छिंदवाड़ा। सरकारी धन की बार्बादी कैसे होती है, ये देखना हो तो छिंदवाड़ा जिले में लगाए गए सोलर हैंडपंप के हाल सबसे ताजा नमूना है. जिले के ग्रामीणों को सोलर पम्प के जरिए आसानी से पानी उपलब्ध कराने लगाए करोड़ों रुपए खर्च किए गए. लेकिन अफसरों की अनदेखी के चलते सोलर पम्प बंद पड़े हैं. उपकरण भी चोरी होते जा रहे हैं. ग्रामीणों को हैंडपम्प से पानी निकालने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. जानकारी अनुसार जिले के ऐसे 223 हैंडपम्पों में सोलर पम्प लगाए गए थे, जहां भू-जल स्तर सबसे अधिक नीचे रहता है.
मेंटेनेंस के अभाव में बंद : छिंदवाड़ा डिविजन में 102 और परासिया डिविजन में 121 हैंडपम्प चिह्नित किए गए थे. इन स्थानों पर पीएचई विभाग ने सोलर पम्प लगाकर ग्रामीणों को सिर्फ बटन दबाते ही पानी उपलब्ध कराने की सुविधा दी थी. लेकिन सोलर पम्पों की देखरेख व रखरखाव ठीक से नहीं होने के कारण अधिकांश बंद पड़े हैं. अब हालात यह हैं कि ग्रामीणों को हाथों से हैंडपम्प चलाकर मशक्कत के बाद पीने का पानी उपलब्ध हो पाता है. गर्मी के दिनों में घंटों तक हैंडपम्प को चलाने के बाद भी इनसे पानी निकलना मुश्किल होता है. ग्रामीण भी सरकारी अफसरों की लापरवाही से नाराज हैं.
जिले के 11 विकासखण्डों में ये हैं हालात : 11 विकासखंड में 1993 गांव हैंडपम्प पर निर्भर हैं. जिले में 1993 गांव आज भी हैंडपंप के पानी पर निर्भर हैं. इन गांवों में 12,022 हैंडपम्प हैं. जिनमें से कुल 223 हैंडपंप में सोलर सिस्टम लगाया गया था. 51 से ज्यादा सोलर हैंडपंप बंद पड़े हैं. इनमें से 22 से ज्यादा छिंदवाड़ा डिविजन में बंद हैं तो वहीं 29 से ज्यादा परासिया डिविजन में बंद हैं. विभाग के पास इन पम्पों को दुरुस्त करने के लिए कोई एक्सपर्ट नहीं है. फंड की कमी का हवाला देते हुए अफसर भी खुद को असहाय बता रहे हैं. सालों से बंद पड़े इन सोलर पम्पों से प्लेट्स व बैटरियां चोरी हो रही हैं.
किसानों को भारी पड़ेगी सोलर पंप योजना, अब देना होगा दोगुने से ज्यादा अंशदान
एक सोलर पंप पर करीब 3.70 लाख खर्च : लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस योजना के तहत जिस एजेंसी को काम दिया गया था, उसका मेंटनेंस का टाइम अब खत्म हो गया है. इसकी वजह से वह सुधार कार्य नहीं कर रहा है. बता दें कि एक हैंडपंप पर करीब 3 लाख 70 हजार का खर्च आया था. इस हिसाब से करीब आठ करोड़ 25 लाख रुपए इन हैंडपंपों में सोलर सिस्टम लगाने के लिए खर्च किए गए. लेकिन अब इनमें से अधिकांश बंद पड़े हैं. ये योजना यह बताने के लिए काफी है कि कैसे सरकारी धन का दुरुपयोग होता है.