छिंदवाड़ा। हर साल भादो मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला पोला पर्व इस साल एक वायरस की चपेट में आ गया है, जिस वजह से पारंपरिक त्योहार पोला की रौनक इस साल फिकी पड़ गई है. कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए एक ओर जहां प्रशासन ने इस साल बैल दौड़ प्रतियोगिता में रोक लगा दी है, वहीं प्रदेश भर में फैलते संक्रमण को देख लोगों को निराशा भी है कि वे ये त्योहार इस बार अच्छे से नहीं मना पाएंगे.
बैलों के सम्मान में मनाया जाता है पर्व
जिस समय खरीफ की फसल तैयार हो चुकी होती है, उस समय पोला पर्व मनाया जाता है. खेतों में निंदाई-गुड़ाई का काम भी करीब-करीब खत्म हो जाता है. ऐसी मान्यता है कि पोला पर्व के दिन अन्नपूर्णा माता गर्भ धारण करती हैं और फसलों के दानों में दूध भरती हैं. ऐसे में बैलों को सम्मान देने के उद्देश्य से किसान सालों से पोला पर्व पर बैलों की पूजा करते आ रहे हैं.
परंपराओं को सहेजने वाला त्योहार
पोला पर्व एक पारंपरिक पर्व है जो कि भादो मास की अमावस्या को मनाया जाता है. इस बार कोरोना वायरस के कारण ये सादगी से मनाया गया, हर साल इस पर्व के दौरान बैल दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें आस-पास के गांव के किसान अपने बैलों का श्रृंगार कर अपने साथ लाते थे और फिर शुरू होती है बैलों की दौड़ प्रतियोगिता. इस प्रतियोगिता को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं. गाजे-बाजे के साथ धूमधाम से आयोजित होने वाली बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन इस बार स्थगित कर दिया गया है.
मिट्टी के बैल का पूजन
पोला पर्व में बैलों की पूजा के बाद घरों में मिट्टी के बैलों को पूजने की भी परंपरा है. मिट्टी के बैलों को पूजने के बाद बच्चे उन्हें दौड़ाते हैं. हालांकि, इस बार बाजार में मिट्टी के बैल बनाकर बेचने वाले व्यापारी काफी मायूस हैं. क्योंकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए, इस बार बैल खरीदने ग्राहक बहुत कम आ रहे हैं. यही वजह है कि इस बार बैल बेचने वाले व्यापारी मायूस नजर आ रहे हैं.
गुजिया, सेव, खुरमा और पापड़ी का लगता है भोग
पोला पर्व के दौरान घरों में गुजिया, सेव, खुरमा, पापड़ी आदि व्यंजन बनते हैं, जिसका भोग बैलों को लगाया जाता है. साल में एक बार ही ऐसा मौका आता है जब किसान बैलों को सजाकर उनकी पूजा करता है. ये दिन बैलों के सम्मान का दिन होता है, ताकि बैल साल भर उनके लिए काम करें.
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श्रीकृष्ण ने किया था पोलासुर का वध
इस पर्व के नाम के बारे में ऐसी किवदंती है कि नंदलाल कान्हा जब छोटे थे, तब कंस ने कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था. इसी कड़ी में एक बार कंस ने पोलसुर नाम के असुर (राक्षस) को भेजा था, जिसे भगवान कृष्ण ने मार दिया था. उस दिन भादो मास की अमावस्या थी, इसलिए इस पर्व को पोला कहा जाता है.