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लागत मूल्य के लिए भी तरस रहा कॉर्न सिटी का किसान, अब तो सुनो सरकार !

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Published : Nov 7, 2020, 2:33 PM IST

छिंदवाड़ा में इन दिनों किसानों को फसल का लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिससे परेशान किसान अपनी फसल को ओने पौने दामों में बेचने को मजबूर है.

Corn City farmer upset
कॉर्न सिटी का किसान परेशान

छिंदवाड़ा। नए कृषि बिल के लागू होने के बाद भी मध्यप्रदेश में किसानों की परेशानी फिलहाल कम होने का नाम नहीं ले रही है. छिंदवाड़ा में इन दिनों किसानों को फसल का लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिससे परेशान किसान अपनी फसल को ओने पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं. मक्के की फसल की खरीदी न होने की वजह से किसान दोहरी मार झेल रहे हैे क्योंकि जो दाम मक्के के बाजारों में मिल रहे हैं, उस दाम से तो किसान की लागत भी नहीं निकल पा रही हैं, मजबूरन किसान न तो आगामी फसल की तैयारी कर पा रहा है और न अपना कर्ज उतार पा रहा है.

किसान को नहीं मिल रहा मक्का का सही दाम

सरकार समर्थन मूल्य पर नहीं खरीद रही मक्का

दरअसल छिंदवाड़ा जिले में सबसे ज्यादा मक्के का उत्पादन होता है लेकिन इस साल मध्य प्रदेश सरकार मक्के के समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं कर रही है, जिसके चलते मजबूरन किसानों को लागत मूल्य से भी कम दाम में अपनी फसल व्यापारियों को बेचनी पड़ रही है. पिछले साल तक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में मक्के की खरीदी करती थी, लेकिन इस बार सरकार ने मक्के के अलावा खरीद की सभी फसलों की खरीदी शुरू कर दी है, लेकिन मक्के के लिए पंजीयन तक नहीं कराया है. कृषि उपज मंडी में मक्का बेचने आए किसान ने बताया कि उन्होंने 12 हजार रुपए की लागत लगाई थी, लेकिन मक्का उनका मात्र 80 हजार का हुआ. इस प्रकार से उन्हें फसल में करीब 40 हजार का घाटा हुआ है आखिर किसान कैसे करेगा.

ये भी पढ़ें: एमपी सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदेगी मक्का, केंद्र सरकार को भेजा प्रस्ताव: मंत्री कमल पटेल

किसान पर दोहरी मार

उप संचालक कृषि ने बताया कि जिले में 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर जमीन में मक्के की फसल का उत्पादन किया गया है, हालांकि पिछले साल की तुलना में इस बार किसानों ने कम मक्का लगाया था, जिस का सबसे प्रमुख कारण बाजार भाव कम हो और मौसम की मार है. पहले मक्के का भाव 2 हजार से भी ज्यादा प्रति क्विंटल मिल जाता था क्योंकि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर रखा था, लेकिन इस बार समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं होने की वजह से निजी व्यापारियों महज एक हजार प्रति क्विंटल तक ही मक्के की खरीदी कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: नहीं बिक रहा किसानों का मक्का, सरकार की बेरुखी से चिंतित अन्नदाता

खेती का धंधा हुआ चौपट

जिले में पहले सोयाबीन की फसल अधिक मात्रा में लगाई जाती थी, लेकिन किसानों ने रुख बदलते हुए मक्के पर भरोसा किया मक्के की खेती करने में लागत का अंदाजा, इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेतों में बोया जाने वाला मक्के का बीज 400 से 500 रुपए किलो तक किसानों को मिलता है, लेकिन जब यही फसल तैयार होकर किसानों के पास आती है और वह मंडी लेकर जाता है तो महज 7 से 10 रुपए प्रति किलो का ही भाव मिल रहा है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान खेती को कैसे लाभ का धंधा बना सकता है और उसकी आय दोगुनी कैसे हो सकती है.

छिंदवाड़ा। नए कृषि बिल के लागू होने के बाद भी मध्यप्रदेश में किसानों की परेशानी फिलहाल कम होने का नाम नहीं ले रही है. छिंदवाड़ा में इन दिनों किसानों को फसल का लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिससे परेशान किसान अपनी फसल को ओने पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं. मक्के की फसल की खरीदी न होने की वजह से किसान दोहरी मार झेल रहे हैे क्योंकि जो दाम मक्के के बाजारों में मिल रहे हैं, उस दाम से तो किसान की लागत भी नहीं निकल पा रही हैं, मजबूरन किसान न तो आगामी फसल की तैयारी कर पा रहा है और न अपना कर्ज उतार पा रहा है.

किसान को नहीं मिल रहा मक्का का सही दाम

सरकार समर्थन मूल्य पर नहीं खरीद रही मक्का

दरअसल छिंदवाड़ा जिले में सबसे ज्यादा मक्के का उत्पादन होता है लेकिन इस साल मध्य प्रदेश सरकार मक्के के समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं कर रही है, जिसके चलते मजबूरन किसानों को लागत मूल्य से भी कम दाम में अपनी फसल व्यापारियों को बेचनी पड़ रही है. पिछले साल तक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में मक्के की खरीदी करती थी, लेकिन इस बार सरकार ने मक्के के अलावा खरीद की सभी फसलों की खरीदी शुरू कर दी है, लेकिन मक्के के लिए पंजीयन तक नहीं कराया है. कृषि उपज मंडी में मक्का बेचने आए किसान ने बताया कि उन्होंने 12 हजार रुपए की लागत लगाई थी, लेकिन मक्का उनका मात्र 80 हजार का हुआ. इस प्रकार से उन्हें फसल में करीब 40 हजार का घाटा हुआ है आखिर किसान कैसे करेगा.

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किसान पर दोहरी मार

उप संचालक कृषि ने बताया कि जिले में 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर जमीन में मक्के की फसल का उत्पादन किया गया है, हालांकि पिछले साल की तुलना में इस बार किसानों ने कम मक्का लगाया था, जिस का सबसे प्रमुख कारण बाजार भाव कम हो और मौसम की मार है. पहले मक्के का भाव 2 हजार से भी ज्यादा प्रति क्विंटल मिल जाता था क्योंकि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर रखा था, लेकिन इस बार समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं होने की वजह से निजी व्यापारियों महज एक हजार प्रति क्विंटल तक ही मक्के की खरीदी कर रहे हैं.

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खेती का धंधा हुआ चौपट

जिले में पहले सोयाबीन की फसल अधिक मात्रा में लगाई जाती थी, लेकिन किसानों ने रुख बदलते हुए मक्के पर भरोसा किया मक्के की खेती करने में लागत का अंदाजा, इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेतों में बोया जाने वाला मक्के का बीज 400 से 500 रुपए किलो तक किसानों को मिलता है, लेकिन जब यही फसल तैयार होकर किसानों के पास आती है और वह मंडी लेकर जाता है तो महज 7 से 10 रुपए प्रति किलो का ही भाव मिल रहा है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसान खेती को कैसे लाभ का धंधा बना सकता है और उसकी आय दोगुनी कैसे हो सकती है.

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