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'ड्रम की नाव' पर नौनिहाल, पढ़ने के लिए जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगा रहे छात्र

देवास के हिरली गांव में बच्चे पढ़ने के लिए रोजाना अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं. गांव में केवल 5वीं तक का स्कूल होने के कारण बच्चों को पढ़ने के लिए ड्रम से बनाई जुगाड़ की नाव पर क्षिप्रा नदी को पार करके स्कूल जाना पड़ता है.

पढ़ने के लिए जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगा रहे छात्र
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Published : Aug 31, 2019, 10:39 PM IST

Updated : Sep 2, 2019, 1:53 PM IST

देवास। पढ़ने का ऐसा जुनून कि जान जोखिम में डालकर भी बच्चे रोजाना नदी को पार कर रहे हैं. देवास के हिरली गांव में जुगाड़ की नाव पर रोज छात्र अपनी जान की बाजी लगाते हैं, ताकि वे पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना सकें. हिरली गांव क्षिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है और यहां की आबादी लगभग 5000 से अधिक है. गांव में केवल कक्षा पांचवीं तक का स्कूल है, इसके आगे पढ़ने के लिए बच्चे क्षिप्रा नदी के उस पार इंदौर जिले के स्कूल में पढ़ने जाते हैं, लेकिन नदी पार करने के लिए यहां न तो कोई पुल है और न किसी नाव की व्यवस्था.

पढ़ने के लिए जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगा रहे छात्र

ड्रम से बनी जुगाड़ की नाव

कहते हैं कि जहां चाह वहां राह, यही वजह है कि जब बच्चों की परेशानी को लेकर शासन-प्रशासन ने आंखें मूंद लीं, तो उन्होंने अपनी मदद खुद करने की ठानी. उन्होंने ड्रम से बनाई जुगाड़ की नाव और करने लगे क्षिप्रा नदी पार. अब बच्चे इसी जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगाकर स्कूल जाते हैं, लेकिन पता नहीं कि अब भी शासन-प्रशासन की नींद टूटेगी या फिर नहीं.

डर के आगे भी नहीं हारते बच्चे

बच्चों का कहना है कि ड्रम पर बैठकर हम नदी पार करते हैं, लेकिन ड्रम पर बैठते ही हमें डर लगता है. कई बार नाव पलट भी चुकी है, जिससे हम नदी में गिर गए थे और हमारे परिजनों ने तैरकर नदी में से निकाला. हमारे बैग-बस्ते भीग जाते हैं, बह जाते हैं. हम नदी पार करने में बहुत डरते हैं. गांव वालों ने हमारे लिए जुगाड़ की नाव बनाई है. कभी-कभी इस नाव की रस्सी भी टूट जाती है. जब तेज पानी आता है, तो हम स्कूल नहीं जाते हैं.

शिक्षक भी हैं चिंतित

इस बारे में शिक्षक से बात की गई तो शिक्षक का कहना है कि नदी पार करने में बच्चों को जान का खतरा है, हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे यहां आ जाते हैं तो हम बच्चों को स्कूल लेकर जाते हैं. हिरली गांव के बच्चे पढ़ने में होशियार हैं.

नदी किनारे परिजन करते हैं इंतजार

बच्चों के परिजनों का कहना है हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे इस ड्रम की जुगाड़ से नदी को पारकर स्कूल जाते हैं और स्कूल से लौट के नहीं आते जब तक हम इस नदी के किनारे पर बैठ के बच्चों का इंतजार करते हैं. हमें डर लगा रहता है कि बच्चे नदी में ना गिर जाएं.

देवास। पढ़ने का ऐसा जुनून कि जान जोखिम में डालकर भी बच्चे रोजाना नदी को पार कर रहे हैं. देवास के हिरली गांव में जुगाड़ की नाव पर रोज छात्र अपनी जान की बाजी लगाते हैं, ताकि वे पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना सकें. हिरली गांव क्षिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है और यहां की आबादी लगभग 5000 से अधिक है. गांव में केवल कक्षा पांचवीं तक का स्कूल है, इसके आगे पढ़ने के लिए बच्चे क्षिप्रा नदी के उस पार इंदौर जिले के स्कूल में पढ़ने जाते हैं, लेकिन नदी पार करने के लिए यहां न तो कोई पुल है और न किसी नाव की व्यवस्था.

पढ़ने के लिए जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगा रहे छात्र

ड्रम से बनी जुगाड़ की नाव

कहते हैं कि जहां चाह वहां राह, यही वजह है कि जब बच्चों की परेशानी को लेकर शासन-प्रशासन ने आंखें मूंद लीं, तो उन्होंने अपनी मदद खुद करने की ठानी. उन्होंने ड्रम से बनाई जुगाड़ की नाव और करने लगे क्षिप्रा नदी पार. अब बच्चे इसी जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगाकर स्कूल जाते हैं, लेकिन पता नहीं कि अब भी शासन-प्रशासन की नींद टूटेगी या फिर नहीं.

