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बैगाओं की होली का है अनोखा अंदाज, जानिए फाग गीत के अलावा और क्या होता है खास

मनापुर जनपद क्षेत्र के टिकरिया गांव में बैगाओं की होली कुछ अलग ही अंदाज में होती है,होली के दूसरे दिन से पंचमी तक पांच दिनों के लिए बैगाओं द्वारा फाग गाया जाता है.

बैगाओं की होली
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Published : Mar 22, 2019, 1:31 PM IST

डिंडौरी। मनापुर जनपद क्षेत्र के टिकरिया गांव में बैगाओं की होली कुछ अलग ही अंदाज में होती है. बैगा जनजाति के लोग होली का पर्व पूरे रीति-रिवाज और परंपरा के साथ मनाते हैं. बैगाओं में होली के दिन पूजा-पाठ सहित बलि देने की परंपरा है. बैगा मदिरापान के सेवन के साथ फाग गीत की धुन पर झूम उठते हैं.

Holi of Bagua
बैगाओं की होली

होली के दूसरे दिन से पंचमी तक पांच दिनों के लिए बैगाओं द्वारा फाग गाया जाता है. गांव में फाग गाने के लिए गायक बुलाए जाते हैं. जब तक गांव मे फाग गाया जाता है, तब तक बैगा पुरूष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते हैं. फाग के दौरान महिलाएं ताली बजाकर उनका उत्साह बढ़ाती हैं तो दूसरी तरफ पत्ते को कपनुमा रूप देकर पुरुष उसमें मदिरा का सेवन करते हैं.

बैगाओं की होली

वहीं महिलाएं घेरा बनाकर गांव में पानी की समस्या पर फाग गीत गाकर भगवान को सुनाती हैं ताकि पानी की कमी के चलते उनकी फसल प्रभावित न हो. फाग गाते समय महिलाएं एक-दूसरे की कमर पर हाथ रखकर मांदर बजाने वाले के चारों तरफ घूमती हैं.

बुजुर्ग बैगाओं की मानें तो होलिका दहन के दूसरे दिन वे अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और धूप, फूल, रंग, गुलाल, सुपाड़ी चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इसके बाद ही बैगा परिवार देवी देवालय में मुर्गे की बलि चढ़ाने के बाद हाथ से बनी मदिरा भेंट कर त्योहार की शुरुआत करते हैं.


डिंडौरी। मनापुर जनपद क्षेत्र के टिकरिया गांव में बैगाओं की होली कुछ अलग ही अंदाज में होती है. बैगा जनजाति के लोग होली का पर्व पूरे रीति-रिवाज और परंपरा के साथ मनाते हैं. बैगाओं में होली के दिन पूजा-पाठ सहित बलि देने की परंपरा है. बैगा मदिरापान के सेवन के साथ फाग गीत की धुन पर झूम उठते हैं.

Holi of Bagua
बैगाओं की होली

होली के दूसरे दिन से पंचमी तक पांच दिनों के लिए बैगाओं द्वारा फाग गाया जाता है. गांव में फाग गाने के लिए गायक बुलाए जाते हैं. जब तक गांव मे फाग गाया जाता है, तब तक बैगा पुरूष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते हैं. फाग के दौरान महिलाएं ताली बजाकर उनका उत्साह बढ़ाती हैं तो दूसरी तरफ पत्ते को कपनुमा रूप देकर पुरुष उसमें मदिरा का सेवन करते हैं.

बैगाओं की होली

वहीं महिलाएं घेरा बनाकर गांव में पानी की समस्या पर फाग गीत गाकर भगवान को सुनाती हैं ताकि पानी की कमी के चलते उनकी फसल प्रभावित न हो. फाग गाते समय महिलाएं एक-दूसरे की कमर पर हाथ रखकर मांदर बजाने वाले के चारों तरफ घूमती हैं.

बुजुर्ग बैगाओं की मानें तो होलिका दहन के दूसरे दिन वे अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और धूप, फूल, रंग, गुलाल, सुपाड़ी चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. इसके बाद ही बैगा परिवार देवी देवालय में मुर्गे की बलि चढ़ाने के बाद हाथ से बनी मदिरा भेंट कर त्योहार की शुरुआत करते हैं.


