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Damoh Jayant Vs Ajay Again: दमोह में इतिहास फिर से दोहराए जाने के लिए तैयार, तीसरी बार अजय-जयंत होंगे मैदान में, जानें कौन किस पर भारी

दमोह विधानसभा से बीजेपी ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. बीजेपी ने जयंत मलैया को टिकट दिया है. अब यहां ऐतिहासिक मुकाबला होने जा रहा है. ऐसा तीसरी बार होगा, जब जयंत और अजय आमने सामने होंगे. आइए जानते हैं, पूरा ऐतिहासिक गणित...

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जयंत और अजय के बीच दमोह में मुकाबला
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 21, 2023, 10:54 PM IST

दमोह। जिले भाजपा ने अपनी शेष बचे तीन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है. अब चुनावी स्थिति बिल्कुल साफ हो गई है. टिकट घोषित होने के बाद भाजपा ने आभार जुलूस निकाला. कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता जरूर है. इस बात को कोई माने या न माने लेकिन दमोह की राजनीति में यह बात 100 फीसदी सटीक बैठती है. यहां पर एक बार इतिहास फिर से दोहराए जाने के लिए तैयार है.

दमोह के इन दो नेताओं का राजनीतिक इतिहास: दरअसल, देर से ही सही लेकिन भाजपा ने आज दमोह जिले की शेष तीन सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. जबेरा विधायक धर्मेंद्र लोधी पर पार्टी ने दूसरी बार भरोसा जताया है. हालांकि, इस घोषणा ने लोगों को चौंकाया जरूर है. यह तय माना जा रहा था कि हाल ही में वापस भाजपा में शामिल हुए ऋषि राज लोधी या पूर्व मंत्री दशरथ सिंह लोधी में से किसी एक को टिकट मिलेगा. ऋषि लोधी की वापसी भी संभवत: इसी शर्त पर हुई थी. लेकिन पार्टी ने सारे अनुमान को बदलते हुए प्रहलाद पटेल के कोटे से एक बार फिर धर्मेंद्र लोधी पर दांव चला है. तो दूसरी ओर हटा विधायक पीएल तंतुवाय का रिपोर्ट कार्ड खराब होने के कारण उनका टिकट काट दिया गया.

उनके स्थान पर एक बार फिर से पूर्व विधायक उमा देवी खटीक को अपना उम्मीदवार बनाया है. लेकिन इससे इतर दमोह विधानसभा में कयास और अनुमानों के अनुसार पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया को ही पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया है. यह बात अलग है कि अंत समय तक जयंत मलैया इस प्रयास में लगे रहे कि उनकी जगह उनके बेटे को टिकट दिया जाए. आपको बताते चलें कि दमोह विधानसभा से अजय टंडन चौथी बार कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए हैं. जयंत मलैया और अजय टंडन का सीधा सामना पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार होने जा रहा है. दोनों ही नेता आपस में बहुत अच्छे मित्र भी हैं. इसलिए यदा कदा उन दोनों पर ही यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने पार्टी की गाइडलाइन से हटकर काम किया है और एक दूसरे का सपोर्ट किया है.

1993 में कांग्रेस ने पहली बार अजय टंडन को अपना प्रत्याशी बनाया था. जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा की अजेय नेता जयंत मलैया थे. पहले चुनाव में अजय टंडन को हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी ने 2003 में एक बार फिर अजय टंडन को मौका दिया लेकिन इस बार भी अजय टंडन करीब 12000 मतों से चुनाव हार गए थे.

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इन दोनों ही चुनाव में अजय टंडन का अनुभव ठीक नहीं रहा लेकिन दोनों नेताओं की मित्रता में जरा भी अंतर नहीं आया. इसके बाद जब चंद्रभान सिंह और राहुल सिंह को टिकट मिला तो अजय टंडन पर यह आरोप लगे थे कि उन्होंने भीतर घात करके जयंत मलैया का समर्थन किया है. वहीं 2021 के उपचुनाव में जब जयंत मलैया का टिकट काटकर राहुल लोधी को टिकट दिया गया था, तब जयंत मलैया पर राहुल लोधी ने खुलेआम यह आरोप लगाए थे कि उन्होंने भीतरघात किया है और कांग्रेस को जितवाया है. अब यह तीसरा मौका है जब दोनों नेता आमने सामने आ गए हैं.


