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सड़क किनारे जीविका चलाने वालों पर संकट, अनलॉक में भी नहीं बढ़ा व्यापार - अनलॉक में भी नहीं बढ़ा व्यापार

अनलॉक में तो यू ज्यादातर बाजार खुल गए हैं, लेकिन सड़कों पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के न चल पाने के कारण सड़क किनारे कुछ न कुछ काम कर जीविका चलाने वालों पर अभी भी संकट के बादल मडरा रहे हैं.

Roadside vendors businesses down despite of unlock
अनलॉक में भी नहीं बढ़ा व्यापार
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Published : Jul 16, 2020, 11:34 PM IST

छिन्दवाड़ा। कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद हर वर्ग आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. यूं तो अधिकतर बाजार खुल गए हैं लेकिन आज भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाए हैं, जिस कारण राष्ट्रीय राजमार्गों के सहारे आजीविका चलाने वाले लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. छिंदवाड़ा की रिंग रोड में बने ज्यादातर ढाबे इन दिनों सूने पड़े हैं, ढाबा मालिकों के लिए मजदूरों का पेमेंट करना भी मुश्किल हो रहा है.

सड़क किनारे जीविका चलाने वालों पर संकट

खाली पड़े ढाबे और होटल
रिंग रोड में किराए का ढाबा लेकर राजेंद्र उसरेठे ने सोचा था कि सड़क में ट्रैफिक काफी रहता है जिसकी वजह से उसका ढाबा अच्छा चलेगा और वह उस कमाई से परिवार को एक अच्छी जिंदगी दे सकेंगे. लेकिन लॉकडाउन के कारण बंद हुए वाहनों और कोरोना संक्रमण के डर के कारण बामुश्किल दिन में कुछ ही ग्राहक पहुंच पाते हैं अब तो आलम यह है कि कई बार ढाबे में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो जाता है. वहीं ढाबा संचालिका तारा पवार बताती हैं की पहले 10 से 15 हजार का धंधा हो जाता था, लेकिन इन दिनों तो किराने का पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं.

मैकेनिकों को भी ग्राहकों का इंतजार
नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे में ढाबों के अलावा मुख्य रूप से मैकेनिकों का भी व्यापार चलता है. जिसमें फिर चाहे वह पंचर मकैनिक हों या गाड़ी सुधारने वाले मैकेनिक. अनलॉक के बाद भी थमें वाहनों के पहियों ने इनकी जिंदगी पर लॉकडाउन लगा दिया है. मैकेनिक रोजाना अपनी दुकान तो खोल रहे हैं, लेकिन ग्राहकों के इंतजार में ही पूरा दिन गुजर जाता है और शाम को खाली हैथ घर लौट जाते हैं. मैकेनिकों का कहना है की जब सड़कों पर वाहन ही नहीं दौड़ रहे हैं तो फिर इनका धंधा कैसे चलेगा.

गुमटियों का भी व्यापार चौपट
राजमार्गों के सहारे आजीविका चलाने वाले चाय के ठेले हो या पान की गुमठी इनकी हालात ऐसी हैं कि अब दिनभर ग्राहकों का रास्ता देखते देखते आंखें पथरा जाती है. चाय की दुकान चलाने वाले बबलू साहू ने बताया कि पहले दिन में दो से 3 लीटर दूध की चाय बना कर बेच देते थे, लेकिन अब तो आलम ये है कि 2 दिनों से वह 2 लीटर दूध लेकर बैठे हैं चाय तो बिकी नहीं ऊपर से दूध खराब हो गया.

छिंदवाड़ा से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 347 और 547 के जरिए लोग पड़ोसी राज महाराष्ट्र के अलावा भोपाल और जबलपुर का सफर तय करते हैं. छिंदवाड़ा शहर में बनी रिंग रोड में इन्हीं के सहारे कई लोगों की आजीविका भी चलती है. लेकिन लॉकडाउन के बाद कम हुआ ट्रैफिक इनकी आजूविका पर संकट खड़ा कर दिया है. लोगों को उम्मीद है कि महामारी जल्द खत्म हो और उनका व्यवसाय चल सके जिससे जिंदगी एक बार भिर पटरी पर लौट सकें.

छिन्दवाड़ा। कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद हर वर्ग आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. यूं तो अधिकतर बाजार खुल गए हैं लेकिन आज भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाए हैं, जिस कारण राष्ट्रीय राजमार्गों के सहारे आजीविका चलाने वाले लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. छिंदवाड़ा की रिंग रोड में बने ज्यादातर ढाबे इन दिनों सूने पड़े हैं, ढाबा मालिकों के लिए मजदूरों का पेमेंट करना भी मुश्किल हो रहा है.

सड़क किनारे जीविका चलाने वालों पर संकट

खाली पड़े ढाबे और होटल
रिंग रोड में किराए का ढाबा लेकर राजेंद्र उसरेठे ने सोचा था कि सड़क में ट्रैफिक काफी रहता है जिसकी वजह से उसका ढाबा अच्छा चलेगा और वह उस कमाई से परिवार को एक अच्छी जिंदगी दे सकेंगे. लेकिन लॉकडाउन के कारण बंद हुए वाहनों और कोरोना संक्रमण के डर के कारण बामुश्किल दिन में कुछ ही ग्राहक पहुंच पाते हैं अब तो आलम यह है कि कई बार ढाबे में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो जाता है. वहीं ढाबा संचालिका तारा पवार बताती हैं की पहले 10 से 15 हजार का धंधा हो जाता था, लेकिन इन दिनों तो किराने का पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं.

मैकेनिकों को भी ग्राहकों का इंतजार
नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे में ढाबों के अलावा मुख्य रूप से मैकेनिकों का भी व्यापार चलता है. जिसमें फिर चाहे वह पंचर मकैनिक हों या गाड़ी सुधारने वाले मैकेनिक. अनलॉक के बाद भी थमें वाहनों के पहियों ने इनकी जिंदगी पर लॉकडाउन लगा दिया है. मैकेनिक रोजाना अपनी दुकान तो खोल रहे हैं, लेकिन ग्राहकों के इंतजार में ही पूरा दिन गुजर जाता है और शाम को खाली हैथ घर लौट जाते हैं. मैकेनिकों का कहना है की जब सड़कों पर वाहन ही नहीं दौड़ रहे हैं तो फिर इनका धंधा कैसे चलेगा.

गुमटियों का भी व्यापार चौपट
राजमार्गों के सहारे आजीविका चलाने वाले चाय के ठेले हो या पान की गुमठी इनकी हालात ऐसी हैं कि अब दिनभर ग्राहकों का रास्ता देखते देखते आंखें पथरा जाती है. चाय की दुकान चलाने वाले बबलू साहू ने बताया कि पहले दिन में दो से 3 लीटर दूध की चाय बना कर बेच देते थे, लेकिन अब तो आलम ये है कि 2 दिनों से वह 2 लीटर दूध लेकर बैठे हैं चाय तो बिकी नहीं ऊपर से दूध खराब हो गया.

छिंदवाड़ा से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 347 और 547 के जरिए लोग पड़ोसी राज महाराष्ट्र के अलावा भोपाल और जबलपुर का सफर तय करते हैं. छिंदवाड़ा शहर में बनी रिंग रोड में इन्हीं के सहारे कई लोगों की आजीविका भी चलती है. लेकिन लॉकडाउन के बाद कम हुआ ट्रैफिक इनकी आजूविका पर संकट खड़ा कर दिया है. लोगों को उम्मीद है कि महामारी जल्द खत्म हो और उनका व्यवसाय चल सके जिससे जिंदगी एक बार भिर पटरी पर लौट सकें.

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