Intro:एंकर _ आधुनिकता के इस युग मे जहाँ पारंपरिक कार्यक्रमो को लोग अनदेखा करने लगे है तो वही धीरे धीरे हर त्योहारों का रंग फीका सा नजर आता है।बात अगर होली के करें तो नगर और महानगरों में डीजे और साउंड की धुन पर लोग मनोरंजन पानी की बौछारों के बीच रंग गुलाल खेलना पसंद करते है।लेकिन ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगो मे अगर बात बैगा जनजाति की की जाए तो वे आज भी अपनी रीति रिवाज और परंपरा के अनुसार होली का पर्व मनाते है।बैगाओं में देव देवाला में पूजा पाठ सहित बलि देने की परंपरा है साथ ही हाथो से बनी मदिरा पान का सेवन महिला पुरुष बैठ कर फाग गीत का आनंद लेते है।


Body:वि ओ 01 डिंडौरी यू तो आदिवासी जिला है जहाँ आदिवासी सहित बैगा जनजाति के लोग आज भी अपनी पारंपरिक पोषक के साथ रहना खाना और त्योहारों का आनंद लेना पसंद करते है।बैगाओं की होली आम जनों की होली से कुछ अलग होती है।डिंडौरी जिले के समनापुर जनपद क्षेत्र के टिकरिया गाँव मे होली का रंग बैगाओं को कुछ इस तरह से चढ़ता है कि जो भी इसमें शामिल होता है फाग की धुन पर झूम उठता है। बुजुर्ग बैगाओं की माने तो होलिका दहन के दूसरे दिन वे अपने इष्ट देवी देवताओं की पूजा पाठ करते है उनपर धूप,बत्ती,फूल ,रंग ,गुलाल,सुपाड़ी,पानी चढ़ा कर उनसे सुख समृद्धि की कामना करते है।इसके बाद बैगा परिवार अपने अपने हिसाब से देवी दिवालय में मुर्गा की बलि चढ़ा कर फिर हाथ से बनी मदिरा भेंट कर त्योहार की शुरुआत करते है।

विशेष होती है तैयारी _ होली के दिन में पुरुष वर्ग अपने घरों की मवेशियों को जंगल मे चरने के लिए छोड़ने जाते है और महिलाए घरों की साफ सफाई और पूजा पाठ कर पकवान तैयार करती है।बैगाओं में अपने अपने घरों में मवेशी पाला जाता है । जिन गाय और बेल बांधने के लिए गौशाला बनाई जाती है उसमे वे सभी पररामन मुर्गा की बलि चढ़ाते है। जिससे उनके पशु धन की हानि न हो सके।इसके बाद घर के सभी सदस्य एक साथ पकवान के साथ मदिरा पान करते है ।जब गाँव के सभी घर के लोग भोजन कर फ्री होते है उंसके बाद गाँव के किसी एक घर पर एकत्रित होकर टिमकी, मांदर की थाप पर फाग गाना शुरू करते है।फाग के दौरान एक तरफ महिलाए ताली बजाकर उनका उत्साह वर्धन करती है वही दूसरी तरफ कप नुमा पत्ते पर पुरुष वर्ग महुए की मदिरा का सेवन कर फाग सहित होली का आनंद लेते है।

पानी की समस्या पर गाते है फाग _ महिलाएं घेरा बनाकर गाँव मे पानी की समस्या पर फाग गीत गाकर भगवान को सुनाते है ताकि पानी के चलते उनकी फसल प्रभावित न हो।फाग गाते समय महिलाए एक दूसरे की कमर पर हाथ रखकर मांदर बजाने वाले के चारो तरफ घूमती है। वही फाग गीत के बोल भी बैगानी भाषा के होते है। बैगा महिलाओ के द्वारा गाये गीत के सुर इतने सुरीले होते है की सुनने वाले को मंत्र मुग्ध कर दे।

5 दिन चलता है बैगाओं का फाग _ होली के दूसरे दिन से पंचमी तक पांच दिनों के लिए बैगाओं के द्वारा फाग गया जाता है।गाँव में फाग गाने वाले मंजे हुए गायक और बजाने वाले होते है। जब तक गाँव मे फाग गया जाता है तब तक बैगा पुरूष, महिलाए,बच्चे और बुजुर्ग एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते है।


Conclusion:बाइट _ 2 बैगा पुरुष महिला
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