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रंग लाई गुरूजी की मेहनत, 100 फीसदी उपस्थिति के साथ सरकारी स्कूल ने प्राइवेट को पछाड़ा - Children studying in sports

आदिवासी अंचल में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शिक्षक ने अपने पैसे से बनाया रंग-बिरंगा कमरा, अब यहां 100 फीसदी बच्चों की उपस्थिति रहती है. जहां खेल-खेल में बच्चों का ज्ञान बढ़ाया जाता है.

खेल-खेल में पढ़ाई करते बच्चे
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Published : Jul 31, 2019, 3:27 PM IST

छिंदवाड़ा। दीवारों पर उकेरे गये रंग-बिरंगे अक्षर के साथ ही देश-दुनिया की जानकारी और फर्श पर सांप-सीढ़ी से लेकर लूडो के चित्र के अलावा खेलते बच्चों की तस्वीरें किसी प्रदर्शनी या खिलौना घर का नहीं, बल्कि तामिया आदिवासी अंचल के धूसावानी गांव का सरकारी स्कूल है. एक समय ऐसा था कि बच्चे स्कूल आने से कतराते थे, लेकिन शिक्षक अरविंद सोनी ने बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए जो मुहिम शुरू की. वह निजी स्कूलों पर भारी पड़ रही है क्योंकि यहां प्राइवेट जैसी सुविधा उपलब्ध कराकर बड़े स्कूलों को भी फेल कर दिया है.

शिक्षक ने अपने पैसे से बनाया रंग-बिरंगा कमरा

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि वे यहां खेल-खेल में यहां पढ़ाई भी करते हैं. यहां बिना बस्ते-पेन की पढ़ाई भी हो जाती है. बच्चों का कहना है कि जब से यह रंग-बिरंगा कमरा बना है, तब से पढ़ाई में मन लगने लगा है. शिक्षक अरविंद सोनी ने बताया कि यहां स्कूल में बच्चों की उपस्थिति कम रहती थी, लेकिन जब से कमरा बना है, तब से बच्चों की उपस्थिति 100 प्रतिशत हो गई है.

अब बच्चे यहां आने के लिए लालायित रहते हैं. स्कूल में पढ़कर बच्चे इस कदर एडवांस हो गए हैं कि जब टीचर बच्चों को 2 का पहाड़ा बताते हैं तो बच्चे कहते है कि हमें 3 का पहाड़ा बताइए. शिक्षक बताते हैं कि आदिवासी गांव होने के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते थे, जो उनके लिए बड़ी चुनौती थी. उन्होंने अपने खर्च से ही स्कूल के एक कमरे को इस तरह सजाया कि बिना बस्ते के ही बच्चों को पढ़ाया जा सके और अब बच्चे यहां आकर खेलने के साथ ही पढ़ाई करते हैं.

छिंदवाड़ा। दीवारों पर उकेरे गये रंग-बिरंगे अक्षर के साथ ही देश-दुनिया की जानकारी और फर्श पर सांप-सीढ़ी से लेकर लूडो के चित्र के अलावा खेलते बच्चों की तस्वीरें किसी प्रदर्शनी या खिलौना घर का नहीं, बल्कि तामिया आदिवासी अंचल के धूसावानी गांव का सरकारी स्कूल है. एक समय ऐसा था कि बच्चे स्कूल आने से कतराते थे, लेकिन शिक्षक अरविंद सोनी ने बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए जो मुहिम शुरू की. वह निजी स्कूलों पर भारी पड़ रही है क्योंकि यहां प्राइवेट जैसी सुविधा उपलब्ध कराकर बड़े स्कूलों को भी फेल कर दिया है.

शिक्षक ने अपने पैसे से बनाया रंग-बिरंगा कमरा

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि वे यहां खेल-खेल में यहां पढ़ाई भी करते हैं. यहां बिना बस्ते-पेन की पढ़ाई भी हो जाती है. बच्चों का कहना है कि जब से यह रंग-बिरंगा कमरा बना है, तब से पढ़ाई में मन लगने लगा है. शिक्षक अरविंद सोनी ने बताया कि यहां स्कूल में बच्चों की उपस्थिति कम रहती थी, लेकिन जब से कमरा बना है, तब से बच्चों की उपस्थिति 100 प्रतिशत हो गई है.

अब बच्चे यहां आने के लिए लालायित रहते हैं. स्कूल में पढ़कर बच्चे इस कदर एडवांस हो गए हैं कि जब टीचर बच्चों को 2 का पहाड़ा बताते हैं तो बच्चे कहते है कि हमें 3 का पहाड़ा बताइए. शिक्षक बताते हैं कि आदिवासी गांव होने के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते थे, जो उनके लिए बड़ी चुनौती थी. उन्होंने अपने खर्च से ही स्कूल के एक कमरे को इस तरह सजाया कि बिना बस्ते के ही बच्चों को पढ़ाया जा सके और अब बच्चे यहां आकर खेलने के साथ ही पढ़ाई करते हैं.

Intro:स्कूलों में बच्चों को बस्ता के बोझ की खबरें तो आपने बहुत देखी होगी,लेकिन हम आपकों दिखा रहें हैं आदिवासी अंचल का एक ऐसा सरकारी स्कूल जो सिर्फ बच्चो को बस्ता के बोझ से मुक्त नहीं कराता है बल्कि खेल खेल में ऐसी शिक्षा देता है कि मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूल भी झांकने लगें।Body:स्कूल की दीवारों पर रंग बिरंगे ककहरा,देश दुनिया का ज्ञान और फर्श पर साँप सीढ़ी से लेकर लूडो के चित्र और वहाँ पर खेलते बच्चे ये कोई प्रदर्शनी या खिलौना घर नहीं बल्कि ये है आदिवासी अंचल तामिया के धूसावानी गाँव का सरकारी स्कूल,पहले इस स्कूल में बच्चे नहीं आते थे शिक्षक अरविंद सोनी बच्चों को पढ़ाने की ठानी और पूरे स्कूल की दीवारों को सामान्य ज्ञान,ककहरा और फर्श पर बच्चों को खेलने चार्ट से रंगवा दिया जिससे की बच्चे खेल खेल में पढ़ाई कर सकें और स्कूल आने में उन्हें मजा आए,फिर क्या था बच्चों के लिए तो स्कूल तो मानो किसी खिलोना घर से कम नहीं था और अब सभी बच्चे बिना बस्ता के स्कूल में आकर खेल खेल में शिक्षा ले रहे हैं जिसके आगे बड़े बड़े निजी स्कूल भी फेल हैं।
प्रधानपाठक अरविंद सोनी बताते हैं कि आदिवासी गाँव होने के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते थे जो उनके लिए बड़ी चुनौती थी उन्होंने अपने खर्चे से ही स्कूल के एक कमरे को इस तरह सजवाया कि बिना बस्ता के ही बच्चों को पढ़ाया जा सके और अब बच्चे यहाँ पर आकर खेलने के साथ ही पढाई भी पूरी कर लेते हैं।Conclusion:कहते हैं कि शिक्षक का काम ही होता है ज्ञान का उजाला फैलाना लेकिन आज के इस युग में लोग अपने कर्तव्य को नौकरी समझ कर निभाते हैं जिसके चलते लगातार सरकारी स्कूलों का स्तर गिरता जा रहा है, आदिवासी अंचल के इस गाँव के शिक्षक के काम को देखकर कहा जा सकता है कि असली गुरुजी किसे कहते हैं।
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