गुना। 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जमखेड़ तालुका के गांव चौंडी में जन्मी अहिल्या बाई, महाराष्ट्र के शिंदे परिवार में जन्मी मराठा क्षत्रिय थीं. उनके पिता मनकोजी शिंदे गांव के पाटिल (पटेल) थे. जिन्होंने उस काल में अहिल्या को शिक्षा दीक्षा दिलाई. जब महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत शून्य हुआ करता था. इधर, मालवा प्रांत के जागीरदार मल्हारराव होल्कर, बाजीराव पेशवा के सरदार थे. वे जब पेशवा से मिलने पुणे जाते समय रास्ते में रुके और उन्होंने 8 वर्षीय कन्या अहिल्या देवी को एक मंदिर में देखा तो उसे अपने पुत्र खांडेराव की दुल्हन बनाकर ले आए थे.
एमपी के विकास में देवी अहिल्या का योगदान : इस कारण अहिल्याबाई शिंदे, अहिल्याबाई होलकर कहलाने लगीं. मल्हार राव अत्यंत दूरदर्शी और भविष्यदृष्टा था. उन्होंने खांडेराव की मृत्यु के बाद अहिल्या को सती नहीं होने दिया था. भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी आने वाले कई वर्षों तक इंदौर अपने पड़ोसी शहरों भोपाल, जबलपुर या ग्वालियर की तुलना में सभी मामलों में अधिक प्रगतिशील रहा है तो इसके पीछे अहिल्या देवी की दूरदर्शिता थी. अंग्रेजी लेखक लॉरेंस ने अहिल्या देवी होल्कर को भारत की "कैथरीन द ग्रेट, एलिजाबेथ मार्गरेट" कहा है. अहिल्याबाई की तुलना संक्षेप में रूस की महारानी कैथरीन द ग्रेट, इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ और डेनमार्क की रानी मार्गरेट से की गई है.
लोग मानते थे ईश्वर का अवतार : उनके विलक्षण निर्णय और योजकता के साथ ही हर क्षेत्र में योग्यता को देखते हुए उन्हें लोग ईश्वर का अवतार भी मानते थे. अहिल्याबाई होल्कर निष्पक्ष न्याय के लिए प्रसिद्ध थीं. उन्होंने पूरे भारत में कई हिंदू मंदिरों और नदी घाटों का निर्माण और जीर्णोद्धार किया. महेश्वर और इंदौर के गांवों को सुंदर बनाया. वह कई मंदिरों की संरक्षक थीं. अनेक तीर्थस्थलों का उद्धार कराया. इनमें मुख्य रूप से द्वारका, काशी, उज्जैन, नासिक और परली वैजनाथ शामिल हैं. गजनी मुहम्मद द्वारा नष्ट किए गए सोमनाथ के मंदिर को देखकर, अहिल्या देवी ने पास में शंकरजी का एक मंदिर बनवाया.
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मराठा शासकों का शौर्य : सोमनाथ जाने वाले लोग आज भी इस मंदिर के दर्शन करते हैं. यूं तो किसी भी मराठा शासक ने कभी किसी जाति को कमतर नहीं माना. चाहे वो राष्ट्र में महाराष्ट्र स्थापित करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज हों या फिर महारानी अहिल्याबाई हों सभी के काल में सभी जाति समाजों का सम्मान था. सभी समाजों की रक्षा के लिए मराठों ने अपना सर्वस्व अर्पण किया है. युद्ध का उद्देश्य भी हिंदवी स्वराज स्थापित करना रहा. पानीपत का भीषण युद्ध तो मराठों की गौरव गाथा का स्वर्णिम अध्याय है.