिया को चारों तरफ से घेर लिया उसके बाद इस कुटिया में रहने वाले नागा साधुओं ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया जिसमें कुटिया में रहने बाले 745 नागा साधु अंग्रेजो से लड़ते लड़ते शहीद हो गए। लेकिन अंग्रेजों को रानी लक्ष्मीबाई का पार्थिव शरीर न सौपने दिया। साधुओं ने जब अंग्रेजों की अपनी ओर आती सेना को देखकर रानी लक्ष्मी बाई के पार्थिव शरीर को एक घास फूस की बनी कुटिया में रखकर दाह संस्कार कर दिया ।आज वह रानी लक्ष्मी बाई की समाधि स्थल के रूप में स्थित है।


Conclusion:wt- अनिल गौर

बाईट - रामसेवक दास जी महाराज, गंगा दास की बड़ी साला के महंत

बाईट- रामबाबू कटारे, वरिष्ठ पत्रकार

Last Updated : Jun 18, 2019, 8:40 PM IST
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