मुकाबला कांटे का: दोनों प्रत्याशियों के बीच अब कांटे का मुकाबला है, लेकिन दोनों प्रत्याशियों को किस से खतरा है, और क्या उनकी कमजोरी है. यह भी जान लेना जरूरी है. पहले हम बात जयंत मलैया की करते हैं. जयंत मलैया अभी तक सर्वहारा वर्ग के वोट से जीतते रहे हैं. लेकिन उन पर हमेशा यही ठप्पा लगता रहा है कि जैन वोट उन्हें एक तरफा मिलते हैं. अब जैन वोट की बात की जाए तो दमोह में करीब 16 हज़ार मतदाता है. जबकि करीब 42 हज़ार दलित, 35 हज़ार लोधी, 30 हज़ार ब्राह्मण, 28 से 30 हज़ार पटेल तथा करीब 18 हज़ार मुस्लिम वोटर हैं.

इस बार लोधी वोटर जयंत मलैया से छिटक सकता है. इसका एक कारण प्रहलाद पटेल और राहुल लोधी की नाराजगी भी है. दूसरी तरफ अजय टंडन की बात करें तो उनके लिए टिकट के प्रबल दावेदार रहे मनु मिश्रा से अधिक खतरा है. क्योंकि मनु मिश्रा की कुछ प्रतिशत तक मुस्लिम दलित और ब्राह्मण वोट पर पकड़ है. ऐसे में अंदरूनी तौर पर वह अजय टंडन को नुकसान पहुंचा सकते हैं. दूसरा यह की इस बार अजय टंडन को जैन और व्यापारियों का वोट बहुत काम मिलेगा.

इस मौके पर भाजपा ने एक आभार जुलूस निकालकर पार्टी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया. टिकट मिलने के बाद मीडिया से बात करते हुए भाजपा प्रत्याशी जयंत मलैया ने कहा कि वह पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. दशकों से चुनाव लड़ते आ रहे हैं. इसलिए इसमें नया कुछ भी नहीं है. अजय टंडन का और उनका पहले भी दो बार सामना हो चुका है. भाजपा के लिए कोई मुद्दे नहीं है, क्योंकि भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है. भाजपा की अच्छे बहुमत से सरकार बनेगी. रणनीति नेता तय नहीं करते यह गलतफहमी है. रणनीति जनता तय करती है. नेता चुने जाते हैं.

दमोह। जिले भाजपा ने अपनी शेष बचे तीन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है. अब चुनावी स्थिति बिल्कुल साफ हो गई है. टिकट घोषित होने के बाद भाजपा ने आभार जुलूस निकाला. कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता जरूर है. इस बात को कोई माने या न माने लेकिन दमोह की राजनीति में यह बात 100 फीसदी सटीक बैठती है. यहां पर एक बार इतिहास फिर से दोहराए जाने के लिए तैयार है.

दमोह के इन दो नेताओं का राजनीतिक इतिहास: दरअसल, देर से ही सही लेकिन भाजपा ने आज दमोह जिले की शेष तीन सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है. जबेरा विधायक धर्मेंद्र लोधी पर पार्टी ने दूसरी बार भरोसा जताया है. हालांकि, इस घोषणा ने लोगों को चौंकाया जरूर है. यह तय माना जा रहा था कि हाल ही में वापस भाजपा में शामिल हुए ऋषि राज लोधी या पूर्व मंत्री दशरथ सिंह लोधी में से किसी एक को टिकट मिलेगा. ऋषि लोधी की वापसी भी संभवत: इसी शर्त पर हुई थी. लेकिन पार्टी ने सारे अनुमान को बदलते हुए प्रहलाद पटेल के कोटे से एक बार फिर धर्मेंद्र लोधी पर दांव चला है. तो दूसरी ओर हटा विधायक पीएल तंतुवाय का रिपोर्ट कार्ड खराब होने के कारण उनका टिकट काट दिया गया.

