छिंदवाड़ा। महुआ के लड्डू बाजरे की रोटी, कोदो का चावल ऐसे कई वनोपज हैं, जिनका अनोखा स्वाद आपको अब एक ही जगह मिल रहा है. जहां पर वन विभाग की मदद से महिलाओं ने वनभोज रसोई के नाम से शुरुआत की है. ताकि रोजगार के साथ ही पारंपरिक भोजन का स्वाद लोगों को मिल सके.
स्व सहायता समूह की महिलाएं चलाती हैं रसोई- वन विभाग की पहल से गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वन भोज रसोई के नाम से रेस्टोरेंट् संचालित किया जा रहा है. जंगल के बीचो-बीच बने इस रेस्टोरेंट में स्व सहायता समूह कि 15 महिलाओं को जोड़कर वनोपज से बनने वाले लजीज व्यंजनों को परोसा जा रहा है, ऐसे व्यंजन जो किसी रेस्टोरेंट में नहीं मिल पाते वो यहां पर आसानी से मिलते हैं.
चूल्हे में ही बनते हैं सभी व्यंजन,आर्गनिक अनाज का उपयोग- इस रसोई की खास बात यह है कि सारा भोजन चूल्हे में ही तैयार किया जाता है. खासतौर पर मक्के की रोटी, बाजरे की रोटी, ज्वार की रोटी के अलावा बैंगन का भर्ता टमाटर की चटनी से लेकर हर तरह का व्यंजन चूल्हे की आग में ही पकाया जाता है. सबसे खास बात यह है कि उपयोग किया जाने वाला अनाज वनोपज है इसलिए किसी भी तरीके का रासायनिक खाद्य कीटनाशक अनाज में उपयोग नहीं किया जाता. इसलिए पूरी तरीके से खाना ऑर्गेनिक होता है.
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महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर-महिलाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से शुरू किया गया यह काम अब महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है. कुछ महिलाएं वनोपज को इकट्ठा कर अपनी दुकान के माध्यम से बेचती हैं तो कुछ महिलाएं रेस्टोरेंट के जरिए वनोपज से भोजन पकाते हैं. इनमें चिरौंजी के लड्डू महुआ के लड्डू और चिरौंजी की बर्फी के अलावा हर दिन अलग-अलग भोजन भी तैयार किया जाता है. इस रसोई का आनंद लेने के लिए सिर्फ छिंदवाड़ा ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के लोग भी काफी तादाद में पहुंच रहे हैं