डिंडौरी। आदिवासी जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन वहां तक पहुंच नहीं होने और दुर्गम रास्तों के चलते इन स्थानों का विकास नहीं हो पा रहा है. यही वजह है कि जिले के ही ज्यादातर लोगों को यहां के प्राकृतिक जलप्रपातों की जानकारी तक नहीं है. प्रकृति के गोद में बसा एक ऐसा गांव, जहां प्रकृति ने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया है. घने जंगलों और हरी-भरी वादियों के बीच लगभग दो किलोमीटर दूर से ही झरझरा जल प्रपात से निकलती कल-कल की आवाज लोगों को आकर्षित करने लगती है.
झरझरा जल प्रपात को डिंडौरी जिले के बेहद कम लोग ही जानते है. जो जानते है वे ग्रामीणों की मदद से साल में उन दिनों आते है जब मौसम साफ हो और गर्मियों का समय हो. इस झरझरा जल प्रपात की खासियत यह है कि यह जंगल के बीच प्रकृति की गोद मे बसा है. झरझरा जलप्रपात जाने के लिए लोगो को दुर्गम और कच्चे पगडंडियों भरे रास्ते पर पैदल चलना पड़ता है. गाँव से इसकी दूरी 3 से 4 किलोमीटर है. यहां से आना और जाना कठिन कार्य है.
झरझरा जलप्रपात डिंडौरी मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है. मुख्यालय से अमरकंटक मार्ग पर सिमरिया ग्राम से माधोपुर होते हुए रामहेपुर जाना पड़ता है, फिर रामहेपुर ग्राम के बैगा टोला गांव से खेत की मेढ़ से होते हुए तीन किलोमीटर दूर जंगल के बीच झरझरा जलप्रपात मौजूद है. रामहेपुर तक दोपहिया या चार पहिया वाहनों से पहुंचा जा सकता है, लेकिन रामहेपुर से झरझरा जलप्रपात तक पहुंचने के लिए तीन किलोमीटर तक कच्चा रास्ता तय करना पड़ता है. जो वन विभाग की भूमि है, यहां ग्रामीणों ने दोपहिया वाहन या पैदल चलने के लिए रास्ता बनवाने की मांग की है.
ग्रामीणों और यहां आने वाले पर्यटकों की मांग है कि शासन इस झरझरा जलप्रपात के आसपास टीन शेड और सीढ़ियों का निर्माण करा दे, ताकि यहां आने वाले सैलानियों के लिए झरने का आनंद लेने के बाद भोजन और बैठकर आराम कर सकें.