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यहां होती थी भगवान कुबेर की पूजा, पुरातत्व संग्रहालय में हैं कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं

दमोह में धनतेरस के अवसर पर भगवान कुबेर को पूजने वालों की संख्या आज भी दमोह में कम नहीं है. लेकिन भगवान कुबेर का वर्तमान में दमोह में कोई मंदिर भी नहीं है. लेकिन दमोह के टूटे मंदिरों के भग्नावशेष से कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं आज भी पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित हैं.

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Published : Oct 26, 2019, 4:33 AM IST

धनकुबेर की पूजा

दमोह। धनतेरस के अवसर पर भगवान कुबेर को पूजने वालों की संख्या आज भी दमोह में कम नहीं है. लेकिन भगवान कुबेर का वर्तमान में दमोह में कोई मंदिर भी नहीं है. यदि हम इतिहास की बात करें तो दमोह के टूटे मंदिरों के भग्नावशेष से कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं प्राप्त हुई है. जो आज भी दमोह के पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित हैं.

दमोह जिला मुख्यालय पर स्थित रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय में भगवान कुबेर की 4 प्रतिमाएं रखी गई हैं. यह प्रतिमाएं दमोह जिले के अलग-अलग स्थानों से मंदिरों के भग्नावशेष से प्राप्त हुई हैं. पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक बताते हैं कि भगवान कुबेर की प्रतिमाएं मंदिर के उत्तरी भाग में स्थापित होती थीं.

यहां पूजे गए धन के देवता कुबेर

दिगपाल के रूप में भगवान कुबेर को स्थापित किए जाने की परंपरा इतिहास में मिलती है. यही कारण है कि दमोह के अलग-अलग स्थानों से कुबेर भगवान की यह प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं. जिन्हें धनतेरस के अवसर पर लोग कुबेर के रूप में पूजते हैं.

दमोह के मंदिरों से मिली यह प्रतिमाएं भगवान कुबेर के धन वाले स्वरूप को प्रदर्शित करती हैं. जिसमें भगवान कुबेर धन की पोटली लिए हुए हैं. इन प्रतिमाओं के मिलने से यह सिद्ध होता है कि कालांतर में जिले में भगवान कुबेर को मानने वालों की संख्या में भी काफी इजाफा था और मंदिरों के निर्माण के साथ भगवान कुबेर को स्थापित किया गया था.

वर्तमान में ऐसा कोई मंदिर तो दमोह में नहीं है. लेकिन पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित भगवान कुबेर की प्रतिमाएं यह जरूर साबित करती है कि दमोह की पुरातत्व संपदा संपन्न रही है.

दमोह। धनतेरस के अवसर पर भगवान कुबेर को पूजने वालों की संख्या आज भी दमोह में कम नहीं है. लेकिन भगवान कुबेर का वर्तमान में दमोह में कोई मंदिर भी नहीं है. यदि हम इतिहास की बात करें तो दमोह के टूटे मंदिरों के भग्नावशेष से कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं प्राप्त हुई है. जो आज भी दमोह के पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित हैं.

दमोह जिला मुख्यालय पर स्थित रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय में भगवान कुबेर की 4 प्रतिमाएं रखी गई हैं. यह प्रतिमाएं दमोह जिले के अलग-अलग स्थानों से मंदिरों के भग्नावशेष से प्राप्त हुई हैं. पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक बताते हैं कि भगवान कुबेर की प्रतिमाएं मंदिर के उत्तरी भाग में स्थापित होती थीं.

यहां पूजे गए धन के देवता कुबेर

दिगपाल के रूप में भगवान कुबेर को स्थापित किए जाने की परंपरा इतिहास में मिलती है. यही कारण है कि दमोह के अलग-अलग स्थानों से कुबेर भगवान की यह प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं. जिन्हें धनतेरस के अवसर पर लोग कुबेर के रूप में पूजते हैं.

