दमोह। दमोह से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्थाओं और सरकार के दावे और वादों की पोल खोल कर रख दी है. कुम्हारी क्षेत्र में एक दिव्यांग आदिवासी युवक की बीमारी से मौत हो गई. परिवार इतना गरीब है कि न तो उसे अस्पताल में भर्ती कराया जा सका और न ही इलाज मिल पाया. इससे पहले इलाज न मिलने से बच्चे के पिता की भी मौत हो गई थी. गरीबी की वजह से ना तो ये परिवार अपने बच्चे का इलाज कराया पाया और ना ही उसका अंतिम संस्कार कर पाया. हिंदू रीति-रिवाजों को मानने वाले इस परिवार को पैसों के अभाव में बेटे की लाश को दफन करना पड़ा.
बीमारी का भी नहीं मिला इलाज: घटना दमोह से 43 किमी दूर आदिवासी बहुल टपरिया टोला गांव की है. यहां प्यारी बाई आदिवासी का दिव्यांग बेटा रूप सिंह 17 साल की मौत हो गई. वह तीन माह से बीमार था. मां ने बताया कि इलाज के लिए पैसा नहीं था. अंतिम संस्कार के लिए भी उनके पास पैसा नहीं था, जिसके बाद जब कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो गड्ढा खोदकर उसे दफन कर दिया गया. दिव्यांग आदिवासी की मौत के बाद प्रशासन जागा है. अब प्रशासनिक अधिकारी मदद देने के लिए मृतक के घर पहुंचे, वादा किया है कि बहुत जल्द महिला को आर्थिक सहायता मिल जाएगी.
अंतिम संस्कार के लिए नहीं थे परिवार के पास पैसे: मृतक की मां ने बताया कि उनके तीन बेटों में से एक रूप सिंह था. वह बीमार था और उसकी मौत हो गई. दो अन्य बेटे भी कुपोषित और बीमार हैं. पीड़िता ने कहा कि अगर वह किसी तरह से अंतिम संस्कार कर भी देते तो उन्हें समाज के लोगों को भोजन कराना पड़ता. यहां तो खुद को खाने के लाले पड़े हैं समाज को भोजन कैसे कराते? पीड़ित मां ने बताया कि प्रशासनिक अधिकारी देर रात घर आए थे, और 1 लाख देने की बात कह कर गए हैं. लेकिन वो अधिकारियों को नहीं पहचानती और ना ही नाम मालूम है.
सरकार और प्रशासन से नहीं मिली मदद: रेड क्रॉस सोसायटी ने भी 10 हजार देने की पेशकश की है लेकिन रुपया मृतक की मां के खाते में पहुंचने में थोड़ा वक्त लगेगा. कुछ अन्य सामाजिक संस्थाओं ने भी इस मामले में पहल की है, लेकिन अभी तक मृतका की मां के हाथ खाली हैं, उम्मीद की जा रही है कि जल्द परिवार को मदद मिलेगी. मृतक की मां का कहना है कि उनके तीनों बेटों में से किसी की भी सामाजिक सुरक्षा या दिव्यांग पेंशन नहीं आती है. स्वयं उसका नाम भी इस सामाजिक सुरक्षा पेंशन में जुड़ा है, लेकिन बैंक वालों का कहना है कि तुम्हारा आधार लिंक नहीं है और खाते में पैसे भी नहीं आए तो हम तुम्हें कैसे देंगे. पंचायत में अपनी बात रखी है और उन्होने काम जल्द कराने की कोशिश शुरु करने की बात कही है.
महिला के आरोपों पर क्या है प्रशासन का पक्ष: पटेरा जनपद पंचायत सीईओ ब्रितेश जैन का कहना है कि बच्चे की मां प्यारी बाई को मार्च 2021 से ऑफलाइन राशन दिया जा रहा है. क्योंकि उनके फिंगर प्रिंट डिवाइस में नहीं आ पाते हैं इसलिए यह सुविधा दी गई है. इसके अलावा ग्राम पंचायत सचिव एवं सरपंच ने स्वयं जाकर दो बच्चों के आधार कार्ड बनवाएं तथा उन्हें उसी समय व्हीलचेयर भी दिए गए थे. जबकि एक अन्य बच्चा शिवकुमार उनका नहीं है. वह उनके पति की मौत के बाद उनके पास रहने लगा है. वह किसी और का बच्चा है. 2021 से ही महिला को सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी दी जा रही है. यह कहना गलत है कि उन्हें शासन की ओर से कोई सुविधा नहीं दी गई.
अधिकारियों ने कहा मुआवजा देंगे: श्याम गौतम, जिला समन्यवयक, ग्रामीण आजीविका मिशन से ETV Bharat से बातचीत की तो उन्होने कहा कि वो आदिवासी महिलाओं का समूह बनवाएंगे और रोजगार मुहैया कराएंगे ताकि लोगों की आर्थिक हालात सुधर सके. इस घटना को लेकर कहा कि उन्हे इस मामले की जानकारी नहीं थी. हालांकि ये पंचायत का काम है, लेकिन मामला सामने आने के बाद वो अपने स्तर पर इलाके में रोजगार के लिए काम शुरु करेंगे.