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इस मुर्गे का रंग ही नहीं खून भी होता है काला, जैविक कड़कनाथ की विदेशों में भी है खूब डिमांड

सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, खास तौर पर जैविक खेती की तरफ अधिक झुकाव है, पर जैविक पॉल्ट्री फॉर्म में भी बेहतर संभावनाएं हैं, पूरे देश में अकेले जैविक कड़कनाथ का पालन करने वाले छिंदवाड़ा के युवा किसान ने अपने नवाचार से ये साबित कर दिया है कि जैविक तरीके से कड़कनाथ का पालन कर इसे और लाभकारी बनाया जा सकता है.

जैविक कड़कनाथ
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Published : Jul 23, 2019, 7:50 PM IST

छिन्दवाड़ा। काले चटखदार रंग के कड़कनाथ का रंग ही नहीं खून भी काला होता है. औषधीय गुणों से भरपूर, सबसे कम फैट और लजीज स्वाद के लिए मशहूर कड़कनाथ जंगली इलाकों में पाया जाता है. सर्दी के दिनों में कड़कनाथ की डिमांड बहुत बढ़ जाती है. लिहाजा पोल्ट्री फार्मिंग के जरिए सरकार कड़कनाथ को बढ़ावा दे रही है. पर यहां के कड़कनाथ बेहद खास हैं क्योंकि देश के एकमात्र जैविक कड़कनाथ के पालन केंद्र को छिंदवाड़ा के सेमड़ा गांव में युवा किसान प्रवेश पराड़कर चलाते हैं और देश के बाहर भी कड़कनाथ को पहुंचा रहे हैं.

जैविक कड़कनाथ

हाल ही में दिल्ली में हुई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कार्यशाला में किसान ने जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर प्रेजेंटेशन भी दिया है, दिल्ली में हुई कार्यशाला में देश के 45 चुनिंदा किसानों को बुलाया गया था, जिसमें जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर एक मात्र छिंदवाड़ा के कड़कनाथ का चयन हुआ था.

प्रवेश ने बताया कि कड़कनाथ का पालन जैविक तरीके से किया जा रहा है, जिसमें वह किसी भी प्रकार की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि उसकी जगह जैविक दवाइयों का उपयोग करते हैं. लिहाजा, उनके कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों की मांग देश ही नहीं बल्कि भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, चाइना जैसे देशों में भी खूब हो रही है.

छिन्दवाड़ा। काले चटखदार रंग के कड़कनाथ का रंग ही नहीं खून भी काला होता है. औषधीय गुणों से भरपूर, सबसे कम फैट और लजीज स्वाद के लिए मशहूर कड़कनाथ जंगली इलाकों में पाया जाता है. सर्दी के दिनों में कड़कनाथ की डिमांड बहुत बढ़ जाती है. लिहाजा पोल्ट्री फार्मिंग के जरिए सरकार कड़कनाथ को बढ़ावा दे रही है. पर यहां के कड़कनाथ बेहद खास हैं क्योंकि देश के एकमात्र जैविक कड़कनाथ के पालन केंद्र को छिंदवाड़ा के सेमड़ा गांव में युवा किसान प्रवेश पराड़कर चलाते हैं और देश के बाहर भी कड़कनाथ को पहुंचा रहे हैं.

जैविक कड़कनाथ

हाल ही में दिल्ली में हुई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कार्यशाला में किसान ने जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर प्रेजेंटेशन भी दिया है, दिल्ली में हुई कार्यशाला में देश के 45 चुनिंदा किसानों को बुलाया गया था, जिसमें जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर एक मात्र छिंदवाड़ा के कड़कनाथ का चयन हुआ था.

प्रवेश ने बताया कि कड़कनाथ का पालन जैविक तरीके से किया जा रहा है, जिसमें वह किसी भी प्रकार की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि उसकी जगह जैविक दवाइयों का उपयोग करते हैं. लिहाजा, उनके कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों की मांग देश ही नहीं बल्कि भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, चाइना जैसे देशों में भी खूब हो रही है.

Intro:छिन्दवाड़ा। कड़कनाथ के बारे में आपने देखा और सुना होगा लेकिन जैविक कड़कनाथ के बारे में शायद नहीं, तो देखिए देश के एकमात्र जैविक कड़कनाथ के पालन केंद्र को छिंदवाड़ा के सेमड़ा गांव में युवा किसान प्रवेश पराड़कर जैविक कड़कनाथ मुर्गे मुर्गियों का पालन करते हैं और देश ही नहीं विदेश में भी लोगों तक पहुंचा रहे हैं।


Body: हाल ही में दिल्ली में हुई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कार्यशाला में किसान ने जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर प्रेजेंटेशन भी दिया है दिल्ली में हुई कार्यशाला में देश के 45 चुनिंदा किसानों को बुलाया गया था जिसमें जैविक कड़कनाथ के पालन को लेकर भारत से एकमात्र छिंदवाड़ा के कड़कनाथ का चयन हुआ था।


Conclusion:युवा किसान प्रवेश पराड़कर ने बताया कि कड़कनाथ का पालन जैविक तरीके से किया जा रहा है जिसमें उन्हें किसी भी प्रकार की रासायनिक दवाओं की जगह पर जैविक दवाइयां दी जाती है उनके मुर्गे मुर्गियों की मांग देश ही नहीं बल्कि भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, चाइना जैसे कई विदेशों में है जहां के लोग छिंदवाड़ा के कड़कनाथ का लुत्फ उठा रहे हैं।
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