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प्रेमा दास की जिद ने बदली अकला घाट की तस्वीर, बीहड़ को तराश कर बसा दिया 'देवलोक'

शिल्प वो अभिव्यक्ति है, जो बेजान में भी जान भर देती है और यही शिल्पकारी जब जुनून बन जाती है तब इतिहास रच देती है. प्रेमा दास के जिद और जुनून ने वो कर दिखाया है, जिसके बारे में कल्पना करना भी कठिन है क्योंकि इन्होंने अपनी छेनी की मार से 136 से अधिक देवी-देवता गढ़ डाला है.

देवलोक के शिल्पकार
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Published : Jul 29, 2019, 7:04 PM IST

डिंडौरी। जिद जब जुनून बन जाये तो दशा-दिशा बदलने में देर नहीं लगती, फिर तो हल्की-हल्की चोट भी पत्थर का सीना चीरने का दम रखती है. बिहार के दशरथ मांझी के पत्थर जैसे इरादे को खुद पहाड़ ने भी रास्ता दे दिया था तो मध्यप्रदेश के दशरथ मांझी ने निर्जन पहाड़ी को तराश कर देवलोक की तर्ज पर विकसित कर दिया है. बस एक जिद ही तो थी, जिसने उस प्रेमा दास को इतना बड़ा शिल्पकार बना दिया, जिसने कभी छेनी तक नहीं उठाई थी.

देवलोक के शिल्पकार

निर्जन पत्थरों पर देवताओं के अक्श उतारने की जिद ने ही निर्जन पहाड़ी को आस्था का केंद्र बना दिया. प्रेमा दास राठौर के सिर पर देवता गढ़ने की ऐसी जिद सवार है कि जिस भी पत्थर पर प्रेमा की छेनी की मार पड़ती है. अगले ही पल वह पत्थर पारस बन जाता है. ऐसा करने के पीछे प्रेमा दास बताते हैं कि उन्हें सपने में नदी में डूबता शिवलिंग दिखाई दिया था.

गीधा गांव निवासी प्रेमा दास ने साल 2011 की बसंत पंचमी के दिन से पत्थरों को जीवंत बनाने का सिलसिला शुरू किया था, इसके लिए जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर जबलपुर-अमरकंटक मार्ग पर स्थित मछरार नदी के संगम घाट के पास की पहाड़ियों का चयन किया था, जहां आज लगभग 130 से अधिक देवी-देवताओं की कलाकृतियां उकेरी गई हैं, जो आगे भी जारी रहेगी. इस जगह को उन्होंने इसलिए भी चुना क्योंकि इसी घाट से 11 कोसी परिक्रमा शुरू होकर अमलेश्वर धाम बीहर तक पहुंचती है. अब इस देवलोक की स्थापना से स्थानीय लोग भी बेहद खुश हैं.

शिल्पकारी वो विधा है, जो निर्जन को भी जीवंत बना देती है. फिर चाहे पत्थर ही क्यों न हो, छेनी की हल्की-हल्की चोट पत्थर को तराशकर पारस बना देती है. प्रेमा दास की शिल्पकारी, जिद और जुनून ने ही बेजान पहाड़ी को जीवंत कर दिया है. जो तारीख पर दर्ज होकर सदियों तक उन्हें लोगों के दिलों में जीवंत रखेगी.

डिंडौरी। जिद जब जुनून बन जाये तो दशा-दिशा बदलने में देर नहीं लगती, फिर तो हल्की-हल्की चोट भी पत्थर का सीना चीरने का दम रखती है. बिहार के दशरथ मांझी के पत्थर जैसे इरादे को खुद पहाड़ ने भी रास्ता दे दिया था तो मध्यप्रदेश के दशरथ मांझी ने निर्जन पहाड़ी को तराश कर देवलोक की तर्ज पर विकसित कर दिया है. बस एक जिद ही तो थी, जिसने उस प्रेमा दास को इतना बड़ा शिल्पकार बना दिया, जिसने कभी छेनी तक नहीं उठाई थी.

देवलोक के शिल्पकार

निर्जन पत्थरों पर देवताओं के अक्श उतारने की जिद ने ही निर्जन पहाड़ी को आस्था का केंद्र बना दिया. प्रेमा दास राठौर के सिर पर देवता गढ़ने की ऐसी जिद सवार है कि जिस भी पत्थर पर प्रेमा की छेनी की मार पड़ती है. अगले ही पल वह पत्थर पारस बन जाता है. ऐसा करने के पीछे प्रेमा दास बताते हैं कि उन्हें सपने में नदी में डूबता शिवलिंग दिखाई दिया था.

गीधा गांव निवासी प्रेमा दास ने साल 2011 की बसंत पंचमी के दिन से पत्थरों को जीवंत बनाने का सिलसिला शुरू किया था, इसके लिए जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर जबलपुर-अमरकंटक मार्ग पर स्थित मछरार नदी के संगम घाट के पास की पहाड़ियों का चयन किया था, जहां आज लगभग 130 से अधिक देवी-देवताओं की कलाकृतियां उकेरी गई हैं, जो आगे भी जारी रहेगी. इस जगह को उन्होंने इसलिए भी चुना क्योंकि इसी घाट से 11 कोसी परिक्रमा शुरू होकर अमलेश्वर धाम बीहर तक पहुंचती है. अब इस देवलोक की स्थापना से स्थानीय लोग भी बेहद खुश हैं.

