छिंदवाड़ा। खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए और किसानों की जमीन भी अधिग्रहण की, लेकिन छिंदवाड़ा जिले की कई सिंचाई परियोजनाओं के ऐसे हाल है कि अंतिम छोर तक पानी नहीं पहुंचा है. जिसकी वजह से किसान के खेत प्यासे हैं.
जिले में 165 सिंचाई परियोजनाओं से होती है सिंचाई
छिंदवाड़ा जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री एसएस मोकासदार ने बताया कि जिले में एक मध्यम सिंचाई परियोजना समेत कुल 164 लघु परियोजनाएं के जरिए सिंचाई होती है. जिसमें 40909 हेक्टेयर जिले की कृषि भूमि सिंचित की जाती है.
किसानों के खेतों तक नहीं पहुंच रहा पानी प्यासे हैं खेत
छिंदवाड़ा जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना पेंच नदी पर बने माचागोरा बांध की है. 20 साल पहले सरकार को अपनी जमीन दे चुके किसानों को आज भी कई जगह पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. खेतों तक विभाग ने नहर तो बना दी है, लेकिन पानी अभी नहीं पहुंचा है. जिसके कारण खेती प्यासी है और किसान परेशान है. किसानों का कहना है कि ठेकेदारों ने नहर के काम में लापरवाही करते हुए ठीक से निर्माण नहीं किया है. जिसके कारण किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है.
जिले के 30 गांव की जमीन की गई अधिग्रहित
परियोजना के डूब क्षेत्र के अंतर्गत छिंदवाड़ा तहसील के 17 गांव चौरई तहसील के 10 गांव और अमरवाड़ा तहसील के 3 गांव इस प्रकार छिंदवाड़ा जिले की कुल 30 गांव की 5070 हेक्टेयर निजी भूमि का अधिग्रहण किया गया है. 882.65 हेक्टेयर सरकारी भूमि अधिकृत की गई है. भूतेरा बरहबरियारी,धनोरा,भूला मोहगांव कुल 4 गांव पूरी तरह से डूब प्रभावित हुए हैं.
खेतों में ही नहीं घरों में भी पहुंचेगा सतधरू का पानी
छिंदवाड़ा जिले के 164 और सिवनी जिले के 152 गांव को मिल रहा लाभ
जिले की पेंच व्यपवर्तन परियोजना से बने माचागोरा बांध में सिंचाई के लिए छिंदवाड़ा जिले के 164 गांव और सिवनी जिले के 152 कुल मिलाकर 316 गांव में दो नहरों के माध्यम से पानी पहुंचाया जा रहा है. कुछ इलाकों में माइक्रो इरिगेशन प्रणाली का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे ऊंचे भाग में पानी पहुंच सके. दोनों जिलों में पानी पहुंचाने के लिए 20.07 किलोमीटर लंबी बाई तट मुख्य नहर और 30.20 किलोमीटर लंबी दाएं तट मुख्य नहर सहित 605.045 किलोमीटर की नहर प्रणाली बनाई जा रही है, जिससे कुल 114882 हेक्टेयर में सिंचाई होगी.
जल उपभोक्ता संस्था करती है देख रेख
जल संसाधन विभाग के द्वारा नहरों के रखरखाव का काम जल उपभोक्ता संस्था द्वारा किया जाता है. जल उपभोक्ता संस्था नहर के सिंचित इलाके के दायरे में आने वाले किसानों के बीच से चुनाव कराकर बनाई जाती है. जिसमें अध्यक्ष और समिति सदस्य होते हैं, जल उपभोक्ता संस्था के पास ही नहर मेंटेनेंस का बजट आता है.
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अनियमितता की भेंट चढ़ी शहीद भीमा नायक जल परियोजना
कुछ इसी तरह का हाल बड़वानी की शहीद भीमा नायल जल परियोजना का है. साल 2009 में जिले की गोई नदी और अन्य सहायक नदियों को जोड़कर लोअर गोई जल परियोजना की शुरुआत की गई थी. जिसका नाम प्रदेश की भाजपा सरकार ने बदल कर शहीद भीमा नायक सागर परियोजना रख दिया है. इस परियोजना को पूरा करने के लिए 4 साल और 1 माह का समय तय किया गया था. साथ ही निर्माण एजेंसी आईवीआरसीएल को इसकी जिम्मेदारी सौपी गई थी. 11 साल बाद भी नहरों का काम अधूरा है. नहर के लिए अब तक जमीन ही नही मिल पाई है. वहीं अब तक कुल 6 बार समय सीमा में बदलाव हो चुका है. जिसे 2018 में पूर्ण हो जाना था. परियोजना की लागत की बात करें तो यह 332 करोड़ की थी, जिसे बढ़ाकर 360 किया गया. धीमी गति से चलने वाली इस परियोजना की लागत समय के साथ बदलती गई और साल 2018 में 545 करोड़ हो गई. वही दो साल में लगातार बढ़ोतरी के चलते नवीन टेंडर नहीं होने के कारण फिलहाल काम बंद है.