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परिवार के भरण-पोषण के लिए बेटी बनी बैल, मां चला रही है हल

अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मां-बेटी मिलकर हल चला रही हैं. अपनी फसल में उगे अनावश्यक घास के लिए बेटी बैल बनी है और मां हल को संभाल रही है.

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Published : Jul 13, 2019, 11:57 PM IST

भरण-पोषण के लिए बेटी बनी बैल, मां चला रही है हल

देवास। किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद-बीज अनुदान में दिए जाते हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजनाएं हितग्राहियों तक पहुंचती हैं या नहीं ये बताना मुश्किल है. सरकार की योजना का लाभ मिले या न मिले. लेकिन किसान को अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए खेती तो करनी पड़ती है.

भरण-पोषण के लिए बेटी बनी बैल, मां चला रही है हल

ऐसा ही एक मामला कन्नौद तहसील के भिलाई गांव में देखने को मिला है. जहां अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मां-बेटी मिलकर हल चला रही हैं. अपनी फसल में उगे अनावश्यक घास के लिए बेटी बैल बनी है और मां हल को संभाल रही है. भिलाई के पठार पर आदिवासी और अन्य परिवार के करीब 25 घर होंगे. इन्हीं 25 घरों में एक घर कारीबाई का है जो अपनी चार एकड़ जमीन में मक्का और मूंगफली उगाकर परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. कृषि विभाग से कोई मदद नहीं मिल रही है.

कारीबाई ने बताया कि तीन साल पहले एक सड़क हादसे में उनके पति हरदास और बेटे संतोष की मौत हो गई थी. तब से ये अपना परिवार पालने के लिए खेती और मजदूरी कर रही हैं. कारीबाई के कंधों पर दो बेटियों, एक बेटे एक पोते और अपनी सास की जिम्मेदारी है.

इस संबंध में पंचायत सचिव राजेश बागवान ने बताया कि कारीबाई को पंचायत स्तर से पीएम आवास, शौचालय, कल्याणी पेंशन और बीपीएल कार्ड का लाभ दिया है. पात्रता अनुसार जो भी योजनाएं आएंगी उनका लाभ भी प्राथमिकता से दिया जाएगा. इस संबंध में कृषि विभाग के अनुविभागीय अधिकारी आरके वर्मा ने कहा कि अब तक मुझे ये मामला जानकारी में नहीं था. अब कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ प्राथमिकता से करीबाई को दिया जाएगा.

देवास। किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरण और खाद-बीज अनुदान में दिए जाते हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजनाएं हितग्राहियों तक पहुंचती हैं या नहीं ये बताना मुश्किल है. सरकार की योजना का लाभ मिले या न मिले. लेकिन किसान को अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए खेती तो करनी पड़ती है.

भरण-पोषण के लिए बेटी बनी बैल, मां चला रही है हल

ऐसा ही एक मामला कन्नौद तहसील के भिलाई गांव में देखने को मिला है. जहां अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मां-बेटी मिलकर हल चला रही हैं. अपनी फसल में उगे अनावश्यक घास के लिए बेटी बैल बनी है और मां हल को संभाल रही है. भिलाई के पठार पर आदिवासी और अन्य परिवार के करीब 25 घर होंगे. इन्हीं 25 घरों में एक घर कारीबाई का है जो अपनी चार एकड़ जमीन में मक्का और मूंगफली उगाकर परिवार का पालन पोषण कर रही हैं. कृषि विभाग से कोई मदद नहीं मिल रही है.

कारीबाई ने बताया कि तीन साल पहले एक सड़क हादसे में उनके पति हरदास और बेटे संतोष की मौत हो गई थी. तब से ये अपना परिवार पालने के लिए खेती और मजदूरी कर रही हैं. कारीबाई के कंधों पर दो बेटियों, एक बेटे एक पोते और अपनी सास की जिम्मेदारी है.

इस संबंध में पंचायत सचिव राजेश बागवान ने बताया कि कारीबाई को पंचायत स्तर से पीएम आवास, शौचालय, कल्याणी पेंशन और बीपीएल कार्ड का लाभ दिया है. पात्रता अनुसार जो भी योजनाएं आएंगी उनका लाभ भी प्राथमिकता से दिया जाएगा. इस संबंध में कृषि विभाग के अनुविभागीय अधिकारी आरके वर्मा ने कहा कि अब तक मुझे ये मामला जानकारी में नहीं था. अब कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ प्राथमिकता से करीबाई को दिया जाएगा.

