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उपचुनाव का पंच! तीन बार खिला 'कमल', दो बार 'पंजे' की पकड़ में दमोह

आगामी 17 अप्रैल को होने वाले दमोह विधानसभा उपचुनाव के लिए बिसाते बिछना शुरू हो गई हैं. दमोह जिले में उपचुनाव का यह छठवां अवसर है. इसके पूर्व पांच उपचुनाव हो चुके हैं. कब और किन कारणों से हुई चुनाव पढ़िए विशेष रिपोर्ट...

Damoh Assembly By-election
दमोह विधानसभा उपचुनाव
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Published : Mar 22, 2021, 2:41 AM IST

Updated : Mar 22, 2021, 7:38 AM IST

दमोह। विधानसभा उपचुनाव के लिए राजनीतिक दांव पेच का खेल शुरू हो गया है. दमोह जिले के लिए उपचुनाव का यह पहला अवसर नहीं है कि यहां पर कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व ही चुनाव हो रहा है. इसके पहले भी चार बार ऐसे अवसर आए हैं, जब दमोह में उपचुनाव हो चुके हैं. दमोह विधानसभा के अलावा हटा और जबेरा विधानसभा में भी चुनाव हो चुके हैं. केवल पथरिया सीट ही ऐसी सीट है जहां पर अभी तक कोई उपचुनाव नहीं हुआ है. गौरतलब है कि कांग्रेस से निर्वाचित हुए विधायक राहुल सिंह लोधी के कांग्रेस से इस्तीफा देने और भाजपा का दामन थामने के कारण यह सीट रिक्त हुई है. इसके लिए 17 अप्रैल को वोटिंग होना है.

कब और किन कारणों से हुई चुनाव पढ़िए विशेष रिपोर्ट...

  • 1974 में हाईकोर्ट के आदेश पर हुए थे उपचुनाव

1967 और 1971 में निर्दलीय प्रत्याशी रहे स्वर्गीय आनंद श्रीवास्तव विधानसभा चुनाव जीते थे. 1971 के चुनाव में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी प्रभु नारायण टंडन को पराजित किया था. निर्वाचन को अवैध घोषित कराने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट में करीब 3 साल तक सुनवाई चली. जिसके बाद कोर्ट ने निर्दलीय विधायक श्रीवास्तव का निर्वाचन शून्य घोषित करते हुए 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. कोर्ट के फैसले के बाद 1974 में पहला उपचुनाव हुआ था. इसी तरह 1984 में तत्कालीन विधायक पीएन टंडन के आकस्मिक निधन के कारण दूसरी बार पुनः उपचुनाव हुए थे. जिसमें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए जयंत मलैया ने पीएन टंडन के बेटे डॉक्टर अनिल टंडन को पराजित किया था.

  • 1991 में हुए थे हटा में उपचुनाव

भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया 1990 में जिले की हटा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक निर्वाचित हुए थे. लेकिन उन्होंने कुछ महीनों बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में भी नामांकन दाखिल कर चुनाव लड़ा और वह लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए. उनके इस्तीफे के कारण 1991 में हटा विधानसभा में पहला उपचुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी राजा पटेरिया ने विजय श्री हासिल की थी.

उपचुनाव से पहले घमासामनः कांग्रेस के बागी और बीजेपी कार्यकर्ता के बीच छिड़ी लड़ाई

  • जबेरा में दो बार हो चुके है उपचुनाव

हटा की ही तरह जबेरा विधानसभा (पूर्व में नोहटा नाम था) सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े चंद्रभान लोधी कांग्रेस के कद्दावर नेता रत्नेश सालोमन को 2003 के आम चुनाव में शिकस्त देकर विधायक बने थे. लेकिन डॉक्टर कुसमरिया की ही तरह उन्होंने भी 6 महीने बाद लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उनके इस्तीफे के बाद 2004 में नोहटा सीट पर भी उपचुनाव हुए. जिसमें भाजपा प्रत्याशी दशरथ सिंह लोधी निर्वाचित हुए. 2008 के आम चुनाव में कांग्रेस नेता रत्नेश सालोमन ने एक बार फिर बाजी पलटते हुए दशरथ सिंह को चुनाव हराया और विधायक बन गए. 2011 में उनका भी निधन हो गया और एक बार फिर उपचुनाव हुए जिसमें दशरथ सिंह लोधी ने श्री सालोमन की बेटी तान्या सालोमन को पराजित किया.

  • कितना अलग है यह चुनाव

अब तक हुए चुनाव से यह उपचुनाव एकदम अलग है. पूर्व के चुनाव में सोशल प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं था. यह चुनाव राहुल सिंह के इस्तीफे के बाद से ही सोशल मीडिया पर शुरू हो गया है. पहले आज की तरह टेक्नोलॉजी नहीं थी. इसलिए चुनाव के दौरान ही सभाएं और पोस्टर वार होता था, लेकिन अब यह चुनाव धरातल से पहले सोशल मीडिया पर लड़ा जा रहा है. किसी भी तरह की घटना विवाद या बयान आम जनता तक पहुंचने में केवल कुछ सेकंड का ही समय लगता है.

