डिंडौरी। जिद जब जुनून बन जाये तो दशा-दिशा बदलने में देर नहीं लगती, फिर तो हल्की-हल्की चोट भी पत्थर का सीना चीरने का दम रखती है. बिहार के दशरथ मांझी के पत्थर जैसे इरादे को खुद पहाड़ ने भी रास्ता दे दिया था तो मध्यप्रदेश के दशरथ मांझी ने निर्जन पहाड़ी को तराश कर देवलोक की तर्ज पर विकसित कर दिया है. बस एक जिद ही तो थी, जिसने उस प्रेमा दास को इतना बड़ा शिल्पकार बना दिया, जिसने कभी छेनी तक नहीं उठाई थी.
निर्जन पत्थरों पर देवताओं के अक्श उतारने की जिद ने ही निर्जन पहाड़ी को आस्था का केंद्र बना दिया. प्रेमा दास राठौर के सिर पर देवता गढ़ने की ऐसी जिद सवार है कि जिस भी पत्थर पर प्रेमा की छेनी की मार पड़ती है. अगले ही पल वह पत्थर पारस बन जाता है. ऐसा करने के पीछे प्रेमा दास बताते हैं कि उन्हें सपने में नदी में डूबता शिवलिंग दिखाई दिया था.
गीधा गांव निवासी प्रेमा दास ने साल 2011 की बसंत पंचमी के दिन से पत्थरों को जीवंत बनाने का सिलसिला शुरू किया था, इसके लिए जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर जबलपुर-अमरकंटक मार्ग पर स्थित मछरार नदी के संगम घाट के पास की पहाड़ियों का चयन किया था, जहां आज लगभग 130 से अधिक देवी-देवताओं की कलाकृतियां उकेरी गई हैं, जो आगे भी जारी रहेगी. इस जगह को उन्होंने इसलिए भी चुना क्योंकि इसी घाट से 11 कोसी परिक्रमा शुरू होकर अमलेश्वर धाम बीहर तक पहुंचती है. अब इस देवलोक की स्थापना से स्थानीय लोग भी बेहद खुश हैं.
शिल्पकारी वो विधा है, जो निर्जन को भी जीवंत बना देती है. फिर चाहे पत्थर ही क्यों न हो, छेनी की हल्की-हल्की चोट पत्थर को तराशकर पारस बना देती है. प्रेमा दास की शिल्पकारी, जिद और जुनून ने ही बेजान पहाड़ी को जीवंत कर दिया है. जो तारीख पर दर्ज होकर सदियों तक उन्हें लोगों के दिलों में जीवंत रखेगी.