धार। मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ और धार जिले में विशेष रूप से कड़कनाथ मुर्गा पाया जाता है. स्थानीय भाषा में इसे काली मासी मुर्गा भी कहा जाता है. कड़कनाथ मुर्गे की कलगी, त्वचा, मांस, टांग, हड्डियां, नाखून, पंख, अंडा और खून सभी काले रंग के होते हैं. इसी के चलते इसे कड़कनाथ मुर्गा कहा जाता है. इसका मांस अन्य प्रजातियों की मुर्गे की तुलना में स्वादिष्ट होता है. वहीं कड़कनाथ मुर्गे के मांस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और कम मात्रा में वसा होता है. इसको खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, जिसकी वजह से नॉनवेज खाने वालों की पहली पसंद कड़कनाथ मुर्गा बन जाती है. खास तौर पर ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड अत्यधिक हो जाती है.
कड़कनाथ मुर्गे के तीन रूप
कड़कनाथ मुर्गे का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में काले रंग के मुर्गे की तस्वीर बन जाती है, लेकिन कड़कनाथ मुर्गा तीन तरह का पाया जाता है.
पहला रूप
पहला रूप जेड ब्लैक कड़कनाथ मुर्गा होता है. इस प्रजाति के कड़कनाथ मुर्गे के पंख पूरे काले रंग के होते हैं.
दूसरी प्रजाति
वहीं कड़कनाथ की दूसरी प्रजाति मुर्गे की गोल्डन कड़कनाथ होती है. इस प्रजाति के मुर्गे के पंख काले के साथ गोल्डन रंग के भी दिखाई देते हैं. इसी के चलते इसे गोल्डन कड़कनाथ भी कहा जाता है.
तीसरी प्रजाति
कड़कनाथ मुर्गे की तीसरी प्रजाति पेंसिल कड़कनाथ के रूप में देखी जाती है. इस प्रजाति का कड़कनाथ मुर्गा पेंसिल की तरह दिखाई देता है.
चिकन के शौकीनों की पहली पसंद कड़कनाथ मुर्गा बनता जा रहा है. उसकी खास वजह कड़कनाथ मुर्गे के औषधीय गुण हैं. कड़कनाथ मुर्गे में अन्य प्रजातियों के मुर्गे की तुलना (18 प्रतिशत) में प्रोटीन की मात्रा (25 प्रतिशत) अधिक होती है. कड़कनाथ मुर्गे के मांस में वसा (0.73 से 1.05 प्रतिशत) अन्य प्रजाति (12 से 25 प्रतिशत) के मुर्गों की तुलना में काफी कम होती है, जिसके चलते इस प्रजाति के मुर्गे के मांस का सेवन हृदय रोगियों और डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभ दायक साबित होता है. कड़कनाथ मुर्गे के मांस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होने की वजह से शरीर को ताकत मिलती है. वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. वसा कम होने के चलते कड़कनाथ मुर्गे के सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल भी नहीं बढ़ता है. इन मुर्गों के मांस में विटामीन-C, विटामिन-E, बी-1, बी-2, बी-6, बी-12 के साथ-साथ अमीनो एसिड भी पाए जाते है. इन्हीं गुणों के चलते कड़कनाथ मुर्गे का मांस अन्य प्रजाति के मुर्गे की मांस की तुलना में खाने में स्वादिष्ट होता है.
एनर्जी बूस्टर हैं कड़कनाथ मुर्गा
कोरोना संकट काल के दौरान शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया गया, जिस व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होगी, वह संक्रमण के अटेक से बच जायेगा. यहीं वजह है कि अपने औषधीय गुणों के चलते कड़कनाथ मुर्गे को एनर्जी बूस्टर के रूप में भी पसंद किया जाता है, क्योंकि कड़कनाथ मुर्गे के मांस में ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, अमीनो एसिड और कम मात्रा में वसा होता है.