Intro:बेटी बनी बैल, माँ चला रही है डोरे

खातेगांव। कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए बात पर सरकार द्वारा जोर दिया जाता है। और किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कृषि उपकरणों एवं खाद-बीज अनुदान में दिया जाता है लेकिन जमीनी स्तर पर ये योजनाएं कितनी पात्र हितग्राहियो तक पहुंचती है ये बताना मुश्किल है। सरकार की योजना का लाभ मिले या न मिले। फिर भी किसान को अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए खेती तो करनी पड़ती है।
ऐसा ही एक मामला कन्नौद तहसील के ग्राम भिलाई में देखने को मिला। जहां अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए माँ-बेटी मिलकर डोरे चला रही है। अपनी फसल में उगे अनावश्यक घास के लिए बेटी बनी बैल और माँ डोरे को संभाल रही है।

Body:कुसमानिया-दीपगांव मार्ग स्थित ग्राम भिलाई के पठार पर इस प्रकार का नजारा इस मार्ग से निकलने वाले सभी राहगीर देखकर निकल जाते है।
आपको बता दे भिलाई के पठार पर आदिवासी एवं अन्य परिवार के करीब 25 घर होंगे। इन्ही के बीज कारीबाई पति हरदास बारेला भी रहती है। जो अपनी 4 एकड़ कृषि भूमि में मक्का एवं मूमफली उगाकर परिवार का पालन पोषण कर रही है। कृषि विभाग से कोई मदद नही मिल रही है। सोयाबीन का बीज नही मिलने की स्थिति में मक्का और मूमफली के बीज लगाए

कारीबाई ने बताया कि 3 साल पहले एक सड़क हादसे में उनके पति हरदास और बेटे संतोष की मौत हो गई। तब से ये अपना परिवार पालने के लिए खेती और मजदूरी कर रही है।
बूढ़ी सास और छोटे-2 चार बच्चों का पेट भरने के लिए आदिवासी महिला नर हिम्मत नही हारी। और मजबूत इरादों से खेत मे काम करना शुरू किया। कारीबाई ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी कृष्णा स्कूल नही जाती है। घर और खेत के काम मे उनकी मदद करती है। एक बेटा है जिसकी उम्र 10 साल के आसपास है।
खेती ने ज्यादा लागत न लगे इसलिए चौकड़ी से मक्का लगाई। और मूमफली और चवली भी लगाई है। खेती के काम मे सभी छोटे-बड़े सदस्य जुट जाते है।

वर्तमान में कारीबाई ने अपने खेत मे मक्का और मूमफली लगा रखी है। इनका परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इनको पंचायत की और से शासन की पीएम आवास, शौचालय, कल्याणी पेंशन और बीपीएल कार्ड का लाभ मिला लेकिन खेत के लिए अब तक किसी विभाग से कोई लाभ प्राप्त नही हुआ। कारीबाई ने बताया कि उन्होंने मुश्किल से मक्का और मूमफली का बीज खरीदकर खेत मे बीज लगाया है। इनके पास न तो बैल है और न ही बैल चलाने वाला है।

परिवार की मुखिया कारीबाई पर निर्भर परिवार के सदस्य

सास - नीलीबाई
बेटी- कृष्णा 12 साल, रजनी 8 साल (रिंकू और रितु दो बेटियों की शादी कर दी)
बेटा- सतीश 10 साल (संतोष नाम के बेटे की हादसे में मौत हो गई उसका बेटा रूपेश उम्र 3 साल इनके पास ही है, जबकि बहु इनको छोड़कर चली गई)


Conclusion:इस संबंध में पंचायत सचिव राजेश बागवान ने बताया कि कारीबाई को पंचायत स्तर से पीएम आवास, शौचालय, कल्याणी पेंशन और बीपीएल कार्ड का लाभ दिया है। पात्रता अनुसार जो भी योजनाएं आएगी उनका लाभ भी प्राथमिकता से दिया जाएगा।

इस संबंध में कृषि विभाग के अनुविभागीय अधिकारी आरके वर्मा से चर्चा कक तो उन्होंने बताया कि अब तक मुझे यह मामला जानकारी में नही था। अब कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ प्राथमिकता से दिया जाएगा।

बाईट- कारीबाई बारेला भिलाई
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