छिंदवाड़ा। कहते हैं की मजबूरी इंसान को कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है, कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है छिंदवाड़ा जिले के सौंसर इलाके में बुनकरों के साथ, जो अपने हुनर के दम पर रेशमी बनारसी साड़ियां बनाकर पूरे देश में पहुंचाते हैं. बुनकर लॉकडाउन के चलते परिवार का पेट भरने को इतना मजबूर हो गए कि कोई अब सब्जी बेच रहा है, तो कोई सड़कों की सफाई कर रहा है.
दरअसल इन बुनकरों को अपना काम चलाने के लिए कच्चे माल की जरूरत होती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते न तो उनके पास धागा आ रहा है, और ना ही कच्चा माल मिल रहा है, जिसके चलते नए कपड़े बन नहीं सके और जो पुराने कपड़े बने थे वह बिक नहीं सके, जिसके चलते अब इनकी आर्थिक हालत खराब हो गई चुकी है.
कोई सफाई तो कोई सब्जी बेचकर चलाता है परिवार
इन हुनरमंद कारीगरों के पास काबिलियत तो बहुत है लेकिन मजबूरी के चलते कोई नाली की सफाई कर रहा है, तो कोई सब्जी बेचकर अपना परिवार चला रहा है. बुनकरों का कहना है कि इन कामों में भी परिवार का चलना मुश्किल है, लेकिन सरकारी मदद के नाम पर कोई उनकी तरफ झांकता तक नहीं है.
संकट में करीब 5 हजार परिवार
छिंडवाड़ा के सौंसर, मोहगांव और लोधीखेड़ा में कुल मिलाकर करीब 5 हजार बुनकर परिवार हैं. जो इसी धंधे से अपना परिवार चलाते हैं. पहले सप्ताह में 3 हजार तक कमा लेते थे, लेकिन अब हालत ये है कि 300 से 400 ही कमाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
इंदौर और चंदेरी में जाती हैं साड़ियां
दरअसल इन बुनकरों द्वारा बनाई गई साड़ियां छिंदवाड़ा से तैयार होकर चंदेरी और इंदौर के बाजार में पहुंचती हैं, और फिर धागा चंदेरी से और कच्चा माल इंदौर से छिंदवाड़ा पहुंचता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते सब कुछ रुक गया है. हालत ये है कि लागत तो बहुत दूर की बात है परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो रहा है.
बुनकरों की गुहार
बुनकरों का कहना है कि सरकार हर तरफ ध्यान देती है लेकिन उनकी किसी ने अब तक तक सुध तक नहीं ली है, लिहाजा इन हुनरमंद कारीगरों के पास काबिलियत तो बहुत है. लेकिन मजबूरी ने इन्हें मजबूर कर दिया है, जिसके चलते इनकी मंजिल तो वहीं है लेकिन फिलहाल रास्ता बदल दिए हैं.