दमोह। केंद्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में विद्युत कंपनियों के निजीकरण के विरोध में कर्मचारी मुखर हो गए हैं. कर्मचारी संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा निजीकरण करने पर एतराज जताते हुए कहा है कि, इसके पूर्व भी सरकार ने बिजली कंपनी के निजीकरण की कोशिश की थी. लेकिन वह उस में सफल नहीं हो सकी. जहां भी निजीकरण करने की कोशिश की गई है वहां न केवल विद्युत व्यवस्था चरमराई है, बल्कि सरकार को आर्थिक नुक़सान भी उठाना. इससे उपभोक्ताओं को भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
निजीकरण के लिए 8 महीने का समय
एक बार फिर केंद्र सरकार ने बिजली कंपनियों का निजीकरण करने के आदेश जारी किए हैं. कंपनियों को 8 महीने का समय निजीकरण के लिए दिया गया है. कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार के इस कदम से प्रदेश के हजारों, लाखों बिजली कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे. कंपनी जिसे चाहेगी काम पर रखेगी और जिसे चाहेगी बाहर का रास्ता दिखा देगी. ऐसे में अराजकता बढ़ेगी तथा हजारों कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.
बंद हो जाएगी सब्सिडी
आंदोलनरत संगठनों का कहना है कि निजीकरण होने के बाद उपभोक्ताओं को मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो जाएगी. दमोह जिले में करीब 45 हज़ार स्थाई कृषि पंप उपभोक्ता तथा 50 हज़ार से अधिक अस्थाई कृषि पंप उपभोक्ता हैं. अभी इन्हें 700 रुपए प्रति हॉर्स पावर के हिसाब से भुगतान करना होता है. 75 प्रतिशत सब्सिडी बंद होने के बाद उन्हें शत प्रतिशत भुगतान करना पड़ेगा. इसी तरह 100 यूनिट तक 100 रुपए बिल योजना भी खत्म हो जाएगी. गरीब उपभोक्ताओं को 8 से 9 रुपए प्रति यूनिट बिल चुकाना अनिवार्य हो जाएगा.
बेरोजगार हो जाएंगे 50 हजार से अधिक कर्मचारी
विद्युत कर्मचारी संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह राजपूत ने कहा कि, निजीकरण होने के बाद प्रदेश भर में कार्यरत करीब 25 हज़ार स्थाई, 10 हज़ार संविदा, 20 हज़ार आउटसोर्स कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे. उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा. सरकार से संगठनों ने मांग की है कि शीघ्र ही निजीकरण के फैसले को वापस लिया जाए.
यह संगठन हुए शामिल
विद्युत कर्मचारी संगठनों की आज से शुरू हुई हड़ताल में यूनाइटेड फोरम, अभियंता संघ, कर्मचारी फेडरेशन, तकनीकी कर्मचारी संघ, कर्मचारी कांग्रेस, जूनियर अभियंता एसोसिएशन, संविदा कर्मचारी संघ तथा आउटसोर्स कर्मचारी संघ के कार्यकर्ता शामिल हुए.