दमोह। भारत के इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई का नाम आज भी वीरांगनाओं में सबसे पहले लिया जाता है और ऐसी ही कई वीरांगनाए हैं. जिन्होंने भारतीय इतिहास में जगह बनाई. पर एक वीरांगना ऐसी भी हुई. जिसे इतिहास में वो स्थान नहीं मिला. जिसकी वह हकदार थी. वह थी 52 गढ़ में शासन करने वाली गौंड साम्राज्य की रानी दुर्गावती. दमोह जिले से करीब 65 किलोमीटर दूर जबलपुर रोड पर स्थित सिंगौरगढ़ किला और उसका इतिहास किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इसके इतिहास और उस पर राज करने वाले शासकों को वह सम्मान नहीं मिल पाया जो दूसरे शासकों को मिला.
15 वीं सदी की शुरूआत से करीब 40 वर्षों तक शासन करने वाले मंडला राज्य के शासक संग्राम शाह ने अपने शासनकाल में अपनी सीमाओं का बहुत विस्तार किया. 1541 में संग्राम शाह की मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे दलपत शाह ने गोंड साम्राज्य की कमान संभाली, लेकिन सिर्फ 7 सालों तक ही वह सत्ता का सुख भोग सके और बीमारी के कारण 1548 में उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद उनकी पत्नी वीरांगना रानी दुर्गावती ने गोंड साम्राज्य की बागडोर संभाली.
![Fort of Singaurgarh](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10740994_f.png)
रानी दुर्गावती के साथ ही खत्म हो गया उनका वंश
कमान संभालते ही पड़ी परिवार में फूट
रानी के साम्राज्य संभालते ही उनके परिवार में फूट पड़ गई. दलपत शाह के छोटे भाई चंद्रशाह चाहते थे कि शासन की बागडोर उनके हाथ में आ जाए, लेकिन रानी दुर्गावती एक कुशल शासक, एक अपराजेय योद्धा के साथ दूरदर्शी थी. उन्होंने सिंगौरगढ़ को अपनी राजधानी बनाया. 1964 में अकबर के सिपहसालार और मानिकपुर के सामंत आसफ खान ने 10 हज़ार घोड़ों और कई हजार पैदल सेना के साथ सिंगौरगढ़ पर चढ़ाई कर दी. अपनी वीरता का परिचय देते हुए रानी और उनकी सेना ने आसफ खान को मार भगाया. पर यह जीत बहुत समय तक कायम नहीं रह सकी. कुछ ही समय बाद आसफ खान ने फिर विशाल सेना के साथ किले पर चढ़ाई कर दी. तब रानी ने अपने 500 घुड़सवार और कुछ हाथियों के साथ मंडला पर कूच कर दिया. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था.
![Fort of Singaurgarh](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10740994_fg.png)
मुगलों ने सिंगौरगढ़ पर जताया अपना हक
सिंगौरगढ़ से जब रानी मंडला की ओर जा रही थी तभी जबलपुर के पास रानी के कुछ खास लोगों ने ही रानी को धोखा दे दिया. गद्दारों की वजह से नरेला नाला के पास मुगलों की सेना ने रानी को घेर दिया. तब भी रानी ने साहस दिखाते हुए मुगलों के कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. वहीं युद्ध करते हुए एक तीर रानी की आंख में जा घुसा. तब घायल अवस्था में रानी ने अपनी ही कटार से अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. रानी दुर्गावती की मृत्यु के बाद भले ही मुगलों ने सिंगौरगढ़ पर अपना हक जमा लिया.