धार। श्रावण मास में भोलेनाथ की पूजा-अर्चना कर भक्त विशेष आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, धरमपुरी में नर्मदा के बीचो-बीच टापू पर विराजे श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन के लिए भक्त श्रावण के पहले सोमवार को मंदिर में पहुंचे. त्रेता युग से श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का मंदिर धरमपुरी में नर्मदा के बीचो-बीच टापू पर विराजमान है.
प्रभु श्रीराम के पूर्वज राजा रंतिदेव ने मानव और धर्म के उत्थान के लिए यज्ञ का आयोजन किया था, उस यज्ञ में विघ्न डालने के लिए शुभाउ और महाभाउ नाम के असुरों ने ब्राह्मणों पर हमला किया था, तब यज्ञ कुंड में ब्राह्मणों ने बिल्वफल और आमफल की आहुति दी, तब यज्ञ कुंड में से स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव प्रकट हुए और उन्होंने शुभाउ और महाभाउ असुरों का नाश किया, तब से ही स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव यहां पर विराजे हैं. यज्ञ कुंड में आम और बिल्व फल की आहुति देने से महादेव प्रकट हुए थे, जिससे महादेव का नाम श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव पड़ा.
ऐसा कहा जाता है कि स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के नाम स्मरण मात्र से ही उतना पुण्य मिलता है, जितना पुण्य 12 ज्योतिर्लिंग की पैदल यात्रा करने से मिलता है. श्रावण के पवित्र महीने में भक्त स्वयंभू श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन के लिए उनके मंदिर पहुंचते हैं, जहां विशेष पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
महिलाएं भी विशेष रूप से दीया जलाकर भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर रही हैं. श्रावण के पवित्र मास में यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. श्रावण के अंतिम सोमवार को छप्पन भोग का प्रसाद भगवान को अर्पित किया जाता है. पूरे श्रावण यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.