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कोरोना काल में संतरे की डिमांड हुई कम, किसानों के साथ व्यापारियों को भी हो रहा नुकसान

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Published : Oct 13, 2020, 12:36 AM IST

Updated : Oct 13, 2020, 8:43 AM IST

ऑरेंज सिटी के नाम से पूरे प्रदेश में मशहूर पांढुर्णा के संतरों की मिठास अब कम होती नजर जा रही है, आलम ये है कि कोरोना काल में संतरे की डिमांड काफी कम हो गई है, जिससे किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी काफी नुकसान हो रहा है.

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पाढुर्णा संतरा

छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा को प्रदेश का ऑरेंज सिटी कहा जाता है, जिले में सबसे ज्यादा संतरे का उत्पादन पांढुर्णा में होता है, लेकिन कोरोना काल में किसानों को संतरे के कम दाम मिल रहे हैं. जिससे संतरा अन्य राज्यों में बेचने में व्यापारियों को भी नुकसान हो रहा है. ऑरेंज सिटी के नाम से पूरे प्रदेश मे मशहूर पांढुर्णा के संतरों की मिठास अब कम होती नजर जा रही है, आलम यह है कि कोरोना काल में संतरे की डिमांड काफी कम हो गई है, जिससे किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी काफी नुकसान हो रहा है.

कोरोना काल में संतरे की डिमांड हुई कम

संतरा व्यापारियों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण संतरे के परिवहन में भी ब्रेक सा लग गया है. हालांकि पांढुर्णा की मंडियों में मृग संतरे की आवक काफी बढ़ गई है, लेकिन इन संतरे को अन्य राज्यों में खरीदने वाले व्यापारी भी इंकार कर रहे है. जिससे संतरे के व्यवसाय पर भी कोरोना का साया साफ नजर आ रहा है. जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा हैं.जहां एक और किसानों को कम दाम मिलने से उनका मेहनताना नहीं निकल रहा है वहीं दूसरी ओर व्यापारियों को इस साल संतरे की खेती करना घाटे का सौदा लग रहा हैं.

ये भी पढ़े- ट्रेन से बांग्लादेश पहुंचेगा छिंदवाड़ा का संतरा, किसानों को मिलेगा ज्यादा लाभ

संतरे के पेड़ों की 5 साल तक बच्चे की तरह की परवरिश

किसान बताते है कि संतरे के पेड़ों की परवरिश बच्चे की तरह की जाती हैं. जब इन पेड़ों की कलम जमीन में लगाई जाती हैं, तब से लेकर 5 साल तक उसकी देखरेख बिल्कुल एक बच्चे की तरह की जाती है, तब जाकर किसानों को 5 साल बाद संतरे का उत्पादन मिलने का सिलसिला शुरू होता है, लेकिन कोरोना काल में उनकी मेहनताना के हिसाब से किसानों को दाम नहीं मिल रहे हैं.

पांढुर्णा 13 और सौंसर में 7 हजार रकबा

छिंदवाड़ा जिले में 7 विधानसभा में से केवल पांढुर्णा और सौंसर तहसील में संतरे का उत्पादन होता हैं. इन दोनों तहसील में संतरा उत्पादन में पांढुर्णा प्रथम स्थान पर है. जहां 13 हजार हेक्टेयर में संतरे का रकबा है. वहीं सौंसर दूसरे नम्बर है जहां 7 हजार हेक्टेयर में संतरे के बागान है, लेकिन पांढुर्णा क्षेत्र में पानी के अभाव में संतरे के बागानों पर संकट बना हुआ है.

100 संतरा मंडी में से 20 मंडी हो रही संचालित

व्यापारी बताते हैं कि पांढुर्णा में 80 से 100 संतरा मंडियों हुआ करती थी, जहां से देश के हर राज्यों में संतरे का परिवहन किया जाता था, लेकिन पानी के अभाव में संतरे के पेड़ों की सिंचाई नहीं होती थी, जिसके कारण संतरे के बागान सूखते चले गए. जिसका असर संतरे के उत्पादन पर पड़ने लगा.आलम यह है कि पांढुर्णा के संतरे का व्यापार महाराष्ट्र के शहरों में संचालित होने लगा है.

छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा को प्रदेश का ऑरेंज सिटी कहा जाता है, जिले में सबसे ज्यादा संतरे का उत्पादन पांढुर्णा में होता है, लेकिन कोरोना काल में किसानों को संतरे के कम दाम मिल रहे हैं. जिससे संतरा अन्य राज्यों में बेचने में व्यापारियों को भी नुकसान हो रहा है. ऑरेंज सिटी के नाम से पूरे प्रदेश मे मशहूर पांढुर्णा के संतरों की मिठास अब कम होती नजर जा रही है, आलम यह है कि कोरोना काल में संतरे की डिमांड काफी कम हो गई है, जिससे किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी काफी नुकसान हो रहा है.

कोरोना काल में संतरे की डिमांड हुई कम

संतरा व्यापारियों के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण संतरे के परिवहन में भी ब्रेक सा लग गया है. हालांकि पांढुर्णा की मंडियों में मृग संतरे की आवक काफी बढ़ गई है, लेकिन इन संतरे को अन्य राज्यों में खरीदने वाले व्यापारी भी इंकार कर रहे है. जिससे संतरे के व्यवसाय पर भी कोरोना का साया साफ नजर आ रहा है. जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा हैं.जहां एक और किसानों को कम दाम मिलने से उनका मेहनताना नहीं निकल रहा है वहीं दूसरी ओर व्यापारियों को इस साल संतरे की खेती करना घाटे का सौदा लग रहा हैं.

ये भी पढ़े- ट्रेन से बांग्लादेश पहुंचेगा छिंदवाड़ा का संतरा, किसानों को मिलेगा ज्यादा लाभ

संतरे के पेड़ों की 5 साल तक बच्चे की तरह की परवरिश

किसान बताते है कि संतरे के पेड़ों की परवरिश बच्चे की तरह की जाती हैं. जब इन पेड़ों की कलम जमीन में लगाई जाती हैं, तब से लेकर 5 साल तक उसकी देखरेख बिल्कुल एक बच्चे की तरह की जाती है, तब जाकर किसानों को 5 साल बाद संतरे का उत्पादन मिलने का सिलसिला शुरू होता है, लेकिन कोरोना काल में उनकी मेहनताना के हिसाब से किसानों को दाम नहीं मिल रहे हैं.

पांढुर्णा 13 और सौंसर में 7 हजार रकबा

छिंदवाड़ा जिले में 7 विधानसभा में से केवल पांढुर्णा और सौंसर तहसील में संतरे का उत्पादन होता हैं. इन दोनों तहसील में संतरा उत्पादन में पांढुर्णा प्रथम स्थान पर है. जहां 13 हजार हेक्टेयर में संतरे का रकबा है. वहीं सौंसर दूसरे नम्बर है जहां 7 हजार हेक्टेयर में संतरे के बागान है, लेकिन पांढुर्णा क्षेत्र में पानी के अभाव में संतरे के बागानों पर संकट बना हुआ है.

100 संतरा मंडी में से 20 मंडी हो रही संचालित

व्यापारी बताते हैं कि पांढुर्णा में 80 से 100 संतरा मंडियों हुआ करती थी, जहां से देश के हर राज्यों में संतरे का परिवहन किया जाता था, लेकिन पानी के अभाव में संतरे के पेड़ों की सिंचाई नहीं होती थी, जिसके कारण संतरे के बागान सूखते चले गए. जिसका असर संतरे के उत्पादन पर पड़ने लगा.आलम यह है कि पांढुर्णा के संतरे का व्यापार महाराष्ट्र के शहरों में संचालित होने लगा है.

Last Updated : Oct 13, 2020, 8:43 AM IST
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