देवास। पढ़ने का ऐसा जुनून कि जान जोखिम में डालकर भी बच्चे रोजाना नदी को पार कर रहे हैं. देवास के हिरली गांव में जुगाड़ की नाव पर रोज छात्र अपनी जान की बाजी लगाते हैं, ताकि वे पढ़-लिखकर अपना भविष्य बना सकें. हिरली गांव क्षिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है और यहां की आबादी लगभग 5000 से अधिक है. गांव में केवल कक्षा पांचवीं तक का स्कूल है, इसके आगे पढ़ने के लिए बच्चे क्षिप्रा नदी के उस पार इंदौर जिले के स्कूल में पढ़ने जाते हैं, लेकिन नदी पार करने के लिए यहां न तो कोई पुल है और न किसी नाव की व्यवस्था.
ड्रम से बनी जुगाड़ की नाव
कहते हैं कि जहां चाह वहां राह, यही वजह है कि जब बच्चों की परेशानी को लेकर शासन-प्रशासन ने आंखें मूंद लीं, तो उन्होंने अपनी मदद खुद करने की ठानी. उन्होंने ड्रम से बनाई जुगाड़ की नाव और करने लगे क्षिप्रा नदी पार. अब बच्चे इसी जुगाड़ की नाव पर जान की बाजी लगाकर स्कूल जाते हैं, लेकिन पता नहीं कि अब भी शासन-प्रशासन की नींद टूटेगी या फिर नहीं.
डर के आगे भी नहीं हारते बच्चे
बच्चों का कहना है कि ड्रम पर बैठकर हम नदी पार करते हैं, लेकिन ड्रम पर बैठते ही हमें डर लगता है. कई बार नाव पलट भी चुकी है, जिससे हम नदी में गिर गए थे और हमारे परिजनों ने तैरकर नदी में से निकाला. हमारे बैग-बस्ते भीग जाते हैं, बह जाते हैं. हम नदी पार करने में बहुत डरते हैं. गांव वालों ने हमारे लिए जुगाड़ की नाव बनाई है. कभी-कभी इस नाव की रस्सी भी टूट जाती है. जब तेज पानी आता है, तो हम स्कूल नहीं जाते हैं.
शिक्षक भी हैं चिंतित
इस बारे में शिक्षक से बात की गई तो शिक्षक का कहना है कि नदी पार करने में बच्चों को जान का खतरा है, हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे यहां आ जाते हैं तो हम बच्चों को स्कूल लेकर जाते हैं. हिरली गांव के बच्चे पढ़ने में होशियार हैं.
नदी किनारे परिजन करते हैं इंतजार
बच्चों के परिजनों का कहना है हम नदी के इस पार खड़े रहते हैं. जब बच्चे इस ड्रम की जुगाड़ से नदी को पारकर स्कूल जाते हैं और स्कूल से लौट के नहीं आते जब तक हम इस नदी के किनारे पर बैठ के बच्चों का इंतजार करते हैं. हमें डर लगा रहता है कि बच्चे नदी में ना गिर जाएं.