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रानी दुर्गावती के साथ ही खत्म हो गया उनका वंश

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Published : Mar 1, 2021, 10:30 PM IST

अपने वैभवशाली इतिहास के लिए अलग पहचान रखने वाला गौंड साम्राज्य रानी दुर्गावती के बलिदान के साथ ही मुगलों के अधीन हो गया. गौंड साम्राज्ञी दुर्गावती का जीवन जितना वैभवशाली और संघर्षशील था, उतना ही गहरा विवाद उनके जन्म को लेकर भी है. देखें ये रिपोर्ट...

Singaurgarh Fort
सिंगौरगढ़ किला

दमोह। अपने वैभवशाली इतिहास के लिए अलग पहचान रखने वाला गौंड साम्राज्य रानी दुर्गावती के बलिदान के साथ ही मुगलों के अधीन हो गया. गौंड साम्राज्य के दौरान कभी सोने की चिड़िया रहा यह चित्र आसिफ खान ने अपने कब्जे में ले लिया. उस समय प्रतिवर्ष आसिफ खान को इस क्षेत्र से 13 लाख 55 हजार रुपए की लगानी आमदनी होती थी.

रानी दुर्गावती के साथ ही खत्म हो गया उनका वंश

तालाब जो पारस मणि बन गया

पहाड़ी के नीचे ही एक विशालकाय तालाब है. वर्तमान में यह तालाब सिमटकर करीब 80 एकड़ जमीन में रह गया है, लेकिन लोग बताते हैं कि कई वर्षों पूर्व तक यह दोगुने से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ था. किवदंती है कि जब आसफ खान से युद्ध करते हुए रानी को महल छोड़ना पड़ा था, तब वह अपने पास मौजूद पारस मणि इसी तालाब में फेंक गई थी. इसलिए इस तालाब का नाम पारस मणि पड़ गया. माना जाता है कि अकबर ने कई वर्षों तक तालाब में मणि की खोज कराई, लेकिन उसे प्राप्त नहीं हो सकी. कहते हैं कि जब हाथी की सूंड में चैन बांधकर अकबर ने पारस मणि की खोज कराई थी, तब वह मणि कहीं जंजीर में टच हो गई होगी. जिससे वह जंजीर सोने की बन गई. काफी खोज के बाद भी पारस मणि नहीं मिली.

कई राजाओं का वैभव और पतन देखा

अलेक्जेंडर कनिंघम अपने मेंमायर में लिखते हैं कि सिंगौरगढ़ का किला सातवीं शताब्दी में प्रतिहार राजाओं ने बनवाया था. उसके पश्चात 10 वीं- 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजाओं ने प्रतिहार राजाओं को परास्त कर अपना कब्जा कर लिया. कलचुरी राजाओं से यह किला चंदेलों एवं चंदेलों के बाद करीब 14वीं सदी में गौंड शासकों के पास आ गया. 1564 के बाद उस पर मुगलों ने अपना अधिकार कर लिया.

इतिहास के पन्नों में अपना अस्तित्व ढूंढता सिंगौरगढ़ का किला !

रानी के जन्म पर विवाद

गौंड साम्राज्ञी दुर्गावती का जीवन जितना वैभवशाली और संघर्षशील था, उतना ही गहरा विवाद उनके जन्म को लेकर भी है. ब्रिटिश गजेटियर के हिंदी अनुवादक शंभू दयाल गुरु रानी दुर्गावती को महोबा के शासक शालिवाहन की पुत्री लिखते हैं. वही अलेक्जेंडर कनिंघम ने रानी का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के कालिंजर में चंदेल वंश में होना बताया है. स्थानीय लोकोक्तियों में भी रानी को चंदेल घराने का बताया गया है.

7 मार्च को आएंगे महामहिम

सिंगौरगढ़ किले के संरक्षण की मांग उठाने वाले और उसके लिए लंबे समय से प्रयत्नशील भाजपा नेता रूपेश सेन कहते हैं कि कई वर्षों के प्रयास के बाद अब जाकर के किले के भाग्य खुले हैं. केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने केंद्र सरकार से यहां पर 30 करोड़ रुपए स्वीकृत कराए हैं. इस राशि से किले का जीर्णोद्वार, विश्राम गृह का निर्माण तथा पर्यटन संबंधी अन्य कार्य होंगे. जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे तथा यह क्षेत्र भारत के नक्शे में अलग पहचान बनाएगा. आगामी 7 मार्च को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां आएंगे तथा विकास कार्यों की नीव रखेंगे.

दलपत शाह की समाधि

महाराजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद उनकी समाधि कहां बनाई गई इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं. लेकिन सिंग्रामपुर में एक बरगद वृक्ष के नीचे बराबराह स्थान है. जिसमें एक बीजक लगा हुआ है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यही वह स्थान है जहां पर दलपत शाह की समाधि बनाई गई थी. जबलपुर रोड पर स्थित रोड के ठीक नीचे यह स्थान निर्मित है. हालांकि एएसआई ने ग्रामीणों के दावों का खंडन या समर्थन नहीं किया है. यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि उनकी कई पीढ़ियों पहले भी लोग उसी स्थान को दलपत शाह की समाधि के रूप में देखते आ रहे हैं. यदि खुदाई की जाएगी तो निश्चित रूप से वहां पर कुछ न कुछ प्रमाण मिल सकते हैं.

वीर नारायण की मृत्यु

महारानी दुर्गावती मृत्यु के समय उनके पुत्र वीरनारायण अल्पायु थे. अपने जीते जी रानी ने वीरनारायण को शत्रुओं के हाथों में नहीं पड़ने दिया और उन्हें सुरक्षित नरसिंहपुर जिले के चौरागढ़ किले में सुरक्षित भेज दिया। वहीं पर युवराज वीर नारायण का तिलक किया गया. लेकिन वीरनारायण अधिक समय तक शासन नहीं कर सके. आसफ खान है वहां पर ही हमला कर दिया और वीर नारायण शत्रु से लड़के हुए वीरगति को प्राप्त हो गए.