दमोह। विधानसभा उपचुनाव के लिए राजनीतिक दांव पेच का खेल शुरू हो गया है. दमोह जिले के लिए उपचुनाव का यह पहला अवसर नहीं है कि यहां पर कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व ही चुनाव हो रहा है. इसके पहले भी चार बार ऐसे अवसर आए हैं, जब दमोह में उपचुनाव हो चुके हैं. दमोह विधानसभा के अलावा हटा और जबेरा विधानसभा में भी चुनाव हो चुके हैं. केवल पथरिया सीट ही ऐसी सीट है जहां पर अभी तक कोई उपचुनाव नहीं हुआ है. गौरतलब है कि कांग्रेस से निर्वाचित हुए विधायक राहुल सिंह लोधी के कांग्रेस से इस्तीफा देने और भाजपा का दामन थामने के कारण यह सीट रिक्त हुई है. इसके लिए 17 अप्रैल को वोटिंग होना है.

कब और किन कारणों से हुई चुनाव पढ़िए विशेष रिपोर्ट...

  • 1974 में हाईकोर्ट के आदेश पर हुए थे उपचुनाव

1967 और 1971 में निर्दलीय प्रत्याशी रहे स्वर्गीय आनंद श्रीवास्तव विधानसभा चुनाव जीते थे. 1971 के चुनाव में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी प्रभु नारायण टंडन को पराजित किया था. निर्वाचन को अवैध घोषित कराने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट में करीब 3 साल तक सुनवाई चली. जिसके बाद कोर्ट ने निर्दलीय विधायक श्रीवास्तव का निर्वाचन शून्य घोषित करते हुए 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. कोर्ट के फैसले के बाद 1974 में पहला उपचुनाव हुआ था. इसी तरह 1984 में तत्कालीन विधायक पीएन टंडन के आकस्मिक निधन के कारण दूसरी बार पुनः उपचुनाव हुए थे. जिसमें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए जयंत मलैया ने पीएन टंडन के बेटे डॉक्टर अनिल टंडन को पराजित किया था.

  • 1991 में हुए थे हटा में उपचुनाव

भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया 1990 में जिले की हटा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक निर्वाचित हुए थे. लेकिन उन्होंने कुछ महीनों बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में भी नामांकन दाखिल कर चुनाव लड़ा और वह लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए. उनके इस्तीफे के कारण 1991 में हटा विधानसभा में पहला उपचुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस के प्रत्याशी राजा पटेरिया ने विजय श्री हासिल की थी.

उपचुनाव से पहले घमासामनः कांग्रेस के बागी और बीजेपी कार्यकर्ता के बीच छिड़ी लड़ाई

  • जबेरा में दो बार हो चुके है उपचुनाव

हटा की ही तरह जबेरा विधानसभा (पूर्व में नोहटा नाम था) सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े चंद्रभान लोधी कांग्रेस के कद्दावर नेता रत्नेश सालोमन को 2003 के आम चुनाव में शिकस्त देकर विधायक बने थे. लेकिन डॉक्टर कुसमरिया की ही तरह उन्होंने भी 6 महीने बाद लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उनके इस्तीफे के बाद 2004 में नोहटा सीट पर भी उपचुनाव हुए. जिसमें भाजपा प्रत्याशी दशरथ सिंह लोधी निर्वाचित हुए. 2008 के आम चुनाव में कांग्रेस नेता रत्नेश सालोमन ने एक बार फिर बाजी पलटते हुए दशरथ सिंह को चुनाव हराया और विधायक बन गए. 2011 में उनका भी निधन हो गया और एक बार फिर उपचुनाव हुए जिसमें दशरथ सिंह लोधी ने श्री सालोमन की बेटी तान्या सालोमन को पराजित किया.

  • कितना अलग है यह चुनाव

अब तक हुए चुनाव से यह उपचुनाव एकदम अलग है. पूर्व के चुनाव में सोशल प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं था. यह चुनाव राहुल सिंह के इस्तीफे के बाद से ही सोशल मीडिया पर शुरू हो गया है. पहले आज की तरह टेक्नोलॉजी नहीं थी. इसलिए चुनाव के दौरान ही सभाएं और पोस्टर वार होता था, लेकिन अब यह चुनाव धरातल से पहले सोशल मीडिया पर लड़ा जा रहा है. किसी भी तरह की घटना विवाद या बयान आम जनता तक पहुंचने में केवल कुछ सेकंड का ही समय लगता है.

Last Updated : Mar 22, 2021, 7:38 AM IST
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