दमोह। जिला मुख्यालय दमोह विधानसभा क्षेत्र 2018 से लगातार सुर्खियों में बनी हुई है. दरअसल 2018 में ये विधानसभा सीट इसलिए चर्चा में आयी कि कांग्रेस के युवा प्रत्याशी राहुल लोधी ने भाजपा के दिग्गज नेता जयंत मलैया को करीबी अंतर से चुनाव हराकर दमोह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी लेकिन एक ही साल बाद ये इसलिए सुर्खियों में आ गयी कि राहुल सिंह लोधी कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. तब तक भाजपा की सरकार थी और उन्हें भरोसा था कि वो उपचुनाव जीत जाएंगे, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बीच हुए चुनाव में दमोह की जनता ने राहुल लोधी को 17 हजार वोटों से चुनाव हरा दिया. अब दमोह विधानसभा इसलिए चर्चा में है कि एक तरफ राहुल लोधी टिकट के दावेदार हैं, तो दूसरी तरफ जयंत मलैया भले ही उम्र के 75 सावन पार कर चुके हों, लेकिन अपने बेटे सिद्धार्थ मलैया को राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए बेताब हैं. भाजपा की अंदरूनी लड़ाई में दमोह में कांग्रेस लगातार मजबूत हो रही है और कभी बीजेपी का गढ़ माने जाने वाला दमोह धीरे-धीरे कांग्रेस की मजबूत सीट के तौर पर उभर रहा है.
दमोह का इतिहास: एक पौराणिक कथा के अनुसार दमोह शहर का नाम नरवर की रानी दमंयती, जो राजा नल की पत्नि थी, उनके नाम पर पड़ा. दमोह के सिंग्रामपुर में मिले पाषाण हथियार साक्षी हैं,कि दमोह का इतिहास काफी प्राचीन है. दमोह जहां 5 वीं शताब्दी में पाटिलीपुत्र के गुप्त साम्राज्य का हिस्सा था, जिसके प्रमाण अलग-अलग जगहों पर मिले शिलालेख, सिक्के और प्राचीन दुर्गा मंदिर से मिलते हैं. जो समुद्रगुप्त,चन्द्रगुप्त और स्कंन्दगुप्त के शासन काल से सबंध रखते हैं. वहीं नोहटा का नोहलेश्वर मंदिर 10 वीं शताब्दी के कलचुरी शासकों की स्थापत्य कला का उदाहरण है. दमोह के कुछ इलाकों पर चंदेलो का भी शासन रहा, जिसे जेजाक मुक्ति कहा जाता था. 14 वीं शाताब्दी में दमोह पर मुगलों का अधिपत्य हो गया.
सलैया और बटियागढ़ में मिले पाषाण शिलालेख खिलजी और तुगलक वंश की जानकारी देते हैं. 15 वीं शताब्दी के आखिरी दशक में गौड़ वंश के शासक संग्राम सिंह ने दमोह को अपने शक्तिशाली और बहुआयामी साम्राज्य में शामिल कर लिया, जिसमें 52 किले थे. सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती मुगल साम्राज्य के प्रतिनिधि सेनापति आसफ खान की सेना से साहसिक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई. इस इलाके में बुंदेलो ने कुछ समय के लिए राज्य किया, फिर इसके बाद मराठों ने राज्य किया. सन 1888 में पेशवा की मौत के बाद अग्रेजों ने मराठा शासन को उखाड़ फेंका. भारत की स्वतंत्रता के लिए हुए संघर्ष में दमोह ने बराबरी से भाग लिया.
विधानसभा क्षेत्र में मतदाता: दमोह में कुल 2 लाख 40 हजार 931 मतदाता हैं जिसमें 1 लाख 24 हजार 595 पुरुष मतदाता जबकि 1 लाख 16 हजार 329 महिला मतदाता हैं जबकि 7 अन्य श्रेणी के मतदाता हैं जो प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे.
जातीय समीकरण: दमोह विधानसभा सीट के जातीय समीकरण पर गौर करें तो ये विधानसभा सीट लोधी, हरिजन और ब्राह्मण मतदाताओं के बाहुल्य वाली है. यहां पर लोधी मतदाता करीब 36 हजार और एससी मतदाता करीब 35 हजार हैं. वहीं ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 27 हजार है. इसके अलावा ठाकुर करीब 13 हजार और बाकी अन्य जातियों के मतदाता है. दमोह विधानसभा सीट में जीत लोधी, हरिजन और ब्राह्मण मतदाताओं के झुकाव के आधार पर होती है.
