देवास। जंगल की ज्वाला कहा जाने वाला पीला पलाश का वृक्ष देवास जिले के खातेगांव के जंगलों में देखने को मिला है. योगेश मालवीय ने बताया कि ''जंगल से जुड़े गांवों में भ्रमण के दौरान खातेगांव वनपरिक्षेत्र के सागोनिया के जंगल में पीला पलाश का वृक्ष दिखाई दिया. पत्रविहीन डालों पर रंग के समूह में खिले हुए इनके घने गुच्छे दूर से देखने पर ऐसे दिखाई देते हैं, मानो जंगल में आग लगी हो. पर्यावरण के क्षेत्र में सभी से अपील है कि आज इन वृक्षों को भी संरक्षित करने की जरूरत है क्योंकि ये तेजी से खत्म हो रहे हैं. इस कार्य में पंचायत और समुदाय के साथ वन समितियों के माध्यम से कदम उठाए जाने की आवश्यकता है''.
पीले पलाश को कहा जाता है जंगल की आग: इस संबंध में खिवनी अभ्यारण्य अधीक्षक राजेश मण्डावलिया में बताया कि सामान्यतः जब पलाश की बात आती है तो उसके केसरिया/लाल रंग के फूल ही हमारे दिमाग में आते हैं जो कि ग्रीष्म ऋतु में होली पर्व के आसपास जंगलों एवं खेतों में आसानी से देखे जा सकते हैं. इसके रंग एवं पुष्पन के समय के कारण इसे जंगल की आग भी कहा जाता है. किन्तु इसी पलाश/खाकरा प्रजाति में पीले रंग के पुष्प बहुत ही दुर्लभ हैं. इस प्रकार के पौधे सतपुड़ा घाटी के जंगलों में ही पाए जाते हैं. ऐसा ही एक पेड़ की जानकारी वन मंडल देवास के खातेगांव परिक्षेत्र के सागौनिया की प्राप्त हुई है.
पलाश से बनाए जाते हैं होली के रंग: खिवनी अधीक्षक राजेश मण्डावलिया द्वारा बताया कि ''पलाश को ग्रामीण क्षेत्र में टेसू, खाकरा, रक्तपुष्प, ब्रम्हाकलश, पलाश आदि नाम से जाना जाता है. इसके फूलों से होली पर्व हेतु रंग बनाये जाते हैं. पीले रंग के फूल वाला पलाश हमारे क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ है तथा यह मूल रूप से लाल रंग का पलाश ही है. किंतु कुछ प्राकृतिक/कृत्रिम कारणों से कुछ पौधों में रंग को नियंत्रित करने वाले जीन में परिवर्तन होने से लाल रंग का जीन कमजोर हो जाता है, जिसके कारण उन पौधों में पीले रंग के फूल आने लगते हैं. इसके अलावा पलाश में सफेद रंग के फूल भी पाए जाते हैं.