छिंदवाड़ा। एमपी की राजनीति में सभी लोग जानते हैं कि छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ है. जिसे भेदना बीजेपी के लिए आसान नहीं है. वहीं कुछ समय पहले तक पांढुर्णा छिंदवाड़ा का ही हिस्सा था, लेकिन सीएम शिवराज ने कुछ दिनों पहले ही पांढुर्णा को अलग जिला बनाने का ऐलान कर, उसे छिंदवाड़ा से अलग कर दिया है. हाल ही में नवगठित जिला पांढुर्णा में शामिल हुई छिंदवाड़ा की सौसर विधानसभा सीट अनारक्षित है, लेकिन हमेशा से ही यहां पर कुनबी समाज से विधायक चुना जाता है. खास बात यह है कि इसी विधानसभा के मतदाता पूर्व सीएम और पीसीसी के कमलनाथ भी हैं.
पहले पांढुर्णा और सौसर एक ही विस क्षेत्र: मराठी बेल्ट के सौसर विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण हमेशा हावी रहा है. वैसे सरकारी रिकॉर्ड में यह विधानसभा अनारक्षित है, लेकिन कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों दलों ने हमेशा से जातिगत समीकरण को देखते हुए कुनबी समाज के नेताओं को ही टिकट दिया है. अपवाद स्वरूप 1957 के विधानसभा चुनाव में समान वर्ग से रायचंद भाई शाह चुनाव जीते थे. उस समय सौसर और पांढुर्णा एक ही विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था. इसके बाद पांढुर्णा अलग विधानसभा क्षेत्र बना.
सौसर के मुख्यालय से नहीं चुना गया विधायक: साल 1951 से साल 2008 तक के 13 विधानसभा चुनाव में कुनबी समाज के प्रत्याशियों ने कांग्रेस भाजपा व अन्य से जीत हासिल की. हालांकि वर्ष 1990 के चुनाव में कांग्रेस ने गैर कुनबी के तौर पर लोधीखेड़ा के कांग्रेस नेता पारस चंद्र राय को मैदान में उतारा था, लेकिन कुनबी समाज के भाजपा प्रत्याशी रामराव महाले से वे चुनाव हार गए थे. जिले की अन्य विधानसभा क्षेत्र की तुलना में सौसर में बहुजन समाज पार्टी, जनता दल, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और गोंडवाना का भी खासा वजूद देखने को मिलता है. सौसर विधानसभा में एक मिथक और है, कि सौसर विधानसभा के मुख्यालय इलाके से अभी तक कोई भी विधायक नहीं चुना गया है. सौसर विधानसभा का ही एक कस्बा लोधीखेड़ा है. इसी क्षेत्र से अब तक विधायक चुने गए हैं. जिसमें रिधोरा से पांच बार विधायक, साइखेड़ा से दो बार विधायक, रंगारी से दो बार विधायक और मांगुरली से तीन बार विधायक बने हैं.