दमोह। राम मंदिर निर्माण भूमिपूजन की शुभ घड़ी में शामिल होने वाली दमोह की इतिहासकार डॉ. सुधा मलैया अपने शहर लौट आई हैं. इतिहासकार और बीजेपी की पूर्व महासचिव डॉ. सुधा मलैया ने दमोह लौटकर 5 अगस्त को हुए राम मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम में शामिल होने के अनुभव साझा किए. डॉ. सुधा ने 1992 में दो बार अयोध्य जाने के अनुभव भी शेयर किए. अयोध्या से लौटने के बाद उन्होंने कहा, जन्म भूमि के काम में राम की कृपा से शामिल होना उनका सौभाग्य है.
सपना हुआ साकार
रामकाज में लगे अधिकांश पुराविज्ञानी दिवंगत हो चुके हैं, लेकिन 40 सदस्यीय टीम में शामिल मध्यप्रदेश के दमोह की पुरातत्वविद डॉ. सुधा मलैया उत्साहित हैं, कि जिसका इंतजार उन्हें वर्षों से था वो खुद उस पल की साक्षी बनीं और रामलला के मंदिर का भूमिपूजन प्रत्यक्ष रूप से देख पाईं.
मलैया का खोजा प्रमाण बना दस्तावेज
छह दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिरा तो डॉ. सुधा मलैया ने कई शिलालेखों के फोटो खींचे थे. उन्होंने 12वीं सदी के विष्णु हरि अभिलेख (लगभग पांच फीट लंबे व दो फीट चौड़े बलुआ पत्थर पर अंकित पंक्तियां) को कैमरे में कैद किया था. संस्कृत भाषा में लिखा यह स्तंभ 11वीं शताब्दी में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त लगा था. उसको अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन अंकित अक्षर पढ़ने में न आने के कारण वह वर्ष 1996 में न्यायालय के आदेश पर दोबारा रामनगरी आई थीं. डॉ. सुधा मलैया ने बताया कि 18 जून 1992 में विवादित स्थान के समतलीकरण के दौरान 40 अवशेष मिले थे.
राम जन्मभूमि में सुधा मलैया बतौर इतिहासकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी हैं. डॉ. सुधा मलैया ने अयोध्या में हुए आंदोलन के पूर्व की लड़ाईओं के विषय में भी विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि के लिए भगवान राम की कृपा से उनको जो करने का मौका मिला, उसके लिए वे अपने आप को सौभाग्यशाली मानती हैं.डॉ. मलैया ने राम जन्म भूमि के लिए अभी तक हुए संघर्ष की कहानी बताई.
पूर्व वित्त मंत्री की धर्मपत्नी
मध्य प्रदेश शासन के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया की धर्मपत्नी सुधा मलैया बाबरी विध्वंस के दौरान भगवान राम के मंदिर के अवशेष निकलने के समय एक इतिहासकार के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी. विश्व हिंदू परिषद के कहने पर वे वहां पर गई थीं और उन्होंने वहां पर फोटोग्राफी की थी, जिसके आधार पर यह बात सामने आई थी. जो शिलालेख उस दौरान मिले थे. वे भगवान श्री राम के मंदिर के ही शिलालेख थे.