पिछले तीन विधानसभा चुनाव: दमोह विधानसभा की बात करें तो 2018 के पहले तक 28 साल से दमोह पर बीजेपी का कब्जा था हांलाकि हर बार चुनाव कशमकश भरा होता था, लेकिन जीत आखिरकार बीजेपी को ही हासिल होती थी. 2018 में पहली बार कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग के सहारे भाजपा के इस गढ़ को कांग्रेस की सीट में तब्दील कर दिया और युवा प्रत्याशी राहुल सिंह लोधी जयंत मलैया जैसे दिग्गज को हराकर विधायक बने, लेकिन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरते ही राहुल सिंह लोधी भाजपा के बहकावे में आ गए और इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए. 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के बीच दमोह उपचुनाव हुआ और राहुल लोधी को करारी हार का सामना करना पड़ा.
2008 विधानसभा चुनाव: 2008 विधानसभा चुनाव में दमोह में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली. बीजेपी के जयंत मलैया कांग्रेस के चंद्रभान सिंह से सिर्फ 130 वोटों से चुनाव जीत पाए. 2008 के चुनाव में दोनों प्रत्याशियों के बीच मतों का अंतर महज 0.1 फीसदी रहा. बीजेपी के जयंत मलैया को जहां 50 हजार 118 वोट मिले, तो चंद्रभान सिंह को 49 हजार 947 वोट हासिल हुए.
2013 विधानसभा चुनाव: 2013 में एक बार फिर कांग्रेस ने जयंत मलैया के मुकाबले चंद्रभान सिंह को मैदान में उतारा. ये चुनाव भी 2008 की तरह कड़ी टक्कर का था, लेकिन मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले ही मोदी लहर का माहौल पूरे देश में दिखाई देने लगा था और 2013 विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिला. कड़ी टक्कर के बीच जयंत मलैया को 72 हजार 534 मत हासिल हुए और कांग्रेस के चंद्रभान सिंह को 67 हजार 581 वोट मिले. इस तरह जयंत मलैया 4 हजार 953 वोट से जीत गए.
2018 विधानसभा चुनाव: 2018 में कांग्रेस ने एक बार फिर लोधी समाज पर भरोसा जताया और युवा नेता राहुल सिंह लोधी को टिकट दिया. जयंत मलैया को राहुल सिंह लोधी ने कड़ी टक्कर दी और जयंत मलैया को जहां 78 हजार 199 वोट मिले, तो कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी को 78 हजार 997 वोट मिले और जयंत मलैया महज 898 वोट से चुनाव हार गए.
2021 विधानसभा उपचुनाव: ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरने और भाजपा सरकार बनने के बाद राहुल सिंह लोधी पर बीजेपी ने डोरे डालना शुरू कर दिया और भाजपा के प्रलोभन में आकर राहुल सिंह लोधी ने विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा सरकार बन जाने के बाद उन्हें भरोसा था कि उपचुनाव आसानी से जीत जाएंगे लेकिन दमोह के लोगों ने राहुल सिंह लोधी को करारी शिकस्त दी और कांग्रेस ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन को 74 हजार 832 वोट मिले, तो बीजेपी प्रत्याशी राहुल सिंह लोधी को 57 हजार 735 वोट मिले और राहुल लोधी 17 हजार वोटों से हार गए.
दमोह विधानसभा सीट के मुद्दे: दमोह विधानसभा सीट में सबसे बडा मुद्दा मेडिकल काॅलेज की स्थापना है जो पिछले कई सालों से मांग चली आ रही है. शिवराज सरकार कभी घोषणाएं कर, तो कभी आदेश निकालकर दमोह के मतदाताओं को भरमाती रहती है लेकिन अभी तक मेडिकल काॅलेज की मांग पूरी नहीं हो सकी है. इसके अलावा बेरोजगारी और भ्रष्टाचार सबसे बडा मुद्दा है. दमोह विधानसभा सीट में अपराध भी एक बड़ा मुद्दा है और पुलिस अपराध नियंत्रण में नाकाम रही है.
दमोह विधानसभा के दावेदार: दमोह विधानसभा से भाजपा के टिकट के दावेदारों में उपचुनाव में करारी शिकस्त का सामना कर चुके राहुल सिंह लोधी दावेदार है, तो दूसरी तरफ जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया भी अहम दावेदार है. इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से मौजूदा विधायक अजय टंडन और जिला शहर अध्यक्ष मनु मिश्रा बडे़ दावेदार हैं.