डर के आगे भी नहीं हारते बच्चे

बच्चों का कहना है कि ड्रम पर बैठकर हम नदी पार करते हैं, लेकिन ड्रम पर बैठते ही हमें डर लगता है. कई बार नाव पलट भी चुकी है, जिससे हम नदी में गिर गए थे और हमारे परिजनों ने तैरकर नदी में से निकाला. हमारे बैग-बस्ते भीग जाते हैं, बह जाते हैं. हम नदी पार करने में बहुत डरते हैं. गांव वालों ने हमारे लिए जुगाड़ की नाव बनाई है. कभी-कभी इस नाव की रस्सी भी टूट जाती है. जब तेज पानी आता है, तो हम स्कूल नहीं जाते हैं.

शिक्षक भी हैं चिंतित

इस बारे में शिक्षक से बात की गई तो शिक्षक का कहना है कि नदी पार करने में बच्चों को जान का खतरा है, हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे यहां आ जाते हैं तो हम बच्चों को स्कूल लेकर जाते हैं. हिरली गांव के बच्चे पढ़ने में होशियार हैं.

नदी किनारे परिजन करते हैं इंतजार

बच्चों के परिजनों का कहना है हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे इस ड्रम की जुगाड़ से नदी को पारकर स्कूल जाते हैं और स्कूल से लौट के नहीं आते जब तक हम इस नदी के किनारे पर बैठ के बच्चों का इंतजार करते हैं. हमें डर लगा रहता है कि बच्चे नदी में ना गिर जाएं.

Intro:बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं। हिरली गांव में कक्षा पांचवी तक स्कूल है, पांचवी के बाद बच्चों को शिप्रा नदी पार कर कर स्कूल पढ़ने जाना पड़ता है नदी में हमेशा पानी रहता है जुगाड़ की नाउ जो कि ड्रम पर बनी हुई है रस्सी के सहारे इस धर्म के नाम पर बैठकर बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल पढ़ने जाते हैं Body:देवास जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर हिरली गाँव स्थित है, इस गांव की आबादी लगभग 5000 से अधिक है,जो कि शिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है। इस गांव से शिप्रा नदी के उस पार इंदौर जिला लग जाता है, जहां पर बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं। हिरली गांव में कक्षा पांचवी तक स्कूल है, पांचवी के बाद बच्चों को शिप्रा नदी पार कर कर स्कूल पढ़ने जाना पड़ता है नदी में हमेशा पानी रहता है जुगाड़ की नाउ जो कि ड्रम पर बनी हुई है रस्सी के सहारे इस धर्म के नाम पर बैठकर बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल पढ़ने जाते हैं बच्चों का कहना है हम नदी पार करते हैं ड्रम पर बैठते से ही हम को डर लगता है कई बार नाव पलट भी चुकी है जिससे हम नदी में गिर गए हमको हमारे परिजनों ने तैरकर नदी में से निकाला हमारे बैग बस्ते भीग जाते हैं बह जाते हैं हम नदी पार करने में बहुत डरते हैं गांव वालों ने हमारे लिए जुगाड़ की है नाव बनाई है कभी-कभी इस नाउ की रस्सी भी टूट जाती है जब तेज पानी आता है तो हम स्कूल नहीं जाते हैं हमारी 4455 दिन की छुट्टी भी हो जाती है। जब हमने स्कूल जाकर स्कूल के शिक्षक से बात करी शिक्षक का भी कहना है नदी पार करने में बच्चों की जान का डर है हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं जब बच्चे यहां आ जाते हैं हम बच्चों को स्कूल ले कर जाते हैं हिरली गांव के बच्चे छठी सातवीं आठवीं नौवीं दसवीं 11वीं 12वीं के आते हैं सभी बच्चे पढ़ने में होशियार हैं बच्चों के परिजनों का कहना है हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं जब बच्चे यह ड्रम की जुगाड़ की नदी से पार कर स्कूल जाते हैं और स्कूल से लौट के नहीं आते जब तक हम इस नदी के किनारे पर बैठ के बच्चों का इंतजार करते हैं हम को डर लगा रहता है बच्चे नदी में ना गिर जाए।


बाईट-01 मोहन सिंह यादव स्कूल शिक्षक
बाईट-02 कयूम खान स्थानीय ग्रामीण
बाईट-03स्कूली छात्राConclusion:बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं। हिरली गांव में कक्षा पांचवी तक स्कूल है, पांचवी के बाद बच्चों को शिप्रा नदी पार कर कर स्कूल पढ़ने जाना पड़ता है नदी में हमेशा पानी रहता है जुगाड़ की नाउ जो कि ड्रम पर बनी हुई है रस्सी के सहारे इस धर्म के नाम पर बैठकर बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल पढ़ने जाते हैं
Last Updated : Sep 2, 2019, 1:53 PM IST
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