ठंड के दिनों में बढ़ती है कड़कनाथ की मांग
जैसे ही ठंड के मौसम की शुरुआत होती है, वैसे ही कड़कनाथ मुर्गे की मांग बड़ी तेजी से बढ़ने लगती है. इसके पीछे की वजह कड़कनाथ मुर्गे के मांस की तासीर को बताया जाता है, क्योंकि कड़कनाथ मुर्गे के मांस की तासीर गर्म होती है. इसी के चलते ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे के मांस का सेवन करने से शरीर को गर्मी मिलती है, जो कड़ाके की ठंड में राहत देने का काम करती है.
कड़कनाथ मुर्गे के मांस में वसा बिल्कुल कम मात्रा में होता है, जिससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है. वहीं ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, अमीनो एसिड होने की वजह से यह शरीर को एनर्जी देने का काम करता है, जिससे शरीर में ताकत बनी रहती है.
मांग के अनुसार नहीं कर पा रहे है पूर्ति
कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर केएस किरण बताते हैं कि, दिन पर दिन कड़कनाथ मुर्गे की मांग बड़ी तेजी से बढ़ती ही जा रही है. अपने औषधीय गुणों और मांस की गर्म तासीर के चलते बारिश और ठंड के दिनों में कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड तेज होती है, लेकिन जिले में मांग के अनुरूप कड़कनाथ मुर्गे की पूर्ति नहीं हो पा रही है.
कृषि विज्ञान केंद्र में भी कड़कनाथ मुर्गे की इतनी बड़ी मांग है कि दो-दो महीने की वेटिंग और एडवांस पेमेंट के बाद भी इसकी मांग को पूरा नहीं किया जा पा रहा है. इस समय 15 से अधिक किसानों ने कड़कनाथ मुर्गे की छोटी-छोटी हेचरी लगा रखी है, लेकिन मांग के अनुसार कड़कनाथ मुर्गे की पूर्ति नहीं हो पा रही है.
कड़कनाथ मुर्गे का पालन मुनाफे का सौदा
बगवानीय गांव के युवा किसान और कड़कनाथ मुर्गा पालक धीरेंद्र डावर ने बताया कि, वह पारंपरिक खेती अभी तक करते आ रहे थे, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से उन्होंने कड़कनाथ मुर्गे का पालन शुरू किया. इसके लिए बकायदा उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया. उसके बाद 10 से 15 हजार रुपये के खर्च कर उन्होंने अपने खलियान में कड़कनाथ मुर्गे पालन के लिए होचरी तैयार की, जिसमें 60 से 80 रुपये के हिसाब से 100 कड़कनाथ मुर्गियों के चूजे खरीदें गए. उसका पालन शुरू किया गया, जो 80 से 100 दिनों के बीच में वयस्क अवस्था में आ गए. कड़कनाथ मुर्गियों के चूजों को व्यस्क अवस्था में लाने के लिए उन्हें 2 से 3 सौ रुपये तक का खर्च लगा.
सोशल मीडिया पर की गई मार्केटिंग
कड़कनाथ मुर्गे की बिक्री के लिए सोशल मीडिया पर मार्केटिंग की गई. मार्केटिंग के बाद बड़ी तेजी से धीरेंद्र डावर के पास कड़कनाथ मुर्गों की डिमांड आई. 6 से 15 सौ प्रति नग के हिसाब से उन्होंने कड़कनाथ मुर्गे को बाजार में बेचकर बड़ा मुनाफा कमाया, जिसके चलते कड़कनाथ मुर्गे का पालन उनके लिए लाभ का धंधा साबित हुआ. अब वह बड़े स्तर पर कड़कनाथ मुर्गों की पालना करना चाहते हैं.
अपने औषधीय गुणों के चलते कड़कनाथ मुर्गा चिकन के शौकीनों की पहली पसंद बन गया है. अपने गर्म तासीर के मांस के चलते कड़कनाथ मुर्गे की मांग ठंड ओर बारिश के दिनों में बढ़ जाती है. यह खाने में भी लजीज होता है. हालांकि कड़कनाथ मुर्गे की बढ़ती मांग जिले भर में पूरी नहीं हो पा रही है.