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गणेश उत्सव को लेकर शहर में धूम, मिट्टी की मूर्तियों को प्राथमिकता

देशभर में सोमवार को गणेश उत्सव हर्षो उल्लास से मनाया जाएगा, गली-गली , घर- घर गणेश पंडाल सजाए जाएंगे , ऐसे में मिट्टी की मूर्ति और पीओपी की मूर्ति किस को प्राथमिकता दी जाए.

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Published : Sep 1, 2019, 10:00 AM IST

पर्यावरणविद आलोक पाठक ईटीवी भारत के साथ

छिंदवाड़ा । सोमवार से पूरे देशभर में गणेश उत्सव का त्योहार जोरो शोरो से मनाया जाना है, घर-घर में भगवान गणेश की स्थापना होगी. बाजार में पीओपी की मूर्ति और मिट्टी की मूर्तियां दोनों ही उपलब्ध है , ईटीवी भारत से खास बातचीत में पर्यावरणविद और वन विभाग के अधिकारी आलोक पाठक ने धार्मिक और प्राकृतिक लिहाज से मूर्तियों के स्थापना के बारे में बताया.

मिट्टी की मूर्तियों को मिले प्राथमिकता पर्यावरणविद आलोक पाठक

आलोक पाठक ने बताया कि हिंदू धर्म की मान्यता के हिसाब से अगर किसी का सृजन करते है तो उसका विसर्जन भी करना जरूरी होता है . तो जो सृजन करते है वो पंचतत्व में से एक तत्व जो कि मिट्टी है उसे किया जाता है जिसे जब जल में उसका विसर्जन करे है तो मिट्टी दोबारा पृथ्वी में समा जाए.

आज कल त्योहारों ने कमर्शियल रुप ले लिया है, ज्यादा सुंदर मूर्ति बनाकर ज्यादा पैसे कमाने के पीओपी से मूर्तियां बनाई जा रही है जो कि प्रर्यावरण के लिए काफी हानिकारक है जो कलर मूर्तियों में इस्तमाल होते है वो पानी को दूषित करते है और वो पानी मानव के इस्तमाल में किसी भी तरह आता है तो वो हानिकारक ही साबित होता है.पीओपी के नुकसान को देखते है उनका कहना है कि स्थानीय मूर्तियों को बढ़ावा देना चाहिए,

छिंदवाड़ा । सोमवार से पूरे देशभर में गणेश उत्सव का त्योहार जोरो शोरो से मनाया जाना है, घर-घर में भगवान गणेश की स्थापना होगी. बाजार में पीओपी की मूर्ति और मिट्टी की मूर्तियां दोनों ही उपलब्ध है , ईटीवी भारत से खास बातचीत में पर्यावरणविद और वन विभाग के अधिकारी आलोक पाठक ने धार्मिक और प्राकृतिक लिहाज से मूर्तियों के स्थापना के बारे में बताया.

मिट्टी की मूर्तियों को मिले प्राथमिकता पर्यावरणविद आलोक पाठक

आलोक पाठक ने बताया कि हिंदू धर्म की मान्यता के हिसाब से अगर किसी का सृजन करते है तो उसका विसर्जन भी करना जरूरी होता है . तो जो सृजन करते है वो पंचतत्व में से एक तत्व जो कि मिट्टी है उसे किया जाता है जिसे जब जल में उसका विसर्जन करे है तो मिट्टी दोबारा पृथ्वी में समा जाए.

आज कल त्योहारों ने कमर्शियल रुप ले लिया है, ज्यादा सुंदर मूर्ति बनाकर ज्यादा पैसे कमाने के पीओपी से मूर्तियां बनाई जा रही है जो कि प्रर्यावरण के लिए काफी हानिकारक है जो कलर मूर्तियों में इस्तमाल होते है वो पानी को दूषित करते है और वो पानी मानव के इस्तमाल में किसी भी तरह आता है तो वो हानिकारक ही साबित होता है.पीओपी के नुकसान को देखते है उनका कहना है कि स्थानीय मूर्तियों को बढ़ावा देना चाहिए,

Intro:छिन्दवाड़ा। सोमवार से गणेश स्थापना की जानी है और हर जगह गणेश भगवान के उत्सव को धूमधाम से मनाया जाएगा। आइये आपको बताते हैं मिट्टी की मूर्ति और पीओपी की मूर्तियों को स्थापित करने के फायदे और नुकसान।


Body:ईटीवी भारत से खास बातचीत में पर्यावरणविद और वन विभाग के अधिकारी आलोक पाठक ने धार्मिक और प्राकृतिक लिहाज से मूर्तियाँ के स्थापना के बारे में बताया।

आलोक पाठक ने बताया कि हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अगर किसी का भी सृजन किया जाता है विसर्जन भी जरूरी होता है। और सृजन पंचतत्व के किसी एक तत्व से होता है इसलिए मिट्टी से मूर्ति बनाई जाती है ताकि जलवायु में उस तत्व का विसर्जन हो सके। और वो तत्व पृथ्वी में समाहित हो जाए।

व्यावसायिक दौर में धर्म दरकिनार

आजकल व्यावसायिक दौर में लोग धर्म को ना मानकर सुंदरता और कम पैसों की तरफ जा रहे हैं जिसके चलते पीओपी की मूर्तियों का चलन बढ़ रहा है जिसके चलते स्थानीय मूर्तिकार भी घाटे में जा रहे हैं,पीओपी स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

पीओपी सुंदर लेकिन पर्यावरण के लिए खतरनाक

पीओपी की मूर्ति सुंदर तो दिखेगी लेकिन इसके खतरनाक केमिकल, कलरों मिला केमिकल हर लोंगो को चाहे जलीय तत्व हो या फिर मानव जीवन सबको नुकसानदायक होगा ।


Conclusion:जिस तरह से आज पॉलीथिन का उपयोग लोंगो के लिए परेशानी का सबब बना हुआ और उस पर बंदिश की बात हो रही है अगर पीओपी की मूर्तियाँ पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

121- आलोक पाठक,पर्यावरणविद, डीएफओ
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