दमोह। प्रदेश में चुनावी बिसात बिछना शुरू हो गई है. ऐसे में हम दमोह के रोचक इतिहास के बारे में बता रहे हैं. यहां से फिलहाल भाजपा से अभी प्रत्याशी तय नहीं हो पाए हैं. कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी घोषित करके भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. कांग्रेस हाईकमान इस बार टिकट वितरण को लेकर बहुत ही सावधानी बरत रहा है. दमोह जिले में तीन सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा पहले ही हो चुकी है. अब चौथे प्रत्याशी की घोषणा के साथ ही यह तय हो गया है कि कौन उम्मीदवार मैदान में रहेगा.
कांग्रेस ने इस बार अपना दावा एक बार फिर से अजय टंडन पर लगाया है. अभी वर्तमान विधायक हैं. वहीं, भाजपा अभी भी कश्मकश के दोराहे पर खड़ी है. पथरिया के अलावा भाजपा शेष तीन प्रत्याशी अभी तक तय नहीं कर पाई है. यह माना जा रहा है कि लगभग जयंत मलैया ही दमोह से उम्मीदवार हो सकते हैं. हालांकि, मलैया इस प्रयास में है कि उनकी जगह उनके बेटे सिद्धार्थ को उम्मीदवार बनाया जाए. शायद, यही वजह है कि पार्टी अभी फैसला नहीं कर पा रही है. कई स्थानों पर देखें तो पार्टी ने इस चीज को साफ किया है कि परिवारवाद नहीं चलेगा. मसलन कैलाश विजयवर्गीय, सुमित्रा महाजन, नरेंद्र सिंह तोमर, गोपाल भार्गव, गोविंद राजपूत, सहित कई अन्य मंत्री हैं जो अपने बेटों को टिकट दिलाने में असफल साबित हुए हैं. इंदौर में तो मौजूदा विधायक आकाश विजयवर्गीय का टिकट काटकर उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय को दिया गया है. ऐसे में सिद्धार्थ के लिए टिकट पाने की राह आसान नहीं होगी.
दमोह जिले का राजनीतिक इतिहास: दमोह जिले के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो यहां के चुनाव बड़े रोचक रहे हैं. पहली बार चुनाव 1957 में दमोह विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा गया था. इसमें कांग्रेस ने हरिश्चंद्र मरोठी को अपना उम्मीदवार बनाया था. हरिश्चंद्र (14533) ने भाकपा के उम्मीदवार प्रसन्न कुमार ( 2675) को चुनाव हराया था. इसी तरह 1962 में शेर चुनाव चिन्ह से ताल ठोकने वाले निर्दलीय आनंद श्रीवास्तव ( 12881) ने कांग्रेस के हरिश्चंद्र मरोठी को (8947) चुनाव हरा दिया थां. लेकिन, 1967 में कांग्रेस प्रत्याशी प्रभु नारायण टंडन (12585) ने आनंद श्रीवास्तव (12540) को चुनाव हराकर सीट पर वापस कब्जा कर लिया. 1972 में एक बार फिर निर्दलीय आनंद श्रीवास्तव ( 27833) ने प्रभु नारायण ( 18770) को चुनाव हराकर अपना बदला ले लिया.
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1977 में कांग्रेस ने एक बार फिर प्रभु नारायण टंडन ( 18759) पर अपना दाव चला और वह विजयी हुए. उन्होंने जनता पार्टी के उम्मीदवार संतोष भारती ( 18063) को करीब 700 मतों के बहुत ही कम अंतर से शिकस्त दी. 1980 में प्रभु नारायण टंडन के छोटे भाई चंद्र नारायण टंडन को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया. इस बार अस्तित्व में आई भाजपा प्रत्याशी कृष्ण आनंद श्रीवास्तव मैदान में थी. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1985 में कांग्रेस ने मुकेश नायक (26945) पर दाव लगाया.
जबकि, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जयंत मलैया पार्टी से चुनाव लड़े. मलैया ( 26853) को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1990 में कांग्रेस ने चंद्र नारायण टंडन को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन प्रचार के दौरान ही उनका निधन हो गया, तब कांग्रेस ने अनिल टंडन (14578) को अपना उम्मीदवार घोषित किया. जबकि, भाजपा ने जयंत मलैया ( 26836) को उम्मीदवार बनाया. ऐसे में कह सकते हैं कि दमोह में 1990 में हुआ चुनाव आम और उपचुनाव दोनों था.
इस तरह जयंत मलैया भारी मतों से चुनाव जीते और पहली बार भाजपा का विधायक चुना गया. इसके बाद 1993 ( 43846), 1998 (45891), 2003( 57707), 2008 ( 50451) तथा 2013 ( 72534) तक लगातार छह बार चुनाव जीते. जबकि, उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी क्रमश: वीरेंद्र दवे 37181, अजय टंडन 40485, पुन: अजय टंडन 45386, चंद्रभान लोधी 50351, फिर चंद्रभान लोधी 67581 थे. 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस ने राहुल लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया. उन्हें इस चुनाव में 78997 मत प्राप्त हुए। जबकि जयंत मलैया को 78199 मत मिले. इस तरह भाजपा के कद्दावर नेता जयंत मलैया महज 798 मतों से चुनाव हार गए. 2021 में पुन: उपचुनाव हुआ. इसमें कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा से चुनाव लड़ने वाले राहुल सिंह को 1789 मतों से हरा दिया.
किसको क्या खतरा: कांग्रेस ने अजय टंडन को अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया है, जबकि ब्राह्मण चेहरा मनु मिश्रा भी लगातार दावेदारी जाता रहे थे. लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली. ऐसे में अजय टंडन के समक्ष कांग्रेस के अंदर से ही भीतरघात का खतरा है. असल में नगर पालिका अध्यक्ष रह चुके मनु मिश्रा पर कमीशन बाजी और भू माफिया होने का आरोप है. जबकि, कांग्रेस साफ स्वच्छ व्यक्ति को ही टिकट देना चाहती थी. ऐसे में एकमात्र उम्मीदवार अजय टंडन थे और उन्हे टिकट मिल गया. दूसरी और भाजपा की बात करें तो जयंत मलैया पर 2021 में हुए उपचुनाव में वोटो का ध्रुवीकरण करके कांग्रेस को जितवाने का आरोप है. ऐसे में यदि मलैया को टिकट मिल जाता है तो उनके साथ भी भीतरघात के अलावा लोधी वोट काटने का डर है. क्योंकि, दलित के बाद करीब 32 से 35 हज़ार की संख्या में लोधी दूसरे नंबर पर निर्णायक भूमिका में है.