छिंदवाड़ा। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे राज्य से जबाव तलब किया है जहां पर स्पेशल इकोनॉमिक जोन (special economic zone) के लिए जमीन अधिग्रहित की गई है लेकिन उन जगहों पर उद्योग स्थापित नहीं हुए हैं तो क्यों ना उन्हें जमीन वापस कर दी जाए. वहीं छिंदवाड़ा में भी 13 साल पहले SEZ के लिए करीब 8 हजार एकड़ जमीन किसानों से ली गई, लेकिन अब तक कोई भी उद्योग नहीं लगा है, वहीं जमीन जाने के कारण बेरोजगारी झेल रहे किसानों की हालात बद से बदत्तर होती जा रही है.
ना तो उद्योग लगे-ना ही किसानों मिला रोजगार
स्पेशल इकोनॉमिक जोन (special economic zone) के नाम पर छिंदवाड़ा में किसानों की जमीन तो अधिगृहित कर ली गई, लेकिन ना इलाके में कोई उद्योग लगा ना ही किसानों को किसी तरह का काम मिला. ऊपर से जमीन के एवज में मिली रकम भी खत्म होने लगी है. ऐसे में इन किसानों के सामने खाने के लाले पड़ रहे हैं.दरअसल पूरा मामला छिंदवाड़ा में सेज को डेवलप करने का है, जिसमें 2007 में राज्य सरकार ने छिंदवाड़ा प्लस डेवलपर्स कंपनी से एमओयू साइन किया था. किसानों का आऱोप है कि सरकार ने सेज तो बनाया लेकिन कंपनी से किसानों को गुमराह करके मनमाने ढंग से जमीन ली और लालच दिया लेकिन उद्योग नहीं लगने से ना तो नौकरी मिली और ना पर्याप्त मुआवजा.
जमीन जाने के सदमे में ले ली जान
छिंदवाड़ा के सौंसर में स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ in Chhindwara) यानि की सेज बनाने के लिए सरकार के माध्यम से 8 गांवों की करीब 8 हजार एकड़ जमीन ली गई थी और उसके बदले मुआवजे के साथ-साथ परिवार के सदस्य को नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन ना तो उद्योग लगे और ना ही नौकरी मिली. लिहाजा कई परिवार बेरोजगार हो गए और सदमें में अबतक 7 लोगों की जान भी चली गई है. कुछ ऐसी ही दास्तां है इलाके के किसान श्याम राव धुर्वे दो मासूम बच्चे और एक बूढ़ी मां के साथ सात एकड़ जमीन में अपना परिवार खुशी से पालता था, लेकिन जब सेज की योजना आई तो इनका सपना दोगुना हो गया कि अब तो जमीन के बदले फैक्ट्री में नौकरी मिलेगी. नौकरी तो दूर जमीन हाथ से जाने के बाद रोटी के लाले पड़ गए और सदमें में अपनी जान गवां बैठे. अब ये हालात हैं कि बेटा भी अपने पिता की मौत का कारण बताते रो पड़ता है औऱ मां की आंखे तो जैसे सूख गए हो.
रोजी-रोटी को मोहताज किसान
छिंदवाड़ा में सेज के नाम पर कई किसान परिवारों की जिंदगी उजड़ गई है. 8 हजार एकड़ जमीन को अधिग्रहण करने के लिए 8 गांव के किसानों से उनकी जमीन ली गई है. लेकिन आज किसान परिवार अपनी जमीन देकर पछता रहा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब उनकी आंखों में भी उम्मीदें जागी है कि मप्र में भी कुछ अच्छा होगा. इस पर कलेक्टर का कहना है कि उन्होंने अभी तक न्यायालय के आदेश का अध्ययन नहीं किया है.