उनके स्थान पर एक बार फिर से पूर्व विधायक उमा देवी खटीक को अपना उम्मीदवार बनाया है. लेकिन इससे इतर दमोह विधानसभा में कयास और अनुमानों के अनुसार पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया को ही पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया है. यह बात अलग है कि अंत समय तक जयंत मलैया इस प्रयास में लगे रहे कि उनकी जगह उनके बेटे को टिकट दिया जाए. आपको बताते चलें कि दमोह विधानसभा से अजय टंडन चौथी बार कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए हैं. जयंत मलैया और अजय टंडन का सीधा सामना पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार होने जा रहा है. दोनों ही नेता आपस में बहुत अच्छे मित्र भी हैं. इसलिए यदा कदा उन दोनों पर ही यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने पार्टी की गाइडलाइन से हटकर काम किया है और एक दूसरे का सपोर्ट किया है.

1993 में कांग्रेस ने पहली बार अजय टंडन को अपना प्रत्याशी बनाया था. जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा की अजेय नेता जयंत मलैया थे. पहले चुनाव में अजय टंडन को हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी ने 2003 में एक बार फिर अजय टंडन को मौका दिया लेकिन इस बार भी अजय टंडन करीब 12000 मतों से चुनाव हार गए थे.

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इन दोनों ही चुनाव में अजय टंडन का अनुभव ठीक नहीं रहा लेकिन दोनों नेताओं की मित्रता में जरा भी अंतर नहीं आया. इसके बाद जब चंद्रभान सिंह और राहुल सिंह को टिकट मिला तो अजय टंडन पर यह आरोप लगे थे कि उन्होंने भीतर घात करके जयंत मलैया का समर्थन किया है. वहीं 2021 के उपचुनाव में जब जयंत मलैया का टिकट काटकर राहुल लोधी को टिकट दिया गया था, तब जयंत मलैया पर राहुल लोधी ने खुलेआम यह आरोप लगाए थे कि उन्होंने भीतरघात किया है और कांग्रेस को जितवाया है. अब यह तीसरा मौका है जब दोनों नेता आमने सामने आ गए हैं.


मुकाबला कांटे का: दोनों प्रत्याशियों के बीच अब कांटे का मुकाबला है, लेकिन दोनों प्रत्याशियों को किस से खतरा है, और क्या उनकी कमजोरी है. यह भी जान लेना जरूरी है. पहले हम बात जयंत मलैया की करते हैं. जयंत मलैया अभी तक सर्वहारा वर्ग के वोट से जीतते रहे हैं. लेकिन उन पर हमेशा यही ठप्पा लगता रहा है कि जैन वोट उन्हें एक तरफा मिलते हैं. अब जैन वोट की बात की जाए तो दमोह में करीब 16 हज़ार मतदाता है. जबकि करीब 42 हज़ार दलित, 35 हज़ार लोधी, 30 हज़ार ब्राह्मण, 28 से 30 हज़ार पटेल तथा करीब 18 हज़ार मुस्लिम वोटर हैं.

इस बार लोधी वोटर जयंत मलैया से छिटक सकता है. इसका एक कारण प्रहलाद पटेल और राहुल लोधी की नाराजगी भी है. दूसरी तरफ अजय टंडन की बात करें तो उनके लिए टिकट के प्रबल दावेदार रहे मनु मिश्रा से अधिक खतरा है. क्योंकि मनु मिश्रा की कुछ प्रतिशत तक मुस्लिम दलित और ब्राह्मण वोट पर पकड़ है. ऐसे में अंदरूनी तौर पर वह अजय टंडन को नुकसान पहुंचा सकते हैं. दूसरा यह की इस बार अजय टंडन को जैन और व्यापारियों का वोट बहुत काम मिलेगा.

इस मौके पर भाजपा ने एक आभार जुलूस निकालकर पार्टी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया. टिकट मिलने के बाद मीडिया से बात करते हुए भाजपा प्रत्याशी जयंत मलैया ने कहा कि वह पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. दशकों से चुनाव लड़ते आ रहे हैं. इसलिए इसमें नया कुछ भी नहीं है. अजय टंडन का और उनका पहले भी दो बार सामना हो चुका है. भाजपा के लिए कोई मुद्दे नहीं है, क्योंकि भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है. भाजपा की अच्छे बहुमत से सरकार बनेगी. रणनीति नेता तय नहीं करते यह गलतफहमी है. रणनीति जनता तय करती है. नेता चुने जाते हैं.

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