दमोह। जिले में एक ऐसा गुरुद्वारा भी है, जिसका संचालन दलित समुदाय के लोग करते हैं. इस गुरुद्वारे की स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी. इस गुरुद्वारे में स्थानीय दलित समुदाय के लोग हर दिन पहुंचकर गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी को सुनते हैं, साथ ही उस महात्मा को भी याद करते हैं, जिसने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. इस गुरुद्वारे में प्राचीन गुरू ग्रंथ साहिब भी है.
⦁ शहर के हरिजन मोहल्ले में 2 दिसंबर 1935 में दांडी यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ था.
⦁ इस दौरान हरिजन सेवक संघ की पहल पर महात्मा गांधी ने इस इलाके में गुरुद्वारे की स्थापना की थी.
⦁ करीब 200 रुपए की सहयोग राशि हरिजन सेवक संघ द्वारा दिए जाने के बाद गुरुद्वारे का निर्माण शुरू हुआ था.
⦁ वहीं करीब 708 रुपए इस गुरुद्वारे को बनाने में खर्च हुए थे. गुरुद्वारे के निर्माण में हरिजन सेवक संघ के तत्कालीन सभापति पीएस कासिब सहित बाबा मोती दास, बाबा तुलसीदास और बाबूलाल पारोचे ने अपना सहयोग देकर इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया था.
⦁ तब से लेकर अब तक यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र है.
यहां पर 3 पीढ़ियों से गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे की सेवा करने वाले हरीश सिंह पारोचे बताते हैं कि उनकी पीढ़ियों द्वारा जो कार्य किया गया, वह धार्मिक आस्था और सहिष्णुता का प्रतीक है. हर दिन वे गुरुमुखी में गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी का पाठ करते हैं और हिंदी में उसका अनुवाद कर लोगों को सुनाते हैं. यहां पर बड़ी संख्या में गुरु ग्रंथ साहब को मानने वालों का आना-जाना लगा रहता है. वह हर दिन ही गुरु ग्रंथ साहब की वाणी सुनने आते हैं.
यहां पर है अनोखा गुरु ग्रंथ साहिब
इस गुरुद्वारे में स्थापित दो गुरु ग्रंथ साहिब है. एक गुरु ग्रंथ साहिब इस गुरुद्वारा की स्थापना काल का है, जो कई मायनों में खास है. यह गुरु ग्रंथ साहिब पुराना है. साथ ही गुरु ग्रंथ साहिब की एक विशेषता होती है कि वो 1430 पृष्ठ का होता है. इतने पृष्ठों में गुरु वाणी प्रकाशित होती है, और उस वाणी को लोग सुनते हैं, लेकिन दमोह के इस गुरुद्वारे में 2452 पेज का गुरु ग्रंथ साहिब है. वाणी इतनी ही है लेकिन पृष्ठों की संख्या ज्यादा है.