दमोह। अपने वैभवशाली इतिहास के लिए अलग पहचान रखने वाला गौंड साम्राज्य रानी दुर्गावती के बलिदान के साथ ही मुगलों के अधीन हो गया. गौंड साम्राज्य के दौरान कभी सोने की चिड़िया रहा यह चित्र आसिफ खान ने अपने कब्जे में ले लिया. उस समय प्रतिवर्ष आसिफ खान को इस क्षेत्र से 13 लाख 55 हजार रुपए की लगानी आमदनी होती थी.

रानी दुर्गावती के साथ ही खत्म हो गया उनका वंश

तालाब जो पारस मणि बन गया

पहाड़ी के नीचे ही एक विशालकाय तालाब है. वर्तमान में यह तालाब सिमटकर करीब 80 एकड़ जमीन में रह गया है, लेकिन लोग बताते हैं कि कई वर्षों पूर्व तक यह दोगुने से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ था. किवदंती है कि जब आसफ खान से युद्ध करते हुए रानी को महल छोड़ना पड़ा था, तब वह अपने पास मौजूद पारस मणि इसी तालाब में फेंक गई थी. इसलिए इस तालाब का नाम पारस मणि पड़ गया. माना जाता है कि अकबर ने कई वर्षों तक तालाब में मणि की खोज कराई, लेकिन उसे प्राप्त नहीं हो सकी. कहते हैं कि जब हाथी की सूंड में चैन बांधकर अकबर ने पारस मणि की खोज कराई थी, तब वह मणि कहीं जंजीर में टच हो गई होगी. जिससे वह जंजीर सोने की बन गई. काफी खोज के बाद भी पारस मणि नहीं मिली.

कई राजाओं का वैभव और पतन देखा

अलेक्जेंडर कनिंघम अपने मेंमायर में लिखते हैं कि सिंगौरगढ़ का किला सातवीं शताब्दी में प्रतिहार राजाओं ने बनवाया था. उसके पश्चात 10 वीं- 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजाओं ने प्रतिहार राजाओं को परास्त कर अपना कब्जा कर लिया. कलचुरी राजाओं से यह किला चंदेलों एवं चंदेलों के बाद करीब 14वीं सदी में गौंड शासकों के पास आ गया. 1564 के बाद उस पर मुगलों ने अपना अधिकार कर लिया.

इतिहास के पन्नों में अपना अस्तित्व ढूंढता सिंगौरगढ़ का किला !

रानी के जन्म पर विवाद

गौंड साम्राज्ञी दुर्गावती का जीवन जितना वैभवशाली और संघर्षशील था, उतना ही गहरा विवाद उनके जन्म को लेकर भी है. ब्रिटिश गजेटियर के हिंदी अनुवादक शंभू दयाल गुरु रानी दुर्गावती को महोबा के शासक शालिवाहन की पुत्री लिखते हैं. वही अलेक्जेंडर कनिंघम ने रानी का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के कालिंजर में चंदेल वंश में होना बताया है. स्थानीय लोकोक्तियों में भी रानी को चंदेल घराने का बताया गया है.

7 मार्च को आएंगे महामहिम

सिंगौरगढ़ किले के संरक्षण की मांग उठाने वाले और उसके लिए लंबे समय से प्रयत्नशील भाजपा नेता रूपेश सेन कहते हैं कि कई वर्षों के प्रयास के बाद अब जाकर के किले के भाग्य खुले हैं. केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने केंद्र सरकार से यहां पर 30 करोड़ रुपए स्वीकृत कराए हैं. इस राशि से किले का जीर्णोद्वार, विश्राम गृह का निर्माण तथा पर्यटन संबंधी अन्य कार्य होंगे. जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होंगे तथा यह क्षेत्र भारत के नक्शे में अलग पहचान बनाएगा. आगामी 7 मार्च को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां आएंगे तथा विकास कार्यों की नीव रखेंगे.

दलपत शाह की समाधि

महाराजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद उनकी समाधि कहां बनाई गई इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं. लेकिन सिंग्रामपुर में एक बरगद वृक्ष के नीचे बराबराह स्थान है. जिसमें एक बीजक लगा हुआ है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यही वह स्थान है जहां पर दलपत शाह की समाधि बनाई गई थी. जबलपुर रोड पर स्थित रोड के ठीक नीचे यह स्थान निर्मित है. हालांकि एएसआई ने ग्रामीणों के दावों का खंडन या समर्थन नहीं किया है. यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि उनकी कई पीढ़ियों पहले भी लोग उसी स्थान को दलपत शाह की समाधि के रूप में देखते आ रहे हैं. यदि खुदाई की जाएगी तो निश्चित रूप से वहां पर कुछ न कुछ प्रमाण मिल सकते हैं.

वीर नारायण की मृत्यु

महारानी दुर्गावती मृत्यु के समय उनके पुत्र वीरनारायण अल्पायु थे. अपने जीते जी रानी ने वीरनारायण को शत्रुओं के हाथों में नहीं पड़ने दिया और उन्हें सुरक्षित नरसिंहपुर जिले के चौरागढ़ किले में सुरक्षित भेज दिया। वहीं पर युवराज वीर नारायण का तिलक किया गया. लेकिन वीरनारायण अधिक समय तक शासन नहीं कर सके. आसफ खान है वहां पर ही हमला कर दिया और वीर नारायण शत्रु से लड़के हुए वीरगति को प्राप्त हो गए.

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