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कौमी एकता की मिसाल दशहरा! यहां मुस्लिम बनाते हैं रावण का पुतला, फिर सब मिल कर भस्म करते हैं 'बुराई' - पुतला बनाता कलाकार

विजयदशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, इसी दिन भगवान श्रीराम रावण का संहार किये थे, हर साल दशहरे पर बुराई के प्रतीक रावण को जलाते आ रहे हैं, गुना में वक्त के साथ रावण का कद घटता गया और अब तो मेघनाद और कुंभकर्ण के बिना ही रावण अकेले जलता है.

Dussehra is an example of religious unity in Guna
पुतला बनाता कलाकार
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Published : Oct 14, 2021, 4:59 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 6:55 PM IST

गुना। यूं तो मालवा का प्रवेश द्वार शांति का टापू माना जाता है, इतना राजनीति द्वंद झेलने के बाद भी गुना में अशांति जैसी परिस्थितियां कभी नहीं बनी. जब भी यहां की आब-ओ-हवा में जहर घोलने की कोशिश हुई तो यहां के नागरिक अपनी मीठी बोली और आपसी भाई चारे की मिठास में नफरत को घोलकर पी गए. ऐसा भी कह सकते हैं कि जिस परम्परा का रिवाज है, कुछ उसी तरह आपसी सौहार्द के पर्यायवाची यहां के हिंदू-मुस्लिम हैं. गुना में दशहरा पर्व भी ऐसा ही मौका है, जब यहां की गंगा-जमुनी तहजीब की झलक दिखाई देती है.

रावण दहन की तैयारी

क्रिकेट की पिच पर 'महाराज' क्लीन बोल्ड! पूर्व IAS की फिरकी में फंसे सिंधिया

यहां मुस्लिम बनाते हैं रावण का पुतला

अक्सर कहा और समझा जाता है कि दशहरा पर्व हिंदू संस्कृति का त्यौहार है, लेकिन गुना शहर इस मामले में कुछ अलग है. यहां मुस्लिम समुदाय रावण के पुतलों का निर्माण करता है और हिंदू रीति-रिवाज से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति दहन का दायित्व निभाती है. बदरवास निवासी जमील बताते हैं पिछले 25 सालों से हमारा परिवार रावण का पुतला बनाता आ रहा है, इसी से उनकी आजीविका चलती है, दशहरे के पहले ताजिया बनाने का काम करते हैं, उसके बाद रावण बनाने में लग जाते हैं, 7 अक्टूबर को गुना पहुंच गए थे, अब 15 अक्टूबर तक कंप्लीट कर दशहरा मैदान में पहुंचा देंगे.

बदलता गया रावण दहन का स्थान

शहर के इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के बाद यानि वर्ष 1947 से यहां रावण दहन करने की परंपरा के प्रमाण मिलते हैं, पहले हिन्दू उत्सव और 1986 से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति रावण दहन का आयोजन करती है. जिला प्रशासन समिति इसमें सहयोग करता है, जिसमें मैदान उपलब्ध कराना, साफ-सफाई, दर्शकों के लिए जलपान और मंच आदि शामिल है. ये कार्यक्रम पहले भुजरिया तालाब के पास खाली मैदान में होता था, आबादी बढ़ने के चलते स्थान बदल दिया गया. संजय स्टेडियम के बाद इस आयोजन को अंतत: गोपालपुरा मैदान में शिफ्ट कर दिया गया, अब दशहरे की पहचान यही मैदान है.

मुस्लिम कलाकार दे रहे अंतिम रूप

दशहरा मैदान के नजदीक रावण निर्माण का काम अंतिम दौर में है, समिति के अध्यक्ष गोविंद सोनी बताते हैं कि यह उत्सव सौहार्द के लिए जाना जाता है, पुतले का निर्माण मुस्लिम कारीगर करते हैं. वहीं जलील खान बताते हैं कि पहले उनके बुजुर्ग रावण का पुतला बनाते थे, अब यह काम उनके जिम्मे आ गया है, इसके लिए वह पैसा भी नाम मात्र ही लेते हैं. उनके साथ पांच और कलाकार हैं, जो अपने-अपने हिस्से का काम बखूबी जानते हैं और समय रहते पूरा कर देते हैं. जलील मूलत: बदरवास के रहने वाले हैं.

1986 से रामलीला करा रही समिति

समिति के सचिव विजय पटेरिया बताते हैं कि 1986 से लगातार यह समिति रामलीला का आयोजन कर रही है, तत्पश्चात रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता है, जिसमें शहर के 1000 लोगों द्वारा चंदा दिया जाता है, जलझूलनी एकादशी से यह कार्यक्रम शुरू होता है, समिति कार्यकर्ताओं की मीटिंग होती है और निर्णय लिया जाता है कि इस बार धर्म की गंगा किस तरह बहेगी, जमील का परिवार पिछले 25 वर्षों से रावण का पुतला बनाने का काम कर रहा है.

घटती-बढ़ती गई रावण की ऊंचाई

15 अक्टूबर को दशहरा पर्व के मौके पर 35 फीट ऊंचे रावण का दहन किया जाएगा, इससे पहले साल 2020 में इसकी ऊंचाई 31 फीट थी. यानि रावण का कद भी इस साल बढ़ा है. एक समय में 75 फीट ऊंचे रावण का दहन भी हो चुका है, कुछ वर्षों पहले यहां रावण के साथ मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले भी दिखते थे, लेकिन महंगाई और अन्य कारणों की वजह से केवल रावण का ही दहन किया जाने लगा. संजय स्टेडियम में रावण दहन के दौरान विशाल आकार की चर्चा प्रदेशभर में होती थी, दशहरा मैदान में जबसे रावण दहन होने लगा, तब अधिकतम आकार 51 फीट ही बचा. शहर के अलावा अंचल में भी रावण का कद लगातार घट रहा है, कोरोना की पाबंदियों में कुछ छूट मिलने से उत्सवों का उत्साह बढ़ा है.