दमोह के मंदिरों से मिली यह प्रतिमाएं भगवान कुबेर के धन वाले स्वरूप को प्रदर्शित करती हैं. जिसमें भगवान कुबेर धन की पोटली लिए हुए हैं. इन प्रतिमाओं के मिलने से यह सिद्ध होता है कि कालांतर में जिले में भगवान कुबेर को मानने वालों की संख्या में भी काफी इजाफा था और मंदिरों के निर्माण के साथ भगवान कुबेर को स्थापित किया गया था.

वर्तमान में ऐसा कोई मंदिर तो दमोह में नहीं है. लेकिन पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित भगवान कुबेर की प्रतिमाएं यह जरूर साबित करती है कि दमोह की पुरातत्व संपदा संपन्न रही है.

Intro:धन के देवता के रूप में पूजे जाते हैं भगवान कुबेर

दमोह के पुरातत्व संग्रहालय में है कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं

जिले के अनेक मंदिरों के हिस्सों से प्राप्त हुई है भगवान कुबेर की प्रतिमाएं

भगवान कुबेर के मानने वालों का रहा है एक वक्त बोलबाला

Anchor. धनतेरस के अवसर पर भगवान कुबेर को पूजने वालों की संख्या आज भी दमोह में कम नहीं है. लेकिन भगवान कुबेर का वर्तमान में दमोह में कोई मंदिर भी नहीं है. यदि हम इतिहास की बात करें तो दमोह के टूटे मंदिरों के भग्नावशेष से कुबेर भगवान की अनेक प्रतिमाएं प्राप्त हुई है. जो आज भी दमोह के पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित हैं.


Body:Vo. दमोह जिला मुख्यालय पर स्थित रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय में भगवान कुबेर की 4 प्रतिमाएं प्रदर्शन के लिए रखी गई है. यह प्रतिमाएं दमोह जिले के अलग-अलग स्थानों से मंदिरों के भग्नावशेष से प्राप्त हुई है. पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक बताते हैं कि भगवान कुबेर की प्रतिमाएं मंदिर के उत्तरी भाग में स्थापित होती थी. दिगपाल के रूप में भगवान कुबेर को स्थापित किए जाने की परंपरा इतिहास में मिलती है. यही कारण है कि दमोह के अलग-अलग स्थानों से कुबेर भगवान की यह प्रतिमाएं प्राप्त हुई है. जिन्हें धनतेरस के अवसर पर लोग कुबेर के रूप में पूजते हैं. दमोह के मंदिरों से मिली यह प्रतिमाएं भगवान कुबेर के धन वाले स्वरूप को प्रदर्शित करती हैं. जिसमें भगवान कुबेर धन की पोटली लिए हुए हैं. इन प्रतिमाओं के मिलने से यह सिद्ध होता है कि कालांतर में जिले में भगवान कुबेर को मानने वालों की संख्या में भी काफी इजाफा था और मंदिरों के निर्माण के साथ भगवान कुबेर को स्थापित किया गया था. वर्तमान में ऐसा कोई मंदिर तो दमोह में नहीं है. लेकिन पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित भगवान कुबेर की प्रतिमाएं यह जरूर साबित करती है कि दमोह की पुरातत्व संपदा संपन्न रही है.

बाइट - सुरेंद्र चौरसिया पुरातत्व के जानकार दमोह


Conclusion:Vo. दीपावली के अवसर पर जहां मां महालक्ष्मी की पूजा होती है. वही धनतेरस के अवसर पर धन्वंतरी भगवान के साथ भगवान कुबेर को भी पूजा जाता है. लेकिन दमोह के ऐतिहासिक स्मारकों में भग्नावशेष के रूप में भगवान कुबेर की प्रतिमाएं मिलती जरूर है. लेकिन दमोह में वर्तमान में उनका कोई मंदिर नहीं है. ऐसे हालात में कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थिति के विपरीत पुरातन काल मैं दमोह का क्षेत्र काफी समृद्ध रहा है.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत दमोह
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