शिल्पकारी वो विधा है, जो निर्जन को भी जीवंत बना देती है. फिर चाहे पत्थर ही क्यों न हो, छेनी की हल्की-हल्की चोट पत्थर को तराशकर पारस बना देती है. प्रेमा दास की शिल्पकारी, जिद और जुनून ने ही बेजान पहाड़ी को जीवंत कर दिया है. जो तारीख पर दर्ज होकर सदियों तक उन्हें लोगों के दिलों में जीवंत रखेगी.

Intro:एंकर _ इंसान के अंदर अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति हो तो उसके लिए सारे कठिन काम आसान से लगने लगते है।ऐसा ही कुछ कर दिखाया है डिंडौरी के प्रेमा दास ने।प्रेमा दास की पत्थरों पर अक्स उतारने की ज़िद अब जुनून बन चुकी है। जिसके चलते नदी किनारे प्रेमा दास ने बीहड़ पड़ी पहाड़ियों पर अब कई देवी देवताओं की कलाकृति अपने हाथों उकेर दी है।प्रेमा दास की इस कड़ी मेहनत, लगन और आत्मशक्ति को देख हर कोई हैरान है। वही इसे देखने अब लोग गाँव से निकलकर उस घाट तक पहुँच रहे है जिसे प्रेमा दास ने आस्था का केंद्र बना दिया है।प्रेमा दास के सिर पर बस एक ही धुन सवार है फिर चाहे सुबह हो,दोपहर हो या शाम बस हाथो में छेनी और हथौड़ा लिए निकल पड़ते है मंदिर से लगे घाट पर और जुट जाते है पत्थरो पर देवी देवताओं की अक्स बनाने में।प्रेमा दास की माने तो उसे स्वप्न में भगवान शिव का शिवलिंग नदी में दिखाई दिया जिसे नदी से निकाल कर उसी घाट किनारे स्थापित कर पूजा पाठ शुरू की।


Body:वि ओ 01 डिंडौरी मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर जबलपुर अमरकंटक मार्ग पर स्थित ग्राम गीधा से 3 किलोमीटर दूर मछरार नदी संगम घाट में गीधा निवासी प्रेमा दास राठौर ने घाट के पहाड़ियों में पत्थरों को तराश कर उन्हें प्रतिमा का स्वरूप दे रहे है । छेनी और हथोड़ा के सहारे अब तक प्रेमा दास द्वारा कई देवी-देवताओं की लगभग 130 से अधिक मूर्तियों की कलाकृति बना दी गई है । प्रेमा दास ने बताया कि उसने पत्थरों को तराश की मूर्तियां बनाने का काम जनवरी 2011 बसंत पंचमी से प्रारंभ किया था जो अब तक पूरा नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि विशाल शिवलिंग जो लगभग 4 क्विंटल से अधिक वजनी है उसे अकला घाट में स्थापित किया गया है।प्रेमा दास ने अब तक देवी देवताओं में माँ नर्मदा, हनुमान, विष्णु ,जगदीश भगवान ,महालक्ष्मी, गोमुखी ,राधा कृष्ण ,भगवान गणेश ,भगवान राम सीता ,भगवान कुबेर ,कार्तिक ,कीर्ति ,माँ पार्वती ,मीराबाई श्रवण कुमार, शंख, हाथी ,नंदी बैल एवं अन्य कलाकृतियों को पत्थर में उकेर चुके हैं ।

संगम घाट को बताया 11 कोसी परिक्रमा _ प्रेमा दास ने बताया कि मछरार नदी पर स्थित संगम घाट से 11 कोसी परिक्रमा की जा सकती है । जो संगम घाट से प्रारंभ होकर गांव से 2 किलोमीटर दूर अमलेश्वर धाम बीहर तक पहुंचती है । बीहर से वापस गोमती नदी के किनारे होते हुए गांव में स्थित ऐतिहासिक ऋण मुक्तेश्वर मंदिर तक पहुंचती है । वापस गोमती नदी के किनारे बल्लारपुर,कूड़ा ,मणियारास होते हुए संगम घाट में आकर मिलती है । मान्यता है कि 11 कोसी परिक्रमा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है ।

आत्मा में आया विचार और कर दी कलाकृति _ प्रेमा दास ने बताया कि नर्मदा किनारे मूर्तियां बनाने की सोच वर्षों से मन में बनी हुई थी लेकिन अचानक मन में विचार आया कि आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ अलग हटकर किया जाए जिससे आने वाले दिनों में पत्थरों को तराश कर बनाई गई मूर्तियों को लोग देखकर पूजा पाठ शुरू कर सकें। वही प्रेमा दास की दिली तमन्ना है कि उसके द्वारा किये गए प्रयास से जिला सहित प्रदेश और देश के लोगो को जानकारी लगे लोग यहाँ भक्ति भावना लेकर आया पूजा पाठ करे।

सड़क मार्ग की मांग _ आपको बता दें कि गीधा गांव से अकला घाट तक सड़क मार्ग नहीं है । कच्ची और कीचड़ भरे रास्ते से जो जानकार लोग हैं उन्हें यहां आना पड़ता है और अपनी आस्था को लेकर लोग पहुंचते हैं पूजा-पाठ करते हैं मनोकामना मांगते हैं। लोगों की मांग है कि जल्द से जल्द जिला प्रशासन गीता गांव से अमलेश्वर घाट तक एक सीमेंटेड सड़क तैयार कर सकें जिससे लोगों को यहां आने जाने में आसानी हो सके।


Conclusion:121 _ प्रेमा दास राठौर,कलाकार
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