गुना। यूं तो मालवा का प्रवेश द्वार शांति का टापू माना जाता है, इतना राजनीति द्वंद झेलने के बाद भी गुना में अशांति जैसी परिस्थितियां कभी नहीं बनी. जब भी यहां की आब-ओ-हवा में जहर घोलने की कोशिश हुई तो यहां के नागरिक अपनी मीठी बोली और आपसी भाई चारे की मिठास में नफरत को घोलकर पी गए. ऐसा भी कह सकते हैं कि जिस परम्परा का रिवाज है, कुछ उसी तरह आपसी सौहार्द के पर्यायवाची यहां के हिंदू-मुस्लिम हैं. गुना में दशहरा पर्व भी ऐसा ही मौका है, जब यहां की गंगा-जमुनी तहजीब की झलक दिखाई देती है.

रावण दहन की तैयारी

क्रिकेट की पिच पर 'महाराज' क्लीन बोल्ड! पूर्व IAS की फिरकी में फंसे सिंधिया

यहां मुस्लिम बनाते हैं रावण का पुतला

अक्सर कहा और समझा जाता है कि दशहरा पर्व हिंदू संस्कृति का त्यौहार है, लेकिन गुना शहर इस मामले में कुछ अलग है. यहां मुस्लिम समुदाय रावण के पुतलों का निर्माण करता है और हिंदू रीति-रिवाज से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति दहन का दायित्व निभाती है. बदरवास निवासी जमील बताते हैं पिछले 25 सालों से हमारा परिवार रावण का पुतला बनाता आ रहा है, इसी से उनकी आजीविका चलती है, दशहरे के पहले ताजिया बनाने का काम करते हैं, उसके बाद रावण बनाने में लग जाते हैं, 7 अक्टूबर को गुना पहुंच गए थे, अब 15 अक्टूबर तक कंप्लीट कर दशहरा मैदान में पहुंचा देंगे.

बदलता गया रावण दहन का स्थान

शहर के इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के बाद यानि वर्ष 1947 से यहां रावण दहन करने की परंपरा के प्रमाण मिलते हैं, पहले हिन्दू उत्सव और 1986 से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति रावण दहन का आयोजन करती है. जिला प्रशासन समिति इसमें सहयोग करता है, जिसमें मैदान उपलब्ध कराना, साफ-सफाई, दर्शकों के लिए जलपान और मंच आदि शामिल है. ये कार्यक्रम पहले भुजरिया तालाब के पास खाली मैदान में होता था, आबादी बढ़ने के चलते स्थान बदल दिया गया. संजय स्टेडियम के बाद इस आयोजन को अंतत: गोपालपुरा मैदान में शिफ्ट कर दिया गया, अब दशहरे की पहचान यही मैदान है.

मुस्लिम कलाकार दे रहे अंतिम रूप

दशहरा मैदान के नजदीक रावण निर्माण का काम अंतिम दौर में है, समिति के अध्यक्ष गोविंद सोनी बताते हैं कि यह उत्सव सौहार्द के लिए जाना जाता है, पुतले का निर्माण मुस्लिम कारीगर करते हैं. वहीं जलील खान बताते हैं कि पहले उनके बुजुर्ग रावण का पुतला बनाते थे, अब यह काम उनके जिम्मे आ गया है, इसके लिए वह पैसा भी नाम मात्र ही लेते हैं. उनके साथ पांच और कलाकार हैं, जो अपने-अपने हिस्से का काम बखूबी जानते हैं और समय रहते पूरा कर देते हैं. जलील मूलत: बदरवास के रहने वाले हैं.

1986 से रामलीला करा रही समिति

समिति के सचिव विजय पटेरिया बताते हैं कि 1986 से लगातार यह समिति रामलीला का आयोजन कर रही है, तत्पश्चात रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता है, जिसमें शहर के 1000 लोगों द्वारा चंदा दिया जाता है, जलझूलनी एकादशी से यह कार्यक्रम शुरू होता है, समिति कार्यकर्ताओं की मीटिंग होती है और निर्णय लिया जाता है कि इस बार धर्म की गंगा किस तरह बहेगी, जमील का परिवार पिछले 25 वर्षों से रावण का पुतला बनाने का काम कर रहा है.

घटती-बढ़ती गई रावण की ऊंचाई

15 अक्टूबर को दशहरा पर्व के मौके पर 35 फीट ऊंचे रावण का दहन किया जाएगा, इससे पहले साल 2020 में इसकी ऊंचाई 31 फीट थी. यानि रावण का कद भी इस साल बढ़ा है. एक समय में 75 फीट ऊंचे रावण का दहन भी हो चुका है, कुछ वर्षों पहले यहां रावण के साथ मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले भी दिखते थे, लेकिन महंगाई और अन्य कारणों की वजह से केवल रावण का ही दहन किया जाने लगा. संजय स्टेडियम में रावण दहन के दौरान विशाल आकार की चर्चा प्रदेशभर में होती थी, दशहरा मैदान में जबसे रावण दहन होने लगा, तब अधिकतम आकार 51 फीट ही बचा. शहर के अलावा अंचल में भी रावण का कद लगातार घट रहा है, कोरोना की पाबंदियों में कुछ छूट मिलने से उत्सवों का उत्साह बढ़ा है.

Last Updated : Oct 14, 2021, 6